सैटेलाइट के माध्यम से आपके फोन की लोकेशन ट्रैक करता है जीपीएस
Google Maps (आज समाज) नई दिल्ली: आज के डिजिटल युग में गूगल मैप्स एक ऐसा टूल बन चुका है, जो यात्रा की योजना से लेकर रास्ता ढूंढने और ट्रैफिक अपडेट तक हर चीज में मदद करता है। चाहे आपको अपने घर से आॅफिस का रास्ता जानना हो या फिर दिल्ली से कश्मीर की रोड ट्रिप प्लान करनी हो, गूगल मैप्स चंद सेकंड में दूरी, समय और रूट सब कुछ बता देता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर गूगल मैप्स कितनी दूरी तक रास्ता बता सकता है और इसके पीछे कौन-सी तकनीक काम करती है।
गूगल मैप्स दूरी की कोई सीमा नहीं रखता। यह लाखों किलोमीटर तक का रास्ता भी दिखा सकता है, बशर्ते उस दूरी के लिए सड़क मार्ग मौजूद हो। उदाहरण के लिए, आप भारत से यूरोप के किसी देश तक का रास्ता भी खोज सकते हैं। हालांकि, यह व्यावहारिक रूप से संभव न हो लेकिन तकनीकी रूप से मैप्स इसे दिखा सकता है।
जीपीएस और जीआईएस तकनीक का होता है इस्तेमाल
गूगल मैप्स के काम करने का तरीका काफी जटिल लेकिन दिलचस्प है। यह कई आधुनिक तकनीकों के साथ मिलकर काम करता है, जिनमें सबसे अहम है जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम। यह तकनीक सैटेलाइट के माध्यम से आपके फोन की लोकेशन ट्रैक करती है और बताती है कि आप किस जगह पर मौजूद हैं।
इसके अलावा गूगल एक खास सिस्टम इस्तेमाल करता है, जिसे जीआईएस यानी जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम कहते हैं। यह सिस्टम नक्शों, सड़कों और लोकेशन्स से जुड़ी ढेर सारी जानकारी को डिजिटल रूप में स्टोर करता है और जब आप रास्ता पूछते हैं, तो वह उस डेटा के आधार पर आपको गाइड करता है।
यूजर्स के व्यवहार को समझती हैं तकनीकें
गूगल मैप्स को स्मार्ट और अपडेटेड बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई और मशीन लर्निंग का भी बड़ा योगदान होता है। यह तकनीकें यूजर्स के व्यवहार को समझती हैं, जैसे आप रोज किस रास्ते से आॅफिस जाते हैं, कहां रुकते हैं, किस समय पर कौन-सा रास्ता खाली होता है, इन सभी बातों से गूगल सीखता है और अगली बार आपके लिए बेहतर सुझाव देता है। इतना ही नहीं, लाखों लोग जब रास्ते में जाम या किसी रुकावट की जानकारी गूगल को भेजते हैं, तो वह तुरंत सभी यूजर्स को अपडेट कर देता है कि इस रास्ते से बचें।