Editorial Aaj Samaaj | राकेश शर्मा |सत्ता प्राप्ति के तरकश के सारे बाण चलाकर, झूठे आरोप लगाकर, लगातार 90 बार चुनाव हरवाकर, हताश, निराश और परेशान लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भारत की जेन जी से अपील कर दी की वह लोकतंत्र बचाने और संविधान की रक्षा के लिए आगे आयें और वह उनका साथ देंगे। क्या यह अराजकता भड़काना नहीं है। क्या इसे देश के स्थायित्व, प्रगति, विकास के ख़िलाफ़ षड्यंत्र की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा। क्या राहुल गांधी का उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्त कर विदेशी मंसूबों को पूरा करना नहीं है। वरना ऐसी बातें कौन और क्यों करेगा।
वैसे राहुल युवाओं में कितने प्रचलित हैं, वह आज दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई को मिली करारी हार ने बता दिया। भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने चार में से अध्यक्ष सहित तीन सीटों पर विजय प्राप्त कर एनएसयूआई को करारी शिकस्त देकर बता दिया है कि राहुल गांधी और कांग्रेस की युवाओं के बीच क्या दशा है। भविष्य में यह और भी खराब स्थिति में जाने वाली है। कांग्रेस और राहुल गांधी को यह समझना चाहिए।
खैर, इसका एक मतलब तो साफ़ है कि राहुल गांधी ने देश के समक्ष अपनी हार स्वीकार कर ली है कि सत्ता परिवर्तन उसके बस की बात नहीं। अब इसके पास देश में अराजकता, हिंसा और विद्रोह के लिए जेन जी को भड़काने और देश में दंगे फैलवाने के अलावा सत्ता परिवर्तन का कोई चारा नहीं है। इसके चाटुकारों ने शायद इसे समझा दिया जेन जी के जरिए भारत में भी बांग्लादेश और नेपाल की तरह सत्ता परिवर्तन हो जाएगा। शायद बिल्ली के भाग्य से छीका टूट जाए और देश के दुर्भाग्य से यह प्रधानमंत्री बन जाए। लेकिन यह स्वप्न है। ऐसा स्वप्न देखने से इसे कौन रोक सकता है। क्या यह अपने को जय प्रकाश नारायण समझने लगा है कि इसके कहने से देश में जन क्रांति हो जाएगी।
किसी भी जननायक को सबसे पहले जनता का विश्वास जीतना पड़ता है, जनता के बीच तारतम्य बैठाना होता है, जनता में विश्वास जगाना पड़ता है कि यह व्यक्ति कुछ और बेहतर कर सकता है। साथ में देश में बहुत कुछ गलत हो, तभी कोई ऐसी कपोलकल्पित अराजकता फैलाने का आव्हान कर सकता है। राष्ट्र में आज भारत सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सभी मापदंडों पर राहुल गांधी से बहुत आगे है। राहुल हर बात में अस्पष्ट है, विदेशी एजेंडे को आगे बढ़ाता दिखता है जबकि मोदी हर समय भारत और भारतीयों की बात सोचते हैं।
राहुल गांधी को समझना होगा कि यह साठ, सत्तर, अस्सी के दशक का भारत नहीं है जो गरीबी हटाओ जैसे नारों की घुट्टी पीकर झांसे में आ जाता था। अब संचार क्रांति के दौर में सभी को देश विदेश की सभी जानकारियां तुरंत मिलती हैं। उसे यह भी मालूम है कि कठिनतम परिस्थितियों में नरेंद्र मोदी ने विश्व भर में भारत का नेतृत्व कर कैसे भारत मां का सिर ऊंचा उठाया, किसी का दबाव नहीं सहा। चाहें वह विश्व का सर्वशक्तिशाली अमेरिका हो या आतंकवादी पाकिस्तान। पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा और टैरिफ के मामले में अमेरिका को भी झुका दिया। यह भारत की मजबूती, कूटनीति, सामरिक और आर्थिक शक्ति को दर्शाता है।
यह कांग्रेस का शासन नहीं है जब हर मसले पर उस समय का नेतृत्व विश्व में हर देश के सामने घुटने टेक देता था। राहुल गांधी जो देश को भारत राष्ट्र ना मानकर राज्यों का समूह कहता है, विदेशों में झूठ बोलता है कि भारत में सरदार पगड़ी और कड़ा नहीं पहन सकते, विदेशी शक्तियों से भारत में लोकतंत्र स्थापित करने की मदद मांगता है। डीप स्टेट से मदद लेकर भारत को अस्थिर करना चाहता है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को डैड इकॉनमी कहता है। कभी पेगासिस, कभी हिडेनबर्ग, कभी किसी और विदेशों से आयातित मुद्दों पर संसद ठप करवाता है। राहुल की इस नीति को देश के लोग अच्छी तरह समझते हैं।
राहुल गांधी भारतीय संवैधानिक संस्थाओं को हर वक्त बदनाम करता है, वोट चोर गद्दी छोड़ जैसे बेबुनियाद नारे लगाता है। चौकीदार चोर है जैसे अनर्गल नारे लगाकर कई मौकों पर सर्वोच्च न्यायालय में माफ़ी मांग चुका है, सनातन को गालियां देने वालो का समर्थन करता है, पाकिस्तान की बोली बोलता है उसपर जेन जी या कोई भी देश में कैसे विश्वास कर सकता है और उसकी आवाज पर आंदोलन के लिए सड़कों पर क्यों आयेगा। जन नेता बनने के लिए राहुल गांधी को अपने में झांकना होगा, सुधार करना होगा। वरना इसकी सारी शरारतें भारत की जनता समझ रही है और वह अपना हित जानती है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और रहेगा लेकिन देश के अहित की सोच रखने वालों का कोई तो इलाज करना होगा। वरना ये लोग भारत मां को अपनी बपौती मानने वाले ऐसी हरकतें करते रहेंगे, कभी कोई भूल चूक भी हो सकती है। बहरहाल, राहुल गांधी को अनाप-शनाप फैसले लेने और बोलने से पहले सोचना चाहिए। उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि उनके कहने पर जेन जी हरकत में आने वाला नहीं है। (लेखक आज समाज के कार्यकारी निदेशक हैं)।