Editorial Aaj Samaaj | राजीव रंजन तिवारी | शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे, ये मैंने क्या लिख दिया। जी, आपकी सोच सही है। लेकिन ये हकीकत है, फसाना नहीं। इस हकीकत को समझिए। करिश्मे के इंतजार में हकीकत की इमारत खड़ी करने की बसपा प्रमुख मायावती की सोच से सभी हतप्रभ हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बिहार की राजधानी पटना में जबरदस्त हलचल है और मायावती लखनऊ में शोर मचा रही हैं। अब तो समझ में आ ही गया होगा कि मैंने क्यों लिखा कि पटना में छोरा और लखनऊ में ढिंढोरा। मायावती की नीति, अनीति, कुनीति, सुनीति के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर बसपा की रणनीति क्या है। आइए समझते हैं।
बसपा प्रमुख मायावती ने तकरीबन नौ साल के लंबे अंतराल के बाद लखनऊ के राजनीतिक परिदृश्य पर गुरुवार को विशाल रैली के साथ जोरदार दस्तक दी। बसपा के संस्थापक अध्यक्ष और उनके गुरु कांशीराम की पुण्यतिथि पर उन्होंने अपनी पार्टी के पुनरुद्धार का प्रदर्शन करते हुए राजनीतिक विमर्श को तेज किया। लखनऊ के रमाबाई रैली स्थल पर तीन से चार लाख लोगों की अनुमानित भीड़ (जिसमें बिहार, पंजाब और हरियाणा सहित पांच राज्यों के बसपा समर्थक शामिल थे) को संबोधित करते हुए मायावती ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की जमकर प्रशंसा की, जबकि सपा और कांग्रेस की आलोचना की। उन्होंने अपने समर्थकों से 2027 में यूपी में बसपा की सरकार बनाने का आह्वान किया।
यूपी की वर्तमान सरकार के प्रति उदारता दिखाते हुए मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान बनाए गए दलित विचारकों और प्रतीकों को समर्पित स्मारकों और पार्कों के रखरखाव के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार की सराहना की। उन्होंने कहा कि मैंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि इन स्थलों के आगंतुकों से मिलने वाली टिकट की आय का उपयोग उनके रखरखाव के लिए किया जाए। भाजपा सरकार ने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया और रखरखाव का खर्च वहन किया। इसके लिए मैं उनका धन्यवाद करती हूं। इसके उलट, समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव पर तीखा हमला बोला और उन पर पाखंड व दोहरे मापदंड का आरोप लगाया। मायावती ने कहा कि जब वे (अखिलेश) सत्ता में होते हैं तो कांशीराम और पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के एजेंडे को भूल जाते हैं। लेकिन सत्ता से बाहर होते ही उन्हें दोनों याद आने लगते हैं। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि इस तरह के दोहरे चरित्र वाले लोगों से दूर रहने की जरूरत है।
मायावती ने कहा कि अगर समाजवादियों ने कांशीराम का इतना सम्मान किया तो यूपी के अलीगढ़ मंडल में जिस जिले का नाम हमने उनके नाम पर रखा था, उसे सपा सरकार ने क्यों बदल दिया? उन्होंने सपा पर कांशीराम के नाम पर बनाई गई संस्थाओं और कल्याणकारी योजनाओं को खत्म करने का भी आरोप लगाया। इसे उनकी दलित-विरोधी और जातिवादी मानसिकता का प्रमाण बताया। मायावती ने कांग्रेस को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कांग्रेस को नौटंकी करने वाली पार्टी करार दिया जिसने ऐतिहासिक रूप से दलितों के हितों की अनदेखी की है। आजम खान और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए मायावती ने संभावित गठबंधनों की अटकलों को खारिज करने की कोशिश की। उन्होंने बसपा में आजम खान के शामिल होने की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि मैं किसी से छिपकर नहीं मिलती। जब भी मैं किसी से मिलती हूं, खुलेआम मिलती हूं।
वहीं दूसरी तरफ बसपा प्रमुख मायावती के आरोपों के जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि बहुजन समाज पार्टी का भाजपा के साथ गुप्त समझौता है। अखिलेश ने कहा कि मायावती अपने लाभ के लिए उत्पीड़कों के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित कर रही हैं। लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यादव ने कहा कि चूंकि उनकी भाजपा से आंतरिक मिलीभगत जारी है, इसीलिए वे अपने उत्पीड़कों के प्रति कृतज्ञ हैं। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सपा और पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम को इटावा से सांसद बनने में समर्थन दिया था। उधर, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने भी एक वीडियो संदेश जारी कर मायावती को निशाने पर लिया। कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने सवाल किया कि मायावती की रैली भाजपा की रैली थी या बहुजन समाज पार्टी की रैली थी? यह फर्क करना बड़ा मुश्किल था। क्योंकि भाजपा की ओर से दिल्ली से जो स्क्रिप्ट आई थी मायावती उसे ही मंच से पढ़ रही थीं। सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि वह स्क्रिप्ट इतनी उबाऊ थी कि बसपा का काडर आधी रैली छोड़कर जाने लगा। उन्होंने कहा कि मायावती ने आरक्षण विरोधियों व संविधान विरोधियों की बड़ाई करके अपने समर्थकों को नाराज कर दिया। इसका नुकसान बसपा को आने वाले वक्त में होगा।
