Abdul Gani Bhat Passed Away, (आज समाज) ,श्रीनगर: एक प्रमुख राजनीतिज्ञ व कई दशकों तक कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में सक्रिय रहने वाले पूर्व हुर्रियत नेता प्रोफेसर अब्दुल गनी भट्ट का निधन हो गया है। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि भट्ट ने बुधवार शाम को घर पर अंतिम सांस ली। वह 90 वर्ष के थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे। 1935 में जन्मे अब्दुल गनी भट्ट उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के सोपोर के बोटींगू इलाके के रहने वाले थे। बोटीगू गांव में ही 1935 में उनका जन्म हुआ था। 

अंतिम संस्कार की जानकारी बाद में दी जाएगी : परिवार

परिवार के सदस्यों ने कहा कि अंतिम संस्कार की जानकारी बाद में दी जाएगी। अब्दुल गनी भट्ट ने 1986 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) की सह-स्थापना की।  बाद में वह  1993 में अलगाववादी समूहों के गठबंधन ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) के अध्यक्ष रहे और भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस (एमसिएजके) के अध्यक्ष थे।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से की थी लॉ की पढ़ाई

प्रोफेसर गनी भट्ट का परिवार शिक्षा को महत्व देता था और अब्दुल गनी ने श्रीनगर के ऐतिहासिक एसपी कॉलेज से पढ़ाई की। फिर फारसी में पोस्ट ग्रेजुएट किया और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ली। अपने राज्य वापस आकर उन्होंने पुंछ के सरकारी डिग्री कॉलेज में फारसी पढ़ाने का काम शुरू किया। यह उनका पसंदीदा काम था और वे 20 साल तक इसी में रहे, लेकिन बाद में राजनीति उन्हें दूसरी राह पर ले गई।

1986 में राजनीति में औपचारिक एंट्री की

अब्दुल गनी भट्ट ने 1986 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) की स्थापना की और यहीं से उनकी राजनीति में औपचारिक एंट्री हुई। यह गठबंधन 1987 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में मौजूद नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती देने के लिए बना था। एमयूएफ की हार—जिसमें बड़े पैमाने पर चुनावी धांधली का आरोप था—कश्मीर के आधुनिक राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। भट्ट की सक्रियता के चलते राज्य सरकार ने ‘सुरक्षा कारणों’ से उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद के सालों में प्रोफेसर गनी अलगाववादी राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए।

राजनीतिक चर्चा में ईमानदारी पर उनका ज़ोर

प्रोफेसर भट्ट 1993 में बनी ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) के संस्थापक सदस्यों में से थे। बाद में वह  इसके अध्यक्ष भी बने। उन्होंने मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का भी नेतृत्व किया, जिसे 2019 में बैन कर दिया गया था। अलगाववादी होने के बावजूद, अब्दुल गनी भट्ट को हुर्रियत में एक संतुलित नेता माना जाता था। वे अपने बेबाक बयानों, गहरी समझ और राज्य के साथ-साथ अलगाववादी खेमे के अपने साथियों की भी आलोचना करने के लिए जाने जाते थे। राजनीतिक चर्चा में ईमानदारी पर उनका ज़ोर और उनके अक्सर अलग तरह के विचार उन्हें दूसरों से अलग बनाते थे। 

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