Editorial Aaj Samaaj | राजीव रंजन तिवारी | जो भुक्तभोगी है, उससे नहीं, जो दूर बैठे दर्द को जी रहा है, उससे पूछिए दहशत का दर्द। जी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की राजधानी दिल्ली में दहशत का दर्द कुछ इसी तरह महसूस किया जा रहा है। दहशत का आलम यह है कि अमूमन हर व्यक्ति एक दूसरे को संदिग्ध निगाह से देख रहा है। मोहब्बत तो जैसे हवा हो गई है। आपसी रिश्ते भी मधुर नहीं रहे। डर लग रहा है। आखिर हम किस तरह का समाज बनते और बनाते जा रहे हैं। इंसानियत के आगे धर्म-मजहब सब बेमानी है और सियासत सबसे ऊपर। सियासत के लिए कुछ भी करेगा, जैसा भाव तड़पाए जा रहा है। कुछ भी हो जाए, पर सियासत जारी रहे। बात दहशत के दर्द और आतंक के अक्स की हो रही थी। हम रास्ता भटक गए। रग-रग में सियासत जो समाया हुआ है। कोई भी बात मुकम्मल नहीं हो पाती। बीच में सियासत टांग अड़ा देती है।

अब बात मुद्दे की करते हैं। दिल्ली में लाल किले के पास हुए कार ब्लास्ट की घटना की जांच जारी है। इस बीच कांग्रेस नेता और देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने घरेलू आतंकवाद पर बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि आतंकवादी दो तरह के होते हैं। एक जो विदेश से ट्रेनिंग लेते हैं और दूसरे घरेलू आतंकवादी। पी चिदंबरम ने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले से पहले और बाद में भी वह यही कहते आए हैं, लेकिन उनका मजाक उड़ाया गया और उन्हें ट्रोल किया गया। मैंने संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान भी यही कहा था। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस पर चुप्पी साध ली है, क्योंकि वह जानती है कि घरेलू आतंकवादी भी होते हैं। उन्होंने कहा कि इस पोस्ट का मकसद यह है कि हमें खुद से पूछना चाहिए कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं, जो भारतीय नागरिकों, यहां तक कि पढ़े-लिखे लोगों को भी आतंकवादी बना देती हैं।
इससे पहले केंद्र सरकार ने दिल्ली कार ब्लास्ट की घटना को आतंकी हमला मानते हुए बयान जारी किया था। केंद्रीय कैबिनेट ने 12 नवंबर को प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि लाल किले के पास कार विस्फोट के माध्यम से देशविरोधी ताकतों द्वारा जघन्य आतंकवादी घटना को अंजाम दिया गया। कैबिनेट ने घटना की जांच का निर्देश देते हुए कहा कि दोषियों की जल्द पहचान की जाएगी और बिना देरी के उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कैबिनेट मीटिंग से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट की सुरक्षा समिति की बैठक भी ली थी। इसका मकसद था कि स्थिति की समीक्षा की जाए और हमले की चल रही जांच का आकलन किया जाए। समाचार यहीं समाप्त नहीं हुआ या यूं कहें कि अब शुरू हुआ है। चिदंबरम के वक्तव्य ने इस तरह की बहस को जन्म दिया है, जो लंबा खींचेगा और उस पर विचार-विमर्श भी होगा।
मेरा मत है कि चाहे वह आतंकी हो या सरकार अथवा दहशत के दर्द को अपनी भाषा में परिभाषित करने वाले चिदंबरम सरीखे लोग। इंसानियत को ऊपर रखना सबके लिए श्रेयस्कर होगा। घटना होने के बाद चिल-पों मचाना कहीं से भी अच्छा नहीं लगता। हां, उन्हें जरूर संतुष्टि मिलती है, जो प्रतिक्रियावादी टाइप के होते हैं। घटनाओं के बाद की कार्रवाईयों को देखकर उन्हें लगता है कि सरकार और सुरक्षाकर्मियों ने बदला ले लिया। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ने वाला है। दहशत भी फैल गई। आतंक भी कायम हो गया। लोग मारे भी गए। फिर कार्रवाई का ढिंढोरा पीटकर किसे संतुष्ट करने की कोशिश की जाती है। नोट करने वाला बिंदू यही है, जिस पर मैं बार-बार आकर रुक जाता हूं। फिर कहना पड़ता है कि मैं रास्ता भटक गया था। बात कुछ और हो रही थी और मैं कुछ और ही कहने लगा। फिर वही राग कि रग-रग में सियासत भरी है। क्या करें।
कोई नहीं, फिर शुरू करते हैं। दिल्ली धमाके के बाद एक सवाल किया जा रहा था कि क्या लाल किले पर ब्लास्ट से पहले डॉक्टर उमर और डॉक्टर मुजम्मिल तुर्किए गए थे? क्या उन्होंने वहां किसी आतंकी शिविर में भाग लिया था? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो दिल्ली आतंकी हमले के बाद सभी के जेहन में घूम रहे हैं। तुर्किए एक ऐसा देश है जहां पहले भी आतंकी गतिविधियां हुई हैं। ऐसे में अगर कहीं से भी इस देश का नाम आता है तो सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। एजेंसियों ने अब तक इस मामले पर कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में नाम सामने आने के बाद तुर्किए का रिएक्शन सामने आ गया है। तुर्किए ने इस पूरी थ्योरी को झूठा और भ्रामक बताया है। दरअसल, दावा किया गया था कि तुर्किए, भारत में आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ा हुआ है और आतंकवादी समूहों को सैन्य, राजनयिक और वित्तीय सहायता प्रदान करता है। ये हमारे द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से एक दुर्भावनापूर्ण और गलत अभियान का हिस्सा है।
