एससीओ समिट में तीनों देशों ने मिलकर भविष्य की चुनौतियों का सामना करने पर दिया बल

SCO Summit  (आज समाज), तियानजिन : इस सप्ताह के पहले दो दिन वैश्विक परिदृश्य से बहुत अहम रहे। कारण था चीन में हो रही शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट। हालांकि यह समिट पहले भी होती आई है लेकिन इस बार इसका महत्व पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गया था। वर्तमान में अमेरिका ने जिन देशों पर टैरिफ लगाया है उनमें भारत शामिल है। वहीं चीन के साथ टैरिफ पर गंभीर मतभेद होने के बाद अमेरिका और चीन के बीच वार्ता जारी है। दूसरी तरफ अमेरिका रूस पर दबाव डाल रहा है कि वह शीघ्र यूक्रेन के साथ युद्ध समाप्त करे। इसी के चलते पूरे विश्व की निगाहें एससीओ समिट में इन तीनों देशों के प्रमुखों पर थी।

भारत और चीन ने आपसी मतभेदों से ऊपर उठने की सहमति

जैसे की पहले से उम्मीद जताई जा रही थी सात साल बाद भारत के पीएम का चीन दौरा इस बार बहुत अहम रहा। पीएम मोदी और चीन के राष्टÑपति शी जिनपिंग ने जहां दोनों देशों को आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर भविष्य की चुनौतियों का मिलकर सामना करने पर सहमति जताई वहीं जिनपिंग ने ट्रंप का नाम लिए बिना स्पष्ट कर दिया कि यह दौर किसी की दादागिरी दिखाने और सहने का नहीं है।

तीनों देश दुनिया का नया पावर सेंटर बनेंगे

दुनिया में डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एक नया वित्तीय ढांचा तैयार करने की कोशिश की जा रही है। भारत, रूस और चीन की यह दोस्ती दुनिया में एक नया पावर सेंटर बना सकती है, जो अमेरिका और उसके सहयोगियों से अलग होगा। यह सब दुनिया में शक्ति संतुलन को बदलने का काम कर रहा है न सिर्फ एससीओ बल्कि ब्रिक्स को मजबूत करके भी ये तीनों देश अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकते हैं।

दोनों संगठनों का मकसद अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देना है। अमेरिका की टैरिफ नीतियों ने इन देशों को और करीब लाकर खड़ा कर दिया है। हाल के वर्षों में ब्रिक्स एक बड़ा आर्थिक संगठन बनकर उभर रहा है, जिसकी अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। रूस और चीन मिलकर इसे और मजबूत बनाने में लगे हैं।

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