Editorial Aaj Samaaj | राजीव रंजन तिवारी | लोकप्रियता और फैंस फॉलोइंग इसे ही कहते हैं। असम के सिलचर का वह मैदान इस बात का गवाह है कि जुबीन गर्ग के प्रति जेन जी में कितनी दीवानगी है। दो दिन पूर्व पूर्वोत्तर के सुपरस्टार, सिंगर, संगीतकार जुबीन गर्ग के 53वें जन्मदिन का जश्न सिलचर के ऐतिहासिक दाई मैदान में बेहद भव्य तरीके से मनाया गया। बराक वैली की सांस्कृतिक बिरादरी और हजारों की संख्या में जुटे संगीत प्रेमियों ने अपने प्रिय कलाकार के बर्थडे को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कार्यक्रम में करीब 10,000 से ज्यादा लोग शामिल हुए। अलग-अलग जगहों से पहुंचे लोग पोस्टर, बैनर, कटआउट और टी-शर्ट के साथ दिखाई दिए, जिन पर जुबीन गर्ग के फेमस गीत और तस्वीरें थीं। कार्यक्रम का सबसे भावुक क्षण तब देखने को मिला, जब बराक के कलाकारों ने बंगाली और असमिया दोनों भाषाओं में जुबीन गर्ग का प्रसिद्ध गीत माया बिनी प्रस्तुत किया। यह प्रस्तुति न केवल जुबीन के म्यूजिक कंट्रीब्यूशन को सलामी थी, बल्कि बराक वैली की सांस्कृतिक एकता का भी संदेश दे रही थी।

राजीव रंजन तिवारी, संपादक, आज समाज।

यूं कहें कि स्वर्ग जाने के दो माह बाद भी जुबीन गर्ग के समर्थक सड़कों पर हैं। आवाज उठा रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। अब स्थिति यह है कि जुबीन की मौत पर न्याय के लिए असम के लाखों लोगों की तरफ से की गई भावनात्मक अपील ने राज्य की भाजपा सरकार को उनकी मांग मानने पर बाध्य कर दिया। मुख्यमंत्री हिमंत सरमा ने कहा है कि अगर हम जुबीन गर्ग को न्याय न दिला पाएं तो 2026 में हमें वोट मत देना। 19 सितंबर को संगीतकार जुबीन गर्ग की मौत के बमुश्किल एक हफ्ते बाद यह एक लाइन बोलकर सरमा ने शोकाकुल माहौल को एक सियासी दांव में तब्दील कर दिया था। असम के सितारे जुबीन के असामयिक निधन पर सामूहिक शोक की भावना देखते-देखते विरोध प्रदर्शनों में बदल गई। मौके की नजाकत भांपते हुए सरमा ने जांच पर दांव लगा दिया। उन्होंने जुबीन के बड़े जेन जी फैन बेस को प्रभावित करने के नाटकीयता की हद तक प्रयास किए।

सितंबर के उस त्रासद दिन पूर्वोत्तर भारत महोत्सव में हिस्सा लेने पहुंचे 52 वर्षीय जुबीन की सिंगापुर के सेंट जॉन्स द्वीप पर तैरते समय मौत हो गई थी। अधिकारियों ने इसे डूबने से हुई मौत बताया था। लेकिन लाखों असमियों ने इसे साजिश माना और सचाई सामने लाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान शुरू हो गया। लोगों के शक की सुई दो लोगों पर केंद्रित थी, वो हैं पूर्वोत्तर महोत्सव के आयोजक श्यामकानु महंत और जुबीन के मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा। अटकलें लगाई गईं कि दोनों ने सेहत से जुड़े तथ्यों को नजरअंदाज किया जो जानलेवा साबित हुआ। दरअसल, जुबीन दो वर्ष पहले दिल के दौरे के शिकार हुए थे और डॉक्टरों ने उन्हें पानी में न जाने की सलाह दी थी। श्यामकानु दो प्रभावशाली हस्तियों, असम के सूचना आयुक्त और पूर्व डीजीपी भास्कर महंत और गुवाहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति और हाल तक असम सरकार में कैबिनेट रैंक के शिक्षा सलाहकार रहे ननी गोपाल महंत के भाई हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत सरमा के करीबी सहयोगी ननी गोपाल आरएसएस से भी गहराई से जुड़े हैं।

आरोप है कि जुबीन के करीबियों ने यह संकेत दिया कि गायक को पता चल गया था कि श्यामकानु और सिद्धार्थ उनके नाम का इस्तेमाल कर पैसे बना रहे हैं। इसलिए उनकी आवाज बंद करा दी गई। हालांकि मामले में 60 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें दोनों पर आपराधिक लापरवाही से लेकर हत्या तक में शामिल होने के आरोप लगाए गए हैं। शुरू में सरमा ने सिंगापुर के अधिकारियों के निष्कर्षों का हवाला देते हुए किसी गड़बड़ी की बात को खारिज कर दिया था। लेकिन जनाक्रोश देखकर उन्होंने अपना रुख बदला। सिंगापुर में हुए शव परीक्षण की रिपोर्ट आने के पहले ही सरमा ने 23 सितंबर को गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दूसरा पोस्टमॉर्टम कराने का आदेश दिया। जहरीले पदार्थों की जांच के लिए विसरा के नमूने दिल्ली भेजे गए, जिससे जहर दिए जाने की साजिश की अटकलों को बल मिला। दस सदस्यीय एसआइटी गठित कर दो हफ्ते में रिपोर्ट देने का आदेश जारी किया गया। इसके अलावा एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग भी बना दिया। सरमा नेपाल की जेन जी आंदोलन जैसी अशांति रोकने को पूरी तरह तैयार दिखे।

