Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | बिहार चुनाव 2025 की सरगर्मियां अब चरम पर हैं। छह और 11 नवंबर को मतदान होना है और 14 नवंबर को परिणाम आएंगे। हर कोई जानना चाहता है कि एनडीए की तैयारी कैसी है और महागठबंधन कितना मजबूत खड़ा है। प्रशांत किशोर उर्फ पीके का जन सुराज किसको नुकसान पहुंचाएगा और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम एंट्री से महागठबंधन को कितना झटका लगेगा? कौन से मुद्दे हावी रहेंगे और किसका प्रचार ज्यादा असरदार साबित होगा? अलबत्ता, पीके और ओवैसी पर सबकी खास निगाहें हैं।
सबसे पहले एनडीए की तैयारी की बात करें। एनडीए में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) यानी एलजेपी-आर, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (रालोमो) शामिल हैं। जदयू प्रमुख नीतीश कुमार अभी मुख्यमंत्री हैं और वे अपनी सुशासन वाली पहचान पर टिके हुए हैं। एनडीए की रणनीति है महिलाओं और बुजुर्गों को लुभाना। जैसे, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.21 करोड़ महिलाओं को 10 हजार रुपये दिए गए। इसके अलावा, आंगनवाड़ी वर्कर्स और मिड-डे मील कुक को सैलरी बढ़ाई गई। एनडीए का फोकस है डबल इंजन सरकार पर। यानी केंद्र से फंड और राज्य में विकास का काम। फिर भी, महिलाओं का सपोर्ट नीतीश कुमार को बड़ा फायदा दे सकता है, क्योंकि महिलाएं रिलीफ स्कीम से खुश हैं। एनडीए का दावा है कि वे 2/3 बहुमत से आएंगे, लेकिन ग्राउंड पर मुकाबला टाइट है।
अब महागठबंधन की तैयारियों पर नजर दौड़ाते हैं। इसमें आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और छोटी पार्टियां हैं। राजद नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया गया है, जो एक बड़ा कदम है। सीट शेयरिंग में आरजेडी ने सबसे ज्यादा सीटें लीं है। तेजस्वी यादव की रणनीति है युवाओं और पिछड़ों को जोड़ना। वे वादा कर रहे हैं कि हर घर में एक सरकारी नौकरी, 2 लाख जीविका दीदियों को 30 हजार महीने की जॉब और महिलाओं को 2,500 रुपये महीना माई बहन मान स्कीम के अंतर्गत देंगे। इसके अलावा, 1,500 रुपये पेंशन विडो और बुजुर्गों को, और 25 लाख तक फ्री ट्रीटमेंट। महागठबंधन का जोर है जातीय समीकरणों पर, जैसे एम-वाई (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक पर। कुल मिलाकर, महागठबंधन की तैयारी भी ठीक है, लेकिन सियासी तालमेल उतनी अच्छी नहीं है, जितनी धरातल पर चाहिए।
अब आते हैं जन सुराज की रणनीति पर। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज नई पार्टी है। 2 अक्टूबर 2024 को लॉन्च हुई थी। प्रशांत किशोर खुद चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन उनकी पार्टी 240 सीटों पर लड़ रही है। उनका असर क्या होगा? ग्राउंड रिपोर्ट्स कहती हैं कि जन सुराज सवर्ण और युवा मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। लेकिन तेजस्वी के युवा वोटर्स भी थोड़े शिफ्ट हो रहे। प्रशांत किशोर का दावा है कि या तो 10 सीटें आएंगी या 150, बीच में कुछ नहीं। लेकिन हाल में उनके तीन कैंडिडेट्स ने नाम वापस ले लिए। अगर जन सुराज 10-20 सीटें जीत गई, तो ये थर्ड फोर्स बन सकती है, लेकिन अभी हाइप ज्यादा है और धरातल पर हकीकत कम दिख रहा है।