अब तुर्किए की ओर से आए बयान में कहा गया है कि तुर्किए भारत या किसी अन्य देश को निशाना बनाकर कट्टरपंथी गतिविधियों में किसी भी तरह से, किसी भी रूप में शामिल नहीं है। ये दावे पूरी तरह से भ्रामक है और इसमें कोई तथ्यात्मक आधार नहीं हैं। दरअसल, डॉक्टर उमर और मुजम्मिल की तुर्किए यात्रा को लेकर कई बातें सामने आई हैं। जांच एजेंसियों को शक है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के नेटवर्क की वजह से ही डॉक्टर मुजम्मिल और डॉक्टर उमर ने तुर्किए की यात्रा की थी। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि ये दोनों डॉक्टर टेलीग्राम और सिग्नल जैसे ऐप्प का इस्तेमाल करते थे। मैसेजिंग ऐप्प पर बने ग्रुप्स में इन्हें कुछ ऐसे निर्देश मिले, जिसके बाद इन्होंने तुर्किए की यात्रा की। ये निर्देश क्या थे, ये अब तक सामने नहीं आया है।
जानकार मानते हैं कि तुर्किए अपनी लोकेशन की वजह से आतंकियों के लिए मुफीद माना जाता रहा है। इस्लामिक स्टेट से जुड़ने वाले अधिकतर लोग पहले तुर्किए ही गए थे। इसीलिए इस देश को सीरिया का बैकडोर भी कहा जाता है। एजेंसियों को शक है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के नेटवर्क की वजह से ही डॉक्टर मुजम्मिल और डॉक्टर उमर ने तुर्किए की यात्रा की थी। तुर्किए से लौटने के बाद दोनों डॉक्टरों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में एक्टिव होने की योजना बनाई थी। जैश-ए-मोहम्मद में उनके हैंडलर ने उन्हें निर्देश दिए थे कि वो देश में फैल जाएं। किसी एक जगह फोकस न करें। ऐसा करने से पकड़े जाने की संभावना बढ़ सकती है। इसी निर्देश के बाद दोनों ने फरीदाबाद और सहारनपुर को चुना। अब जांच जारी है कि क्या मुजम्मिल और उमर ने तुर्किए में किसी ट्रेनिंग कैंप में भाग लिया था। इनके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की भी जांच कर चैट्स और कम्युनिकेशन डिटेल्स को खंगाला जा रहा है।
खैर, दिल्ली विस्फोट के बाद पुलिस ने यूएपीए और विस्फोटक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। इस घटना की जांच एक आतंकवादी कृत्य के रूप में की जा रही है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी इस जांच का प्रभार संभाल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने का संकल्प लिया है, जबकि विपक्ष ने सरकार से जवाबदेही की मांग की है। हाल के दिनों में हुए घटनाक्रमों से पता चलता है कि विस्फोट में मारा गया संदिग्ध देश में कथित तौर पर आतंकवादी हमलों की साजिश रचने वाले अन्य लोगों के एक गिरोह से जुड़ा था। जनता को और अधिक स्पष्टता के लिए तब तक इंतज़ार करना होगा जब तक कि जांचकर्ता और जानकारी देने की स्थिति में न आ जाएं।
निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाकर की जाने वाली बिना सोचे-समझे हिंसा लंबे समय से भारत के लिए एक अभिशाप रही है। हालांकि, हाल के वर्षों में संगठित आतंकवाद की घटनाएं संघर्ष क्षेत्रों तक ही सीमित रही हैं। आतंकवाद निरोध भारत और दुनिया भर में ध्रुवीकरणकारी बहस का विषय रहा है। भारतीय संदर्भ में यह विचार कि एक कथित नरम राज्य आतंकवाद को अनुमति देता है, 2014 से सत्ता में रही भाजपा द्वारा प्रचारित किया गया है। केंद्र ने जांचकर्ताओं को सशक्त बनाने और किसी भी आरोपी के लिए आतंकवाद के आरोपों से बचाव करना मुश्किल बनाने के लिए कानूनों में बदलाव किए हैं। कठोर कानूनों के साथ-साथ केंद्रीय और राज्य बलों द्वारा व्यापक सुरक्षा उपाय भी किए गए हैं। एक स्मार्ट और प्रभावी सुरक्षा नीति उन घटनाओं की अनुपस्थिति से संकेतित होती है, जो ध्यान से नहीं जाती हैं, भले ही एक छोटी सी चूक एक बड़ी घटना और सार्वजनिक आक्रोश का कारण बन सकती है।
यह उल्लेखनीय है कि राज्यों में कई लोगों की गिरफ्तारी के साथ-साथ हथियारों, विस्फोटकों और अन्य सामग्रियों की बरामदगी से रासायनिक आतंकवादी हमले की संभावित रूप से अधिक खतरनाक साजिश को रोका जा सकता है। यह मानना तर्कसंगत है कि पुलिसिंग किसी भी व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण का केवल एक घटक है। नागरिकों को आश्वस्त करने के लिए सरकार द्वारा एक त्वरित और पारदर्शी जांच के बाद सक्रिय राजनीतिक उपाय किए जाने चाहिए। सार्वभौमिक रूप से आतंकवादी रणनीति का उद्देश्य सामाजिक अराजकता को भड़काना और राज्य की वैधता को कमजोर करना है। एक प्रभावी आतंकवाद-रोधी रणनीति के तहत सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देना चाहिए। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।)
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