Editorial Aaj Samaaj | राजीव रंजन तिवारी | हफ़ीज़ जालंधरी का शेर है ‘आने वाले, जाने वाले हर जमाने के लिए। आदमी मजदूर है राहें बनाने के लिए’। जी हां, सही पढ़ा आपने। बिहार के ‘माउंटेन मैन’ (Mountain Man) दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) ने लोगों के लिए राह क्या बनाई कि अमर ही हो गए। अब उनका मकान बन रहा है। इसे लेकर जिस तरह का शोर है, उससे प्रतीत हो रहा है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में वह दलित सियासत की दिशा न बदल दे। आइए, सबसे पहले ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी को जानते और समझते हैं।

राजीव रंजन तिवारी, संपादक, आज समाज।

दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1934 को बिहार के गयाजी जिले के गहलौर गांव में हुआ था। उनका निधन 17 अगस्त 2007 को हुआ। दशरथ मांझी को ह्यमाउंटेन मैनह्ण कहा जाता है। दरअसल, दशरथ मांझी गहलौर गांव के एक बेहद गरीब मजदूर थे। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबे, 30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर एक सड़क बना डाली थी। 22 वर्षों के परिश्रम के बाद दशरथ मांझी के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 से घटाकर 15 किलोमीटर कर दिया।

जानकार बताते हैं कि एक बार दशरथ मांझी ने कहा था कि अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था, उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा। संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं। उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो। बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो। हर रात के बाद दिन तो आता ही है।

दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे। उनकी जाति मुसहर भुइयां है, जो अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में आती है। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की थी।

दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जुनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेंगे और अत्री व वजीरगंज की दूरी को कम करेंगे।

दशरथ मांझी काफी कम उम्र में अपने घर से भाग गए और धनबाद की कोयले की खानों में काम किया। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद ये अपने घर लौटे। काम पूरा होने के बाद उन्होंने लोगों से बताया था कि जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और मजबूत किया। अपने काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्री और वजीरगंज सेक्टर की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित मांझी का 73 साल की उम्र में 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया। बिहार की राज्य सरकार के द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर तीन किलोमीटर लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया। ‘माउंटेन मैन’ के रूप में विख्यात मांझी की चर्चा देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है।

फिल्म प्रभाग ने इन पर एक वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) फिल्म द मैन हु मूव्ड द माउंटेन का भी 2012 में निर्माण किया, जिसके निर्देशक कुमुद रंजन हैं। जुलाई 2012 में निदेशक केतन मेहता ने फिल्म मांझी : द माउंटेन मैन बनाने की घोषणा की। 21 अगस्त 2015 को फिल्म को रिलीज किया गया। अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने मांझी की और राधिका आप्टे ने फाल्गुनी देवी की भूमिका निभाई है। मांझी के कामों को एक कन्नड़ फिल्म ओलावे मंदार में जयतीर्थ द्वारा दिखाया गया है।

मार्च 2014 में टीवी शो सत्यमेव जयते का सीजन 2 में पहला एपिसोड दशरथ मांझी को समर्पित किया गया था। जिसकी मेजबानी आमिर खान ने की थी। आमिर खान और राजेश रंजन भी मांझी के बेटे भागीरथ मांझी और बहू बसंती देवी से मुलाकात कर चुके हैं। एक अप्रैल 2014 को चिकित्सकीय देखभाल वहन करने में असमर्थ होने के कारण बसंती देवी की मृत्यु हो गई। हाल ही में उसके पति ने ये कहा की अगर आमिर खान ने मदद का वादा पूरा किया होता तो ऐसा नहीं होता।

अब बात दशरथ मांझी के मकान और दलित सियासत की। कुछ माह पहले कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने गयाजी पहुंचकर दशरथ मांझी के परिजनों से मुलाकात की थी। तब राहुल ने उनके कच्चे मकान की दयनीय हालत देखी थी। उस समय उन्होंने दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी से वादा किया था हमारी ओर से आपका पक्का घर बनवाया जाएगा। राहुल गांधी ने बिहार से दिल्ली लौटने के बाद अपने वादे को निभाने की जिम्मेदारी उठाई।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी को सांकेतिक रूप से ही सही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने का काम जरूर किया, लेकिन लालू, नीतीश या जीतनराम मांझी ने पिछले 35 वर्षों में उनके कच्चे मकान को पक्का नहीं करवा पाये। अब राहुल गांधी यह काम करवा रहे हैं। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी कुछ महीने पूर्व बिहार आए थे। राहुल गांधी की पहल पर अब ह्यमाउंटेन मैनह्ण के गांव में उनके परिवार वालों के लिए मकान बन रहा है। इसकी चर्चा पूरे देश में है।

