दोनों पड़ौसी देशों ने अमेरिका की नीतियों से निपटने के लिए बनाई योजना
Business News Hindi (आज समाज), बिजनेस डेस्क : अमेरिका द्वारा विश्व के प्रमुख देशों पर लगाए गए टैरिफ के बाद वैश्विक बाजार के हालात बदलने लगे हैं। सभी देश अमेरिका की जगह अन्य देशों के साथ व्यापार पर ज्यादा फोकस करने लगे हैं ताकि सामान परिस्थितियों में एक दूसरे के साथ सामान का लेन देन किया जा सके। भारत भी उन देशों में से एक है जो अमेरिद्वारा द्वारा लगाई गई उच्च टैरिफ दरों से बचने के लिए अन्य विकल्प तलाशने में जुटा है।
इसके लिए भारत ने पिछले दिनों जहां ब्रिटेन व कुछ अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं वहीं अब भारत और चीन भारत और चीन के बीच लंबे समय से ठप पड़ा सीमा व्यापार फिर शुरू होने जा रहा है। एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) और विश्व बैंक का अनुमान है कि व्यापार बहाली से शुरूआती चरण में दोनों देशों को हर साल 5-6 अरब डॉलर का लाभ होगा।
दुर्लभ खनिजों और उर्वरक आपूर्ति में आएगी तेजी
नई सहमति के तहत न सिर्फ हिमालयी दर्रों से पारंपरिक व्यापार को गति दी जाएगी, बल्कि दुर्लभ खनिजों और उर्वरक आपूर्ति की आपसी जरूरतें भी पूरी की जाएंगी।?विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम टैरिफ दबावों, विशेषकर अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों के बीच भारत को बड़ा राहत कवच देगा।
हजारों साल पुराने हैं दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते
भारत-चीन सीमा व्यापार हजारों साल पुराना है, जो सिल्क रूट एवं हिमालयी दर्रों के जरिये सदियों तक चलता रहा। नाथू ला दर्रा (सिक्किम) 1962 के युद्ध के बाद बंद हो गया था, लेकिन 2006 में इसे फिर खोला गया। यहां से कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता वस्तुओं का व्यापार होता है। लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड में है। भारत-चीन सीमा व्यापार में इसका भी योगदान रहा है। हिमाचल प्रदेश स्थित शिपकी ला दर्रा ऐतिहासिक रूप से ऊन, नमक, मसाले और स्थानीय उत्पादों के आदान प्रदान के लिए जाना जाता रहा है।
व्यापार के लिए इन मार्गों को खोला जाएगा
समझौते के तहत शिपकी ला दर्रा, सनाथुला दर्रा और अरुणाचल प्रदेश के बोमडिला मार्ग को प्राथमिकता से खोला जाएगा। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, चीन ने दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति का आश्वासन दिया है, जिनकी सर्वाधिक जरूरत भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों को है। भारत बदले में चीन को फॉस्फेट और पोटाश आधारित उर्वरकों की आपूर्ति करेगा। भारतीय उद्योग परिसंघ के मुख्य अर्थशास्त्री अरुण चतुवेर्दी ने कहा, यह समझौता भारत की विनिर्माण क्षमता को मजबूती देगा और चीन की खाद्य सुरक्षा रणनीति में योगदान करेगा।
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