जानें पूजा विधि और नियम
Jitiya Vrat, (आज समाज), नई दिल्ली: जितिया एक व्रत है जिसमें निर्जला (बिना पानी के) उपवास पूरे दिन किया जाता है और माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र, कल्याण के लिए मनाया जाता है। बिक्रम संवत के आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन-दिवसीय त्योहार मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से नेपाल के मिथिला और थरुहट, भारतीय राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

जितिया व्रत जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। यह संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस साल यह व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा। इस व्रत को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं जिनका पालन सभी को करना चाहिए।

जितिया व्रत में क्या करें

  • नहाय-खाय: व्रत का पहला दिन नहाय-खाय के रूप में जाना जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान करती हैं और सात्विक भोजन का सेवन करती हैं। भोजन में मरुवा की रोटी और नोनी का साग शामिल किया जाता है।
  • निर्जला व्रत: व्रत का मुख्य दिन, जिसे खुर-जितिया कहते हैं। यह पूरी तरह से निर्जला रखा जाता है। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण तक चलता है।
  • शाम की पूजा: दूसरे दिन, शाम के समय महिलाएं जितिया देवी की पूजा करती हैं और कथा सुनती हैं।
  • तर्पण: व्रत के दौरान कुश के बने जीमूतवाहन की पूजा भी की जाती है। कुछ महिलाएं जीमूतवाहन को अर्पित करने के लिए नदी या तालाब में तर्पण भी करती हैं।
  • पारण: व्रत का पारण तीसरे दिन किया जाता है। पारण के समय झींगा मछली और मडुआ रोटी खाने का रिवाज है। यह माना जाता है कि ऐसा करने से व्रत का पूरा फल मिलता है।
  • दान: व्रत पूर्ण होने के बाद जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र का दान किया जाता है।

जितिया व्रत में क्या न करें

  • अन्न-जल का सेवन: व्रत के दूसरे दिन महिलाएं अन्न और जल का त्याग करती हैं। इस दिन पानी की एक बूंद भी नहीं पीनी चाहिए।
  • तामसिक भोजन: जितिया व्रत के दौरान तामसिक भोजन का सेवन गलती से भी नहीं करना चाहिए।
  • नकारात्मकता से दूर रहें: इस दौरान लड़ाई-झगड़े और नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए।
  • अनजाने में गलती: अगर गलती से व्रत के दौरान कुछ खा लिया जाए, तो तुरंत मां से क्षमा मांगनी चाहिए और अगले साल व्रत को विधिपूर्वक करने का संकल्प लेना चाहिए।
  • किसी का अपमान करना: व्रत के दौरान किसी भी व्यक्ति, विशेषकर बुजुर्गों और बच्चों का अपमान नहीं करना चाहिए। यह व्रत प्रेम, दया और त्याग का प्रतीक है।

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