आपको बता दें कि सीआइडी ने एक अक्टूबर को श्यामकानु और सिद्धार्थ को गैर-इरादतन हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया, लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि मामला कानूनी तौर पर कमजोर है। फिर सरकार ने वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाए और श्यामकानु की जांच प्रवर्तन निदेशालय को सौंप दी। मामला तब और भी उलझ गया जब सिंगापुर में मौजूद रहे जुबीन के बैंड के साथी शेखर ने पुलिस से अपने पिछले बयान के उलट कहा कि श्यामकानु और सिद्धार्थ ने गायक को जहर दिया था। इस आधार पर पुलिस ने सिंगापुर से एक गायिका और जुबीन के चचेरे भाई संदीपन गर्ग को भी गिरफ्तार कर लिया। 11 अक्टूबर को सरकार की तरफ से जुबीन को मुहैया कराए गए दो निजी सुरक्षा अधिकारियों नंदेश्वर बोरा और परेश बैश्य को संदिग्ध बैंक गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इस बीच मामले से जुड़ी हर बात लाखों सोशल मीडिया पोस्ट में बनी रही। लोगों ने सवाल उठाया कि एसआइटी ने घटनास्थल का निरीक्षण क्यों नहीं किया।

इसे जेन जी का खौफ ही कहें कि राजनीतिक दलों ने जनता के आक्रोश का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विपक्षी नेताओं में कांग्रेस के गौरव गोगोई और रायजोर दल के अखिल गोगोई (जो कभी जुबीन के आलोचक रहे थे) ने सीबीआइ जांच की मांग उठाई और आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सरमा श्यामकानु को बचा रहे हैं। सरमा ने सार्वजनिक तौर पर वादा किया कि अगर एसआइटी जांच में कोई कमी रही तो वे मामला सीबीआइ को सौंप देंगे। जैसे-जैसे गोगोई ये आरोप लगाते रहे कि गिरफ्तारी, घर सील होने और बैंक खातों को फ्रीज किए जाने के बाद भी श्यामकानु को खास सुविधाएं मिल रही हैं, अधिकारियों ने भी जरूरत से ज्यादा सख्ती दिखानी शुरू कर दी। इसी क्रम में श्यामकानु को विचाराधीन कैदियों के बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। गोगोई ने 17 अक्टूबर को राहुल गांधी को जुबीन के अंतिम संस्कार स्थल पहुंचने के लिए राजी करके कांग्रेस आलाकमान को भी इस मामले में शामिल कर लिया। 19 अक्तूबर को विपक्ष ने गुवाहाटी में एक सार्वजनिक स्मारक पर अपनी एकजुटता दिखाई, जिसमें कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीय परिषद के नेताओं के अलावा सांस्कृतिक हस्तियां भी मौजूद थीं।

अखिल गोगोई ने मुख्यमंत्री की पत्नी रिनिकी भुइयां सरमा पर आरोप लगाया कि जुबीन की मौत की खबर मिलने के बावजूद उन्होंने सिंगापुर नॉर्थ ईस्ट फेस्टिवल में अपने ब्रांड गोल्डन थ्रेड्स ऑफ असम का फैशन शो जारी रख असंवेदनशीलता दिखाई। रिनिकी ने इस आरोप को खारिज कर आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया है। इस बीच, मिया समुदाय यानी प्रवासी मूल के बंगाली भाषी मुसलमान भी जुबीन को एक साझी संस्कृति का प्रतीक बता रहे हैं। असम में सरमा की लोकप्रियता आंशिक तौर पर मियाओं के प्रति उनके सख्त रुख के कारण ही उपजी है, जिन्हें अधिकांश मूल असमी लोग सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय खतरा मानते हैं। उनके आलोचक अब इस बात को रेखांकित कर रहे हैं कि जुबीन धर्म और जाति को उतना महत्व नहीं देते थे। सरमा ने इसके जवाब में उनके शिव टैटू और असम को अवैध प्रवासियों से मुक्त कराने से जुड़े एक गाने का हवाला दिया। जुबीन की विरासत को हथियाने की कोशिश सरमा की प्रवासी-विरोधी राजनीति के लिए एक चुनौती भी बन सकती है, खासकर ऊपरी असम में जहां गौरव गोगोई के उभरने से अहोमों का समर्थन भाजपा से छिटक सकता है।

बहरहाल, कह सकते हैं कि जुबीन गर्ग की मौत के दो माह बाद भी असम में सियासी घमासान के हालात दिख रहे हैं। दरअसल, जुबीन की फैंस फॉलोइंग बहुत बड़ी है और उनके समर्थकों में इस मौत से नाराज़गी है। खैर, राज्य सरकार नियमानुसार अपना काम कर रही है। बावजूद इसके कहा जा रहा है कि सरकार पर कथित रूप से जेन जी का दबाव है। अगले साल असम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उसकी तैयारियां अभी से आरंभ कर दी गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों इन तैयारियों में लगी हुई हैं। शायद, इसीलिए मुख्यमंत्री सरमा ने जुबीन गर्ग के परिजनों को न्याय दिलाने का वादा किया है। देखते हैं क्या होता है। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।) 

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