Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | बिहार की राजनीति हमेशा से रोचक रही है और 2025 का विधानसभा चुनाव तो जैसे महाभारत सा लग रहा है। नवंबर में होने वाले इस चुनाव में मुख्य मुकाबला दो बड़े गठबंधनों के बीच है। एक तरफ एनडीए (बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम (सेकुलर) और अन्य छोटे दल) है तो दूसरी ओर महागठबंधन यानी इंडिया ब्लॉक (आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई (एमएल) और वीआईपी जैसे दल) है।
दोनों ही पक्षों ने तैयारी शुरू कर दी है। अब सवाल यह है कि कौन किस पर भारी पड़ेगा? इसके अलावा, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियां किसके वोट काटेंगी? लालू यादव परिवार में चल रही कलह का फायदा क्या एनडीए को मिलेगा? और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कमान संभालने से एनडीए को कितना लाभ होगा? लब्बोलुआब यह है कि बिहार के लिए एनडीए पूरी तरह से तैयार है, जबकि महागठबंधन में रार के हालात दिख रहे हैं।
सबसे पहले बात एनडीए की तैयारी की। एनडीए ने इस बार अपनी रणनीति को काफी मजबूत बनाया है। सीट बंटवारे का ऐलान हो चुका है। यह बंटवारा काफी सोच-समझकर किया गया लगता है, क्योंकि 2020 के चुनाव में जेडीयू को 115 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार उन्होंने 103 पर बात की थी। एनडीए ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी है, और नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। एनडीए की ताकत उसकी एकजुटता में है।
नीतीश कुमार की जेडीयू ग्रामीण इलाकों में मजबूत है, बीजेपी शहरी वोटरों को खींचती है और चिराग पासवान की पार्टी दलित वोटों पर पकड़ रखती है। इसके अलावा, एनडीए ने विकास के मुद्दों पर फोकस किया है। जैसे बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और कानून-व्यवस्था। अमित शाह ने खुद कहा है कि एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है और चुनाव बाद सीएम का फैसला विधायक दल करेगा। यह बयान एनडीए में किसी भी तरह की दरार को रोकने का तरीका लगता है।
वहीं, महागठबंधन की तैयारी अभी थोड़ी कमजोर नजर आ रही है। पूरे गठबंधन का सीट शेयरिंग फॉर्मूला अभी फाइनल (आलेख लिखे जाने तक) नहीं हुआ। आरजेडी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में युवा वोटरों और यादव-मुस्लिम समीकरण पर भरोसा कर रही है, जबकि कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) दलित और पिछड़े वर्गों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन गठबंधन में मुकेश साहनी की वीआईपी भी शामिल है और हाल ही में उन्होंने गठबंधन से अलग होने की धमकी दी थी। महागठबंधन की ताकत उसके सोशल इंजीनियरिंग में है, यादव, मुस्लिम, दलित और पिछड़े वोटों का गठजोड़। तेजस्वी यादव ने राघोपुर से नामांकन कर दिया है और वे बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों पर हमला कर रहे हैं। महागठबंधन इस हफ्ते अपना मेनिफेस्टो जारी कर सकता है।
अब सवाल है कि दोनों में कौन भारी पड़ेगा? हाल के ओपिनियन पोल्स को देखें तो मुकाबला काफी करीबी है। बिहार में 2.3 करोड़ मुस्लिम वोटर हैं, जो पारंपरिक रूप से आरजेडी और कांग्रेस के साथ रहते हैं। लेकिन एनडीए ने ऊपरी जाति, ईबीसी और कुर्मी वोटों पर मजबूत पकड़ बनाई है। यादव वोट (14%) आरजेडी के साथ मजबूत है, लेकिन दलित (16%) और मुस्लिम वोटों में बंटवारा हो सकता है। अगर एनडीए अपनी एकजुटता बनाए रखता है तो वह मजबूत स्थिति में रहेगा, लेकिन महागठबंधन अगर युवा और बेरोजगारी के मुद्दे पर वोटरों को जोड़ ले तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है। कुल मिलाकर, यह चुनाव विकास बनाम सामाजिक न्याय का लग रहा है।
चर्चा है कि इस चुनाव में दो नई पार्टियां जनसुराज और एआईएमआईएम वोट काटने वाली साबित हो सकती हैं। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, लेकिन किशोर खुद चुनाव नहीं लड़ रहे। उन्होंने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, जिसमें भोजपुरी सिंगर रितेश पांडे जैसे नाम हैं। जनसुराज का फोकस विकास, शिक्षा और रोजगार पर है, और यह ईबीसी और युवा वोटरों को आकर्षित कर सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि जनसुराज महागठबंधन के वोट ज्यादा काटेगी, क्योंकि यह आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। किशोर ने नीतीश कुमार की जेडीयू को 10-15 सीटों पर सिमटने की भविष्यवाणी भी की है, जो एनडीए को नुकसान पहुंचा सकती है।
एआईएमआईएम की बात करें तो असदुद्दीन ओवैसी ने 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने आजाद समाज पार्टी और अपनी जनता पार्टी के साथ ग्रैंड डेमोक्रेटिक एलायंस (जीडीए) बनाया है, जो 64 सीटों पर लड़ेगा। एआईएमआईएम का फोकस मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे सीमांचल पर है, जहां 2020 में उन्होंने 5 सीटें जीती थीं। ओवैसी ने इंडिया ब्लॉक से गठबंधन की पेशकश की थी, लेकिन ठुकराए जाने के बाद वे अकेले मैदान में हैं। इससे महागठबंधन के मुस्लिम वोट बंट सकते हैं, जो आरजेडी-कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा।
एनडीए को इसका फायदा मिल सकता है, क्योंकि मुस्लिम वोटों का बिखराव उनके लिए फायदेमंद साबित होगा। लेकिन अगर एआईएमआईएम कुछ सीटें जीतती है तो वह किंगमेकर बन सकती है। लालू यादव परिवार में चल रही कलह भी चुनाव को प्रभावित कर सकती है। तेज प्रताप यादव ने तेजस्वी यादव और मीसा भारती को एक्स पर अनफॉलो कर दिया है, जो परिवार में दरार का संकेत है। तेजप्रताप महुआ से नामांकन कर चुके हैं, लालू की बेटी रोहिणी आचार्य ने भी परिवार से नाराजगी जताई है। यह कलह आरजेडी के अंदरूनी एकता को कमजोर कर सकती है, और एनडीए इसका फायदा उठा सकता है। कुल मिलाकर, यह रिफ्ट एनडीए को मजबूत बनाती है।
अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भूमिका पर आते हैं। शाह ने एनडीए की कमान संभाली है और तीन दिन के दौरे पर बिहार में हैं। नीतीश कुमार से मिल चुके हैं। शाह ने साफ कहा है कि एनडीए नीतीश के नेतृत्व में लड़ रहा है, लेकिन सीएम का फैसला बाद में होगा। यह बयान गठबंधन में किसी भी असंतोष को दबाने का काम करता है। शाह की रणनीति हमेशा से बूथ लेवल पर मजबूत होती है और वे एनडीए के कार्यकर्ताओं को एकजुट कर रहे हैं। इससे एनडीए को फायदा होगा, क्योंकि शाह का अनुभव चुनावी मैनेजमेंट में बेजोड़ है। वे मुस्लिम फैक्टर को काउंटर करने के लिए हिंदू वोटों को मजबूत कर सकते हैं। कुल मिलाकर शाह की कमान एनडीए को मजबूत बनाती है और अगर वे सीट बंटवारे के विवादों को लगातार सुलझा रहे हैं।
अंत में यह चुनाव बिहार के भविष्य को तय करेगा। एनडीए की तैयारी मजबूत है, लेकिन महागठबंधन अगर एकजुट होता है तो मुकाबला कड़ा होगा। जनसुराज और एआईएमआईएम जैसे फैक्टर वोट काटकर खेल बिगाड़ सकते हैं और लालू परिवार की कलह एनडीए को फायदा देगी। अमित शाह की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है। बिहार के वोटर क्या फैसला लेंगे, यह 14 नवंबर को पता चलेगा। लेकिन एक बात साफ है।यह चुनाव सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि बिहार के विकास और सामाजिक न्याय का है। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)
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