दशरथ मांझी के परिवार का कहना है कि कई बड़े नेता और अभिनेता उनके घर आए, लेकिन जो काम राहुल गांधी ने किया वह अब तक किसी ने नहीं किया। बिना किसी घोषणा और दिखावे के राहुल गांधी ने ह्यपर्वत पुरुषह्ण दशरथ मांझी के परिवार के लिए एक ऐसा कदम उठाया, जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी ने कहा कि राहुल के पहले भी कई नेताओं की उन लोगों से मुलाकात हुई थी। यहां तक कि उनकी ही जाति के जीतन राम मांझी से जब उनकी मुलाकात हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि कच्चा मकान में क्या दिक्कत है।

भागीरथ मांझी ने कहा कि उनका परिवार कच्चा मकान में रहते हुए कई प्रकार की चुनौती झेल रहा था। न तो रहने के लिए पर्याप्त कमरे थे और ना ही खाना बनाने को रसोईघर या शौच आदि के लिए उचित व्यवस्था। लेकिन राहुल गांधी ने जब उनके घर की दयनीय स्थिति को देखा तो उन्होंने चार कमरों का पक्का मकान बनवाकर देने का वादा किया। अपने वादे के अनुरूप अब वे हमारा घर बनवा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां सरकारें वादे करती रहीं, वहां राहुल गांधी ने अपना फर्ज निभाया है। यह कोई प्रचार नहीं, एक सच्चा मानवीय कार्य है।

भागीरथ मांझी ने कहा कि राहुल गांधी के दिल में उनके पिता दशरथ मांझी के लिए भरपूर सम्मान है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी से मुलाकात में इस बार के विधानसभा चुनाव को लेकर भी बात हुई थी। तब राहुल गांधी ने भागीरथ मांझी से चुनाव लड़ने को लेकर पूछा था। भागीरथ ने कहा कि अगर राहुल गांधी चाहेंगे तो वे बोधगया से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। भागीरथ मांझी के चुनाव लड़ने की चर्चा ने राज्य की सियासत में हलचल मचा रखी है। बिहार में दलित मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है।

अब स्थिति यह है कि राहुल गांधी द्वारा दशरथ मांझी के मकान के निर्माण का शोर न सिर्फ आसपास बल्कि पूरे देश में फैल रहा है। इस वर्ष अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी इस मकान के चर्चा में रहने की संभावना है, जिसकी रणनीति बिहार कांग्रेस कांग्रेस द्वारा बनाई जा रही है। बिहार की राजनीति को करीब से जानने-समझने वाले कहते हैं कि राहुल गांधी द्वारा दशरथ मांझी का मकान बनवाना एक बहुसंख्यक आबादी के दिलो दिमाग पर छा जाने वाली बात है।

बिहार की राजनीति में इस समय दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुजन समाज पार्टी की मायावती से लेकर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, जीतनराम मांझी समेत तमाम नेता और दल जुटे हुए हैं। लेकिन कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के एक फैसले ने राज्य की दलित सियासत के रुख को मोड़ दिया है। सच में दलित बिरादरी के बीच राहुल गांधी छा गए हैं। सोशल मीडिया पर राहुल के तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं।

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश कुमार राम कहते हैं कि राहुल गांधी न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के सर्व समाज के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। दया, धर्म, प्यार, सोच, विजन किसी भी मामले में देश का कोई भी नेता उनके मुकाबले में कहीं खड़ा होने वाला नहीं है। रही बात दशरथ मांझी का मकान बनाने का तो राहुल का उद्देश्य इसके लिए अन्य दलों की तरह वोट की राजनीति करना नहीं, बल्कि माउंटेन मैन के परिवार की मदद करना है।

बहरहाल, माउंटेन मैन दशरथ मांझी का मकान इस वक्त दलित सियासत की धुरी बनता जा रहा है। भविष्य में इसका परिणाम क्या होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल, जिस तरह का शोर है, उसे देख यही कहा जा सकता है कि दलित मतदाताओं में पैठ बनाने की राहुल गांधी की इस रणनीति का लाभ बिहार में इंडिया गठबंधन को मिल सकता है। इसी संदर्भ में इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक दल राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर कहते हैं कि बिहार में इंडिया गठबंधन की हवा बहने लगी है। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।) 

यह भी पढ़ें : Editorial Aaj Samaaj: कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता