• पराली में आग लगाने से जमीन की उर्वरक क्षमता होती है कम : रवि

Jind News (आज समाज) जींद। कृषि विज्ञान केंद्र पांडू पिंडारा में फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर पांच दिवसीय ट्रेनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें 75 किसानों  ने हिस्सा लिया। इंजीनियर रवि ने किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आग लगाने से सबसे ज्यादा विकट समस्या पर्यावरण प्रदूषण की पैदा होती है। यह सीधे-सीधे हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। हमें सांस लेने तक में दिक्कत महसूस होती है। इसके अतिरिक्त पराली में आग लगाने से जमीन की उर्वरक क्षमता भी घटती है।

विभिन्न मशीनों की जानकारी किसानों के साथ सांझा की

जमीन के मित्र कीट भी पराली के साथ जल जाते हैं। किसानों को भी आगे आकर पराली में आग लगाने से बचना चाहिए और कुशल फसल अवशेष प्रबंधन की विभिन्न मशीनों की जानकारी किसानों के साथ सांझा की और बताया कि एक्स सीटू के तहत फसल अवशेष को खेत से बाहर ले जाकर उसका मैनेजमेंट किया जाता है।

इस नीति का मकसद राष्ट्रीय राजधानी और उसके आसपास लगते क्षेत्रों में पराली जलाने के मामलों में कमी लाने, टिकाऊ ऊर्जा के लिए धान की पराली का उपयोग करने और 2027 तक फसल अवशेष जलाने का चलन खत्म करना है। हरियाणा में हर वर्ष लगभग 30 लाख टन धान की पराली उपलब्ध होती है। यह कुछ दिनों तक प्रदूषण का कारण बन जाती है। जबकि इसमें किसानों की ताकत बनने की क्षमता मौजूद है।

पराली जलाने में कमी होने के साथ ही वायु गुणवत्ता और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा

डॉ. धीरज पंघाल ने फसल अवशेष जलाने से मिट्टी पडऩे वाले विपरीत प्रभाव के बारे में जानकरी प्रदान की। उन्होंने बताया की मिट्टी  में फसल अवशेष मिलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है तथा कार्बन की मात्रा बढ़ती है। पराली जलाने में कमी होने के साथ ही वायु गुणवत्ता और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा। हरियाणा में पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। डॉ. प्रीति मलिक ने फसल अवशेष को गृह वाटिका में प्रयोग करने का आग्रह किया तथा इससे बनने वाले विभिन उत्पादों की जानकारी दी।