Corona: Steps towards suicide after mental stress: कोरोना: मानसिक तनाव के बाद आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम

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करोना महामारी ने वर्ष 2020 को नाकारात्मक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महामारी के होने वाली मौतों से लोग जहां अपनों को खो रहे हैं वहीं कोरोना के कारण छायी आर्थिक मंदी से रोजगार व काम धंधे ठप्प पडऩे से लोग मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। कोरोना के चलते हिमाचल प्रदेश में एक बड़ी आबादी मानसिक तनाव के दौर से गुजर रही है। छोटी सी आबादी वाले इस राज्य में मात्र कुछ माह में ही राज्य के इंदिरा गांधी मैडीकल कालेज में 15 हजार नए मानसिक तनाव के रोगी उपचार के लिए पंजीकृत हुए हैं। इसके अलावा राज्य के अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में कोरोना महामारी के दौरान मानसिक तनाव के कारण हजारों और लोग भी प्रारंभिक उपचार ले रहे हैं। इंदिरा गांधी मैडीकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा जारी किया गया यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। हालांकि वहां पहले से 10 हजार रोगी लंबे समय से अपना उपचार करवा रहे हैं। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान इस आंकड़े में 15 हजार नए रोगीयों का जुड़ जाना बड़ी बात है। क्योंकि अब तक हिमाचल प्रदेश के इस सबसे पुराने और बड़े मैडीकल कालेज में मात्र कुछ माह में इतनी बड़ी तादाद में मानसिक तनाव के इतने केस आज तक नहीं आए हैं।
वहीं कोरोना महामारी के कारण राज्य में मई माह से लेकर अब तक आत्महत्याओं के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। मनोचिकित्सक विशेषज्ञों की मानें तो 70 से 80 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले लोगों के केस मनोरोग से जुड़े होने की संभावना रहती है। वर्तमान में कोरोना महामारी के चलते लोगों के समक्ष बेरोजगारी और आर्थिक परेशानी ही मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण बन कर उभरा है। अभी कुछ दिनों में ही ऊना, शिमला, कांगड़ा और सोलन में ऐसे आत्महत्या के ऐसे मामले सामने आए हैं जो कि पूरी तरह से उक्त कारणों से जुड़े हुए थे। वहीं इसी बीच नागालैंड के पूर्व राज्यपाल और सी.बी.आई. निदेशक और हिमाचल पुलिस प्रमुख के अहम ओहदों पर रह चुके अश्विनी कुमार द्वारा आत्महत्या के मामले को भी कहीं न कहीं कोरोना काल में पनपे मानिसक तनाव से ही जोडक़र देखा जा रहा है। अचानक से राज्य में मानसिक तनाव से बड़ रहे मामलों को लेकर राज्य सरकार भी गंभीर दिख रही है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से चर्चा के बाद राज्य के पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू ने सभी पुलिस अधिकारीयों को आत्महत्या के हरेक मामले की गंभीरता से जांच कर उनकी तह तक जाने के आदेश जारी किए हैं।
अब तक 657 कर चुके अपनी जिंदगी खत्म
हिमाचल प्रदेश में जनवरी से लेकर अब तक 657 लोग आत्महत्या कर अपनी जिंदगी खत्म कर चुके हैं। इस आंकड़े में सबसे ज्यादा मामले मई माह से लेकर अब तक के हैं। कोरोना महामारी फैलने के बाद राज्य में मई माह में 89, जून में 112, जुलाई में 101 और अगस्त व सितंबर में 191 लोगों ने विभिन्न कारणों के चलते अपनी जिंदगी अपने हाथों खत्म की है। कई मामलों में तो यह भी सामने आया है कि बेरोजागारी, आय के साधनों में अचानक कमी आने, काम-धंधा ठीक न चलने, गाड़ी की किश्त न देने, वेतन न मिलने तथा घर का खर्च न चला पाने के कारण पनपे मानसिक तनाव के चलते लोगों ने आत्महत्या की है। राज्य में यह क्रम लगातार बढ़ता देखने को मिल रहा है।
सरकार को प्रयासों में लानी होगी गंभीरता
जिस तेजी से राज्य में मानसिक तनाव के रोगीयों की तादाद बड़ रही है और उनके कदम आत्महत्या को बढ़ रहे हैं। उसको देखते हुए राज्य सरकार को तल्द ही इसके लिए सामाजिक और सरकारी तौर पर गंभीर प्रयास शुरू करने होंगे। हालांकि मार्च माह में जैसे ही कोरोना ने दस्तक दी थी तो राज्य सरकार ने लाकडाउन के कारण घरों में बैठें लोगों के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था शुरू की थी। जिससे कि लोग घरों में बैठे-बैठे कहीं मानसिक तनाव के शिकार न हो जाएं। वहीं स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिए विशेष तौर पर 104 नंबर से लोगों की काउंसलिंग भी शुरू कर दी है। मानसिक तनाव का यह मुद्दा बेरोजगारी से मुख्य रूप से जुड़ा हुआ है। कोरोना महामारी के दौरान हिमाचल प्रदेश में देश-विदेश से करीब 2.5 लाख लोग लौटे थे। जैसे ही अनलाक की प्रक्रिया शुरू हुई तो इनमें से आधे से ज्यादा लोग फिर से अपने काम-धंधों पर लौट गए। लेकिन इसी बीच अनेकों लोगों के रोजगार छूट गए और वो बेरोजगार हो गए। हालांकि इनमें से कईयों ने स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाए और जहां राह मिली वहीं छोटे-मोटे काम-धंधे में लग गए। परन्तु फिर भी अनेकों लोग अचानक सिर पर आई इस विपदा के चलते अपने भविष्य को लेकर चिंतित हुए और मानसिक तनाव का शिकार हो बैठे। राज्य सरकार भी चाह कर ऐसे लोगों के लिए कुछ विशेष नहीं कर पा रही है। क्योंकि कोरोना महामारी के चलते सरकार की अर्थव्यवस्था पहले ही पटरी से उतरी हुई है। ऐसे में अब सरकार को सामाजिक संगठनों के सहयोग से मानसिक तनाव की तरफ घिर रही एक बड़ी आबादी को बचाने की कोशिश में जुट जाना चाहिए।

-डा.राजीव पत्थरिया

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