Editorial Aaj Samaaj | राकेश शर्मा | नेपाल में छिड़ा बवाल कई सवालों को जन्म दे रहा है। यहां हिंसा, अराजकता और मौत का तांडव चल रहा है। फलत: नेपाली प्रधानमंत्री को इस्तीफा देकर सेना की मदद से गुप्त स्थान पर जाना पड़ा है। उससे यह विश्वास पुख्ता हो गया है कि जेन जी का यह आंदोलन कोई साधारण आंदोलन नहीं था बल्कि एक गहरी साजिश और षड्यंत्र का नतीजा है। इस तरह के अनेक