• विद्यालय की नन्ही-नन्ही कन्याओं को माता के नौ रूपों में सजाया

Jind News (आज समाज) जींद। मोतीलाल नेहरू पब्लिक स्कूल में बुधवार को माता रानी का भव्य आगमन हुआ। पूरे विद्यालय परिसर में भक्ति और श्रद्धा का वातावरण व्याप्त था। माता की प्रतिमा का ससम्मान स्थापना कर विधिवत पूजा व अर्चना की गई। माता के चरणों का पूजन कर समस्त विद्यालय परिवार ने उनके आर्शीवाद की कामना की। इस अवसर की सबसे विशेष झलक यह रही कि विद्यालय की नन्ही-नन्ही कन्याओं को माता के नौ रूपों में सजाया गया। लाल, पीले, हरे, नीले परिधानों में सुसज्जित छोटी कन्याएं पूरे वातावरण में शक्ति, सौंदर्य और भक्ति का अद्भुत संगम प्रस्तुत कर रही थीं।

नारी ही सृष्टि का मूल

पूरे कार्यक्रम में यह संदेश दिया गया कि नारी ही सृष्टि का मूल है और मां शक्ति अपने विविध स्वरूपों से समय-समय पर समाज को प्रेरणा प्रदान करती हैं। मंगलाचरण के साथ वातावरण गुंजायमान हुआ। माता की मूर्ति की स्थापना के बाद विधिपूर्वक चरण पूजन और आरती की गई। अध्यापिका पूजा पसरीजा ने बच्चों को विस्तार से बताया कि माता केवल ममता और करुणा की मूर्ति ही नही हैं बल्कि वे समयानुसार अलग-अलग रूप धारण कर मानव समाज का कल्याण करती हैं।

यह रूप केवल धार्मिक कथाओं तक सीमित नहीं है बल्कि यह हमें जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। विद्यालय के प्राचार्य रविंद्र कुमार ने माता रानी के नौ रूपों को संबोधित करते हुए कहा कि मां दुर्गा केवल पूजनीय देवी नही बल्कि वे जीवन में शक्ति, अनुशासन और आत्मविश्वास का प्रतीक है। जब हम नन्ही कन्याओं को माता के रूप में सजते देखते हैं तो यह हमें याद दिलाता है कि प्रत्येक बालिका स्वयं एक देवी स्वरूप है।

नैतिकता और संस्कार ही जीवन को बनाते हैं सफल

विद्यार्थियों को चाहिए कि वे माता से साहस, करुणा और सदाचार की प्रेरणा लें। अकादमिक सफलता के साथ-साथ नैतिकता और संस्कार ही जीवन को सफल बनाते हैं। स्कूल प्रशासक वीपी शर्मा ने भी कहा कि विद्यालय का उद्देश्य केवल शिक्षा देना नही बल्कि बच्चों में जीवन मूल्यों और चरित्र निर्माण की गहरी नींव डालना है।

इस अवसर पर अध्यापिकाओं ने यह भी समझाया कि मां केवल धार्मिक आस्था की प्रतीक नही है बल्कि वे हमें यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाई आने पर निडरता (कालरात्रि) अपनानी चाहिए। शिक्षा और तपस्या (ब्रह्मचारिणी) से ही सफलता संभव है। करुणा और संवेदना (स्कन्दमाता) जीवन को सुंदर बनाती हैं। शुद्धता और सत्य (महागौरी) को कभी नहीं छोडऩा चाहिए।

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