खैर, चर्चा इस बात की है कि बिहार में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और बसपा प्रमुख मायावती लखनऊ में सियासी हलचल मचा रही हैं। हालांकि उनकी पार्टी बिहार में भी चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है। बसपा के केंद्रीय प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार की देखरेख में बिहार में बसपा के कार्यकर्ता लगातार अपने अभियान को अंजाम दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि बसपा बिहार में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इसके लिए टिकट चाहने वालों की चयन प्रक्रिया भी आरंभ हो गई है, लेकिन मायावती की लखनऊ की रैली के निहितार्थ क्या हैं? यह समझने की कोशिश की जा रही है। जानकार मानते हैं मायावती काफी चालाक और चतुर किस्म की राजनेता हैं। उन्हें मौके पर चौका मारने आता है। यह अलग बात है कि बीते कुछ वर्षों से उनकी पार्टी गर्दिश में चल रही है। लखनऊ में 9 अक्टूबर की रैली के माध्यम से मायावती ने शायद यह संदेश देने का प्रयास किया कि बसपा में अब भी दम है। कहा जा रहा है कि मायावती को उम्मीद है कि लखनऊ में हुई रैली का संदेश बिहार विधानसभा चुनाव तक पहुंचेगा। इसके लिए धरातल पर पार्टी के केंद्रीय प्रभारी अनिल कुमार के मार्गदर्शन में बसपा कार्यकर्ता जनसंपर्क अभियान में जुटे हुए हैं।
हकीकत यह है कि बीते करीब तेरह वर्ष में बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, लालजी वर्मा आदि कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से संगठन कमजोर हुआ है। चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी शून्य पर थी जबकि 2022 में सिर्फ एक विधानसभा सीट मिली थी। सपा के खिलाफ सीधे हमलावर होकर मायावती ने भाजपा के खिलाफ मजबूती से सक्रिय और प्रभावशाली हो रहे पीडीए को कमजोर करने की कोशिश की है। जबकि योगी आदित्यनाथ सरकार की तारीफ कर एक प्रकार से सपा के अंदरखाने गठबंधन के आरोप को और मजबूत करने का ही काम किया है। इससे भाजपा के खिलाफ पीडीए में गए बसपा समर्थकों के बीच घर वापसी का अच्छा संदेश नहीं गया। हालांकि भीड़ के लिहाज से रैली की सफलता ने यह साबित किया कि बसपा का काडर अभी भी सक्रिय है। विश्लेषक मानते हैं कि अगर मायावती हर दो माह पर ऐसी रैलियां करें तो यूपी की सियासत में उसका असर दिख सकता है। इसे 2024 की हार के बाद रिवाइवल का कदम माना जा रहा है।
बसपा की रणनीति को ठीक से समझने वाले कहते हैं कि यह रैली बसपा के लिए संजीवनी की तरह थी। रैली में उमड़ी भारी भीड़ ने पार्टी की प्रासंगिकता को साबित की लेकिन भाषण की रणनीति ने इसे आधा-अधूरा छोड़ दिया। मायावती ने सही कहा कि आज की भीड़ ने सारे रिकॉर्ड तोड़े, लेकिन असली परीक्षा 2027 में होगी। अगर बसपा बूथ-स्तरीय एकीकरण पर फोकस करे और गठबंधनों से दूर रहे, तो यह पीडीए वोट को सपा से छीन सकती है। वरना, यह सिर्फ एक उत्साहपूर्ण स्मृति बनकर रह जाएगी। यूपी की राजनीति में बसपा फिर से हाथी की चाल चलेगी या नहीं, यह आगामी रैलियों पर निर्भर है। वहीं दूसरी तरफ जानकार यह सवाल भी कर रहे हैं कि जब पूरे देश के राजनीतिज्ञों का ध्यान बिहार पर केंद्रित है तो मायावती यूपी में 2027 की उलटबांसी क्यों बजा रही हैं। जबकि बसपा के कई दिग्गज नेता-कार्यकर्ता बिहार में चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। मतलब यह कि मायावती बिहार के चुनाव को बहुत गंभीरता से नहीं ले रही हैं। यही वजह है कि बिहार के नेताओं-कार्यकर्ताओं को उनके हाल छोड़ की उनकी मंशा है।
आपको बता दें कि बसपा ने 9 अक्टूबर की रैली के लिए एक महीने पहले से काडर मोबिलाइजेशन का काम शुरू किया था। आकाश आनंद (मायावती के भतीजे और राष्ट्रीय समन्वयक) ने युवा नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी थी। इसमें काफी हद तक सफलता मिली। ठीक-ठाक भीड़ उमड़ने से बसपा नेताओं के चेहरे पर संतोष का भाव दिख रहा है। लखनऊ में सजे मायावती के मंच के भी अलग संकेत थे। मायावती के अलावा आकाश आनंद, आनंद कुमार, सतीश चंद्र मिश्रा और नौशाद अली जैसे प्रमुख नेता मंच पर थे। यह बसपा के सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय फॉर्मूले को री-लॉन्च करने का संकेत था। मायावती ने करीब 3 घंटे मंच पर रहकर कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, जो उनके नए अंदाज का हिस्सा था। भाषण में उन्होंने यूपी के 2027 चुनावों के लिए अकेले लड़ने का ऐलान किया, साथ ही गठबंधनों को सरकार तोड़ने वाला बताते हुए गठबंधन की राजनीति को खारिज किया। बहरहाल, खबर है कि मायावती बिहार विधानसभा चुनाव में भी दमखम से उतरने वाली हैं। इसके लिए आकाश आनंद को टास्क दे दिया गया है। बहरहाल, देखते हैं कि बिहार से बसपा के लिए किस तरह का संदेश सामने आता है। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।)
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