अब चर्चा असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम की। ओवैसी ने 25 कैंडिडेट्स उतारे हैं और ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया है, जिसमें 64 सीटों पर लड़ेंगे। उनका फोकस सीमांचल पर है, जहां मुस्लिम वोटर्स ज्यादा हैं। बिहार में 2.3 करोड़ मुस्लिम वोटर्स हैं, जो मूल रूप से राजद और कांग्रेस को जाते हैं। महागठबंधन को यहां बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि यथासंभव मुस्लिम वोट शिफ्ट हो सकता है। जैसे, सीमांचल में पोलराइजेशन से एनडीए को फायदा मिल सकता है। राजद नेता तेजस्वी यादव नहीं चाहते थे कि एआईएमआईएम उनके साथ आए, क्योंकि वो अपना वोट बैंक नहीं बांटना चाहते थे। अनुमान है कि एआईएमआईएम 5 से 10 सीटें जीत सकती है, लेकिन महागठबंधन को 20-30 सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है, खासकर जहां मुस्लिम 15-20 फीसद हैं। ये महागठबंधन के लिए बड़ा सिरदर्द है।
अब मुद्दों की बात। बिहार चुनाव में बेरोजगारी और पलायन सबसे बड़े मुद्दे हैं। युवा कहते हैं कि जॉब्स नहीं हैं, इसलिए बाहर जाना पड़ता है। स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्या भी हावी है। गांवों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स नहीं, स्कूलों में बेंच-टॉयलेट नहीं। एनडीए सुशासन और वेलफेयर पर जोर दे रहा, जैसे पेंशन ट्रिपल करना। महागठबंधन का ध्यान फ्रीबीज पर है। जातीय समीकरण भी बड़ा मुद्दा है। राजपूत, कुशवाहा, भूमिहार शिफ्ट हो रहे। महिलाओं के लिए स्कीम्स हावी रहेंगी, क्योंकि 80 फीसदी महिलाएं एनडीए के साथ हैं, गुटखा पर 40 प्रतिशत जीएसटी और मोदी की स्कीम से। फ्रीबीज की रेस चल रही, लेकिन बिहार का डेब्ट करीब .35 लाख करोड़ है, जो जीडीपी का 33 प्रतिशत है, जो सस्टेनेबल नहीं है।
प्रचार-प्रसार का कितना असर पड़ेगा? यदि इस सवाल का जवाब तलाशेंगे तो कहानी कुछ और ही दिखेगी। एनडीए का प्रचार मोदी और नीतीश पर टिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी वर्कर्स से बात की और नीतीश कुमार महिलाओं को लुभा रहे। लेकिन तेजस्वी का जोश युवाओं को पसंद आ रहा है। वे कहते हैं कि हम बदलाव लाएंगे। महागठबंधन का मेनिफेस्टो जल्द आएगा। जन सुराज का प्रचार प्रशांत की स्पीचेस पर, लेकिन कैंडिडेट्स बैकआउट से असर कम। ओवैसी का प्रचार सीमांचल में जोरदार है, जो मुस्लिमों को आकर्षित कर रहा। कुल मिलाकर, एनडीए का प्रचार स्टेबल है, महागठबंधन का आक्रामक। महिलाएं और बुजुर्ग एनडीए को मजबूत करेंगे, युवा महागठबंधन को। अंत में, ये चुनाव टाइट है। जन सुराज और ओवैसी गेम चेंजर बन सकते हैं या नहीं, यह कहना मुश्किल है। बिहार को डेवलपमेंट चाहिए, फ्रीबीज नहीं।
बहरहाल, बिहार की सियासत की बात ही कुछ और है। यहां की जाति आधारित मतदान सारे गुणा-गणित को उलट-पुलट कर देती है। फिर भी एक बड़े वर्ग का ध्यान पीके और ओवैसी पर टिकी है। यह ध्यान इसलिए नहीं कि ये बेहतर करें या खराब। यह ध्यान इसलिए टिकी है कि इस चुनावी गहमागहमी में इनके महाशोर का असर कितना होता है। यह देखने वाली बात है। खैर, जब परिणाम 14 नवंबर को आएगा तब पता चल जाएगा कि कौन कितने पानी में है। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)
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