आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने माना हरियाणा के दो ऐतिहासिक स्मारक स्थल गायब हुए 

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-आरटीआई में हुआ खुलासा, प्रदेश के दो स्मारक हुए अनदेखी का शिकार
-दोनों जगह इमारत व फैक्ट्री का निर्माण किया गया, उठे सवाल
डॉ रविंद्र मलिक । चंडीगढ़
देश भर में कई पुराने स्मारक स्थल हैं और ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रुप से ये बेहद महत्वपूर्ण हैं। सरकार भी समय समय पर इनके संरक्षण को लेकर गाईडलाइंस व दिशा निर्देश जारी करती रहती है। लेकिन इसी बीच में हरियाणा में दो स्मारक स्थल घोर लापरवाही का शिकार हो गए और अब ये परिदृश्य पर कहीं नहीं है। ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने भी इस बात को माना है कि ऐसा हुआ है। ऐसे में अब सवाल ये है कि ये स्मारक स्थल गायब कैसे हुए  और इनकी देख रेख में लापरवाही क्यों की गई जिसके चलते अब इनका अस्तित्व कहीं नहीं है। इस पूरे मामले का खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुए। पानीपत में पेशे से वकील अमित राठी ने मामले को लेकर आरटीआई में जानकारी मांगी तो उपरोक्त तथ्य सामने आए। जवाब में एएसआई ने कुरुक्षेत्र के शाहाबाद और फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में दोनों कोस मिनार स्मारकों को लेकर स्टेट्स रिपोर्ट दी है जिसमें सामने आया है कि दोनों स्मारक की जगह तो कोई अन्य निर्माण हो चुका है और फिलहाल उनकी मूल जगह का नहीं पता चल रहा है। पूरे मामले में ये बताना अहम है कि दोनों की स्मारकों का मूल स्थान ही नहीं पता है जो कि बेहद ही गंभीर सवाल है और ऐसा कैसे हुआ। इन दोनों में एक जगह अब इमारत खड़ी हैं तो दूसरी जगह फैक्ट्री की निर्माण हो गया है। ये भी सामने आया कि इसमें सरकार व संबंधित विभाग की तरफ से लापरवाही सामने आ रही है। इनकी देख रही का जिम्मा एएसआई की तरफ से चंडीगढ़ यूनिट के पास था।

कुरुक्षेत्र के शाहाबाद में कोस मिनार के बारे में जानिए

दो में से एक कोस मीनार स्मारक स्थल कुरुक्षेत्र जिले के शाहाबाद कस्बे में पड़ती है।  बता दें कि 1 दिसंबर 1914 को एएसआई द्वारा इसके सरंक्षण संबंधी जानकारी अधिकारिक रुप से जारी की गई थी। प्रोटेक्शन के समय खसरा संख्या 1925 के मुताबिक यहां कुल एरिया 1 बीधा 6 बिस्वा था। इसका मालिक कोई वली मोहम्मद नामक व्यक्ति था। विभाजन के बाद जमीन को भारत सरकार के रिहेबिलेशन विभाग ने इसको एक्वायर कर लिया। इसके बाद 1965-66 में भारत सरकार द्वारा इसको कंसोलिडेट किया व इसको नोटिफाइ किया गया। साल 1971 में जमीन को चमन लाल नाम के व्यक्ति को ट्रांसफर किया गया। इसके बाद 2004-05 में जमीन हरियाणा अबर्न डेवलपमेंट अथॉरिटी( तब हुडा, अब एचएसवीपी) द्वारा एक्वायर कर ली गई।

शाहाबाद की कोस मिनार की जगह अब इमारतें खड़ी हैं

अब हालात ये हैं कि शाहाबाद की कोस मिनार वाली जगह कई इमारतें खड़ी हैं। अब कोई रास्ता या तरीका नहीं है कि कोस मिनार की सही जगह का पता लगाया जा सके। इसको लेकर एएसआई द्वारा स्टेटमेंट जारी की गई है। आगे इसमें जिक्र है कि कोस मीनार के बारे में एक बुजूर्ग व्यक्ति से बात की गई तो पता लगा कि ये लंबे समय से ही नहीं और मिसिंग है। इसके गायब होने या खत्म होने के पीछे संभावित कारण ये है कि इस जगह को सरकार द्वारा प्राइवेट पार्टियों को सेल या अलॉट कर दिया गया।

फरीदाबाद की मुजेसर कोस मीनार का इतिहास भी पुराना

एएसआई की स्टेटमेंट के मुताबिक ये मुजेसर कोस मीनार फरीदाबाद जिले की बल्लभगढ़ तहसील में पड़ती है। एएसआई द्वारा साल 1919 में इसको राष्ट्रीय महत्ता का स्मारक घोषित किया गया। इस बारे में बाकायदा नोटिफिकेशन भी जारी किया गया था।  ऐसे में साफ है कि इस मीनार को 100 साल से भी ज्यादा वक्त पूर्व राष्ट्रीय महत्ता का स्मारक घोषित किया गया था।
मुजेसर मीनार स्थल को नष्ट कर दिया गया, फैक्ट्री का निर्माण किया
उपलब्ध रिकार्ड के मुताबिक उस समय के आर्कियोलॉजिस्ट ने तत्कालीन डीसी से मीनार की जमीन को लेकर जानकारी मांगी थी। इसमें सामने आया कि जमीन किसी मैसर्ज पोरिट्स एंड स्पेंसर्स( एशिया) नाम की प्राइवेट कंपनी को आवंटित की गई थी। इस बारे में वहां के डीसी ने जवाब दिया। इसको लेकर उन्होंने 11 जनवरी 1984 को लेटर भेजा जिसमें लिखा था कि मीनार को उपरोक्त कंपनी के मालिकों द्वारा गिरा दिया गया और वहां फैक्ट्री का निर्माण किया गया। इसके बाद आर्कियोलॉजिस्ट को एक लेटर भेजा गया जिसमें 4 फरवरी 1984 को कंपनी के मालिकों के खिलाफ  एंनसिएंट आर्कियोलॉजिकल रिमेंस एक्ट, 1958 के तहत कार्रवाई के लिए पुलिस को लिखा गया। इसको लेकर कंपनी की तरफ से भी जवाब मिला। उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार की तरफ से उनको जगह के राष्ट्रीय महत्ता की स्मारक या जमीन होने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। जमीन उनकी कंपनी को बिना किसी शर्त के दी गई थी। इसके अलावा फैक्ट्री बनाने का प्लान बाकायदा हरियाणा सरकार द्वारा अप्रूवड था। इसके अलावा ऐसा कोई रिकार्ड भी नहीं मिला जो साबित कर सके कि ये मीनार की जगह थी या यहां फिर मीनार थी।
कोट्स
ऐतिहासिक स्मारक स्थलों का संरक्षण बेहद जरूरी है। मुगल शासक जहांगीर के समय में रास्ते और इसकी दूरी के बारे में जानकारी देने के लिए कोस स्मारक बनाए गए थे। उपरोक्त दोनों स्थल अनदेखी का शिकार हो नष्ट हो गए। सरकार और एएसआई को चाहिए कि ऐतिहासिक स्मारक स्थलों की अनदेखी कतई न हो ताकि आने वाली पीढ़ियां भी अपनी विरासत से रूबरू हो सकें।
डॉ चांद सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, डीएवी कॉलेज , अंबाला सिटी
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