• मंदिरों में मां भवगती के दर्शनों को लग रही श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाइनें
  • माता वैष्णवी धाम में आयोजित नर्वाण महायज्ञ में डाली आहूति

Jind News (आज समाज) जींद। नवरात्र के चौथे दिन शुक्रवार को श्रद्धालुओं ने मां कूष्मांडा की पूजा की। श्रद्धालु अल सुबह ही मंदिरों में पहुंचे और मां भगवती की पूजा अर्चना की। जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने कहा कि नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अंड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने इष्त हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

मां कूष्मांडा के तेज से दसों दिशाएं आलोकित

मां कूष्मांडा के तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। आचार्य पवन शर्मा ने कहा कि जर्रे-जर्रे में है मां का वास, वही है सबकी सृजनहार, वही है सबकी पालनहार, वही है सबकी तारनहार। वही है सबके हृदय की धड़कन, वही ऊर्जा के रूप में पूरे शरीर में प्रवाहित हो रही है। जब वही सब कुछ कर रही है, तो फिर ईष्र्या किससे, नफरत किससे। अत: मां के विराट स्वरूप से प्यार करो, उसी को चाहो, उसी के बन जाओ।

आचार्य पवन शर्मा माता वैष्णवी धाम में नवार्ण महायज्ञ के दौरान मातृभक्तों संबोधित करते हुए कहा कि मां से प्यार करने का अर्थ है मां के बनाए हुए बंदों से प्रेम करना। यदि कोई मनुष्य यह कहे कि मैं अपने पड़ोसी से तो घृणा करता हूं, किंतु ईश्वर से प्रेम करता हूं तो वह झूठा है।

घट-घट वासी करता है मां की उपेक्षा

उन्होंने कहा कि जो प्राणी मंदिर में तो मां की मूर्ति की पूजा करता है, किंतु घट-घट वासी मां की उपेक्षा करता है तो उसकी वह भक्ति दिखावा है, छलावा है। ईश्वर करे हम ऐसी स्थिति में आ जाएं जब हमें सर्वत्र मां का ही दर्शन हों, जर्रे-जर्रे में उसकी ही झांकी दिखाई दे। अभी से इस साधना में लग जाओ व तब तक रूकना मत जब तक मां को पा न लो।

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