Feel the pain of every citizen sir! हर नागरिक के दर्द को महसूस कीजिए जनाब!

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हमारे एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मित्र विजय शंकर सिंह ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की। केरल की एक महिला पुलिस अधिकारी मेरिन जोजेफ के संज्ञान में 13 वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार का मामला सामने आया। उस बच्ची ने इस दर्द से निजात पाने को आत्महत्या कर ली। मेरिन ने इसे सामान्य घटना की तरह से नहीं लिया। उन्होंने संजीदगी के साथ आरोपी को हर हाल में जेल पहुंचाने का फैसला किया। उसको गिरफ्तार करने वह अरब तक पहुंच गर्इं। वहां से गिरफ्तार करके केरल की जेल तक लार्इं। यह अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी और निष्ठा होती है। सिर्फ ईमानदार कह देने से कोई ईमानदार नहीं हो जाता। उसको अपने कर्तव्य भी उसी तरह निभाने होते हैं। जन मानस के दर्द को भी महसूस करना होता है और उसके प्रति सम्मान का भाव भी रखना होता है। जब तक अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा नहीं होगी, कोरी ईमानदारी के कोई मायने नहीं हैं। लखनऊ में हमारे एक एडवोकेट मित्र हैं मोहम्मद नदीम आलम। नदीम को हमने सदैव गरीब गुरुबों के लिए वकालत करते देखा है। इंसाफ दिलाने के लिए वह अपनी जेब से भी खर्च कर देते थे। उन्होंने फैज की कुछ पंक्तियां लिखकर अपने दिल के हालात बयां किए ‘मैं इक फैज हूं, मेरी जात से, सबको मौला तू फैजयाब कर, मेरी वकालत इतनी वसीह कर, कोई दर्दमन्द न दिखाई दे!!
हमने इन दो साहबानों के उदाहरण ही इसलिए दिए क्योंकि पुलिस और वकीलों को लोग ऐसे परिभाषित करते हैं जैसे वो लुटेरे हों। उन्हें आमजन के दर्द का आभास ही न हो। निश्चित रूप से एक ही तरह का काम करते-करते, इन सेवाओं में लगे लोगों का व्यवहार कुछ रूढ़ हो जाता है मगर उनमें ही बहुत से अच्छे लोग भी होते हैं। हमें भी ऐसे लोगों को सही दिशा में काम करते वक्त प्रोत्साहित करना चाहिए। इस तरह के लोग प्रोत्साहन और आपके विश्वास-सहयोग के सिवाय कुछ नहीं चाहते। हमारे प्रधानमंत्री ने जब स्वच्छता अभियान शुरू किया तो लोगों ने सहयोग और विश्वास जताया, नतीजतन हमें सफलता मिली। उन्होंने जब कुछ और सुधारात्मक कदम उठाए तो लोगों ने सहयोग किया। इन सफलताओं के बाद अब उनकी भी जिम्मेदारी है कि जो नारे और विश्वास उन्होंने जनता को दिए, उन पर ईमानदार और निष्ठापूर्ण कदम उठाए जाने चाहिए। शायद ऐसा अभी तक हो नहीं पाया है। कुछ प्रयास हुए मगर उनमें नियत बेहतर करने से ज्यादा वोट बटोरने की रही है। हाल के दिनों में हमने देखा कि आंकड़ों में कैसे खेल करके अपनी उपलब्धता दर्शाई जा रही है जबकि वास्तविकता बिल्कुल अलग है। पीएमओ के पोर्टल पर आई शिकायतों के निपटारे का जो आंकड़ा सामने है, बिल्कुल उलट उसकी तस्वीर है। वजह साफ है कि जिन शिकायतों को निस्तारित बताया जाता है, असल में उन पर कुछ नहीं हुआ।
देश के हालात ऐसे हैं, भारत अब 45 वर्षों में उच्चतम बेरोजगारी दर से पीड़ित है। वैश्विक सर्वे के मुताबिक भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खराब देश बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रदूषण के मामले में दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 14 भारत के हैं। 18 साल में भारत के किसानों को सबसे बुरे मूल्य संकट का सामना करना पड़ा और हमारा देश विश्व का दूसरा सबसे असमान देश बन गया है। यही नहीं सीमा से लेकर देश के तमाम हिस्सों में भी हालात खराब हो रहे हैं, बावजूद इसके दावा किया जाता है कि देश खुशहाली के उच्चतम स्तर पर है। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देकर उनके सुरक्षित होने की बात की जाती है जबकि असलियत वैश्विक संस्थाओं की रिपोर्ट में भयावह है। घृणा की राजनीति और घटनाएं इतनी बढ़ गई हैं कि वैश्विक मंचों तक पर भारत को र्शमिंदा होना पड़ रहा है। हम बात तो स्वर्णिम काल की करते हैं मगर आचरण और व्यवस्थाएं आक्रांताओं के काल की करते हैं। हमें अपने लाभ तो नजर आते हैं मगर दूसरे जनों की हानियां दिखाई नहीं देती हैं। जरूरत सभी को समान दृष्टि से देखने समझने की है। हम खुशहाली का पैमाना आंकड़ों के खेल पर आधारित न करें बल्कि वास्तविकता में जांचें। लोकतंत्र में जनता का सुख और उन्नति ही लोकलाज होती है मगर जब यह नजरिया बदलने लगे तो समझ लीजिए कि आप कहां जा रहे हैं।
लोक संपत्ति पर स्थापित हुए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की हालत मरणासन्न है। टेलीकम्यूनिकेशन कंसल्टेंट्स इंडिया, टेहरी हाईड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरशन, नेशनल सीड्स कॉर्पोरशन, एफसीआई अरावली जिप्सम एंड मिनरल्स जैसे तमाम सार्वजनिक उपक्रम बिकने को तैयार हैं जबकि इससे कई गुना अधिक उपक्रमों को बेचने की अंतिम रूपरेखा तैयार हो रही है। आखिर क्या कारण है कि जो कंपनियां सरकार नहीं चला पा रही, उन्हें निजी कारपोरेट घराने चलाने को ललचा रहे हैं। वह साफ है कि सरकार में इच्छा शक्ति का आभाव है और निजी कंपनियां मुनाफे को कई तरह से देख रही हैं। हमने एचएमटी का दौरा किया तो देखा कि उनकी तमाम कंपनियों में भूसंपत्ति इतनी अधिक है कि वह कंपनी के अन्य संपत्तियों को मात करती है। सरकार ने इन कंपनियों की हालत खराब करने वालों के खिलाफ कोई कदम उठाने के बजाय उनसे पीछा छुड़ाने का सोच लिया। 2014 के चुनाव में वायदा यही किया गया था कि मरणासन्न उद्योगों को खड़ा किया जाएगा। इनके जरिए रोजगार के अधिकतम और विश्वसनीय हालात बनाए जाएंगे मगर दुखद स्थिति यह रही कि न इनकी हालत सुधरी और न रोजगार बढ़े। हम जब देश के विभिन्न कोनों में जाते हैं तो सिर्फ एक ही बात सुनने को मिलती है कि बच्चा पढ़ लिख गया है मगर कोई नौकरी नहीं मिल रही। नौकरी हो या रोजगार के समुचित अवसर, अगर नहीं मिल रहे और युवा भ्रमित है। ऐसे में निश्चित रूप से देश के लिए खतरनाक हालात पैदा होना तय है।
हमारा संविधान हमारे लिए गर्व का विषय है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में बने विश्व के सबसे बड़े संविधान को बनाने में देश के हर कोने के विद्वानों ने हिस्सा लिया था। उन्होंने देश के हालात और क्षेत्रीय भौगोलिक स्थितियों का आकलन करने के बाद इसे लोक कल्याणकारी गणराज्य का संविधान बनाया था। जैसा कि शब्द लोक कल्याणकारी से स्पष्ट होता है कि लोक के कल्याण में ही राष्ट्र का कल्याण निहित है। गणराज्य होने के कारण हर राज्य का भी हित समुचित मात्रा में देखा जाना जरूरी है। सभी नागरिकों में सम्मान का भाव उत्पन्न हो, इसके लिए उन्हें सम्मानजनक योथोचित रोजगार और सामाजिक सुरक्षा देना सरकार का काम है। सरकार जितना टैक्स हमसे लेती है, उसके बदले में बेहद कम जनता को दे रही है। सबसे बड़ा खर्च खुद सरकार का अपना है जो राष्ट्र के नागरिकों पर भार बन गया है। हमारी सरकार को हर नागरिक के दर्द को समझना होगा और उसको दूर करने पर काम करना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता, वास्तव में हम न खुद पर गर्व कर सकते हैं और न ही राष्ट्रीयता पर।
जय हिंद!

अजय शुक्ल
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)
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