दूसरे राज्‍यों में बढ़ रही कड़कनाथ की मांग

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झाबुआ। मांसाहारियों के लिए खाद्य पदार्थ के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका कड़कनाथ (मुर्गा की प्रजाति) इस समय प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्‍यों के साथ-साथ विदेशों में भी धूम मचाए हुए है। लजीज स्वाद आदि के लिए पहचाने जाने वाले कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गा-मुर्गियों की डिमांड इन दिनों काफी बढ़ गई है।
जानकारी के अनुसार मध्‍यप्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ में पाए जाने वाले कड़कनाथ की मांग सर्दियों के दिनों में देश ही नहीं विदेशों में भी होती है।
भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे श्रीगंगानगर, दक्षिणी छोर कर्नाटक, हैदराबाद, केरल से लेकर गोरखपुर तक इस प्रजाति के मुर्गे की मांग है। यही नहीं कई एनजीओ भी झाबुआ क्षेत्र से मुर्गे व चूजे लेकर बाहर भेजे जा रहे हैं साथ ही सरकार द्वारा भी इनकी प्रजाति को बढ़ाने के लिए विशेष जोर दिया जा रहा है।
अधिक डिमांड की हालत यह है कि इस सीजन में कृषि विज्ञान केंद्र स्थित हैचरी में हर महीने तीन से पांच हजार चूजे निकलने के बाद भी मांग से कम ही आपूर्ति हो पा रही है।
कड़कनाथ की खासियत
इसका मांस, चोंच, कलंगी, जुबान, टांगे, नाखून चमड़ी सभी काले होते है। इसमें प्रोटिन की प्रचूर मात्रा पाई जाती है। वहीं वसा बहुत कम होता है। यही वजह है कि इसे औषधीय गुणो वाला मुर्गा माना जाता है।
यहां तक कि हृदय व डायबिटीज रोगियों के लिए कड़कनाथ रामबाण का काम करता है। अब इस इलाके से कड़कनाथ मुर्गों की घटती प्रजाति और ठंड के दिनों में इस प्रजाति के मुर्गों की डिमांड बहुत अधिक होती है।
ऐसे में वेटनरी कॉलेज, महू और कृषि विज्ञान केंद्र, झाबुआ स्थित हैचरी में अंडों को मशीनों की मदद से गर्म किया जाता है और 18 दिनों तक मशीनों में रखकर चूजे निकाले जाते है। इसके बाद इन चूजों को जरूरत के अनुसार देश-विदेश तक भेजा जाता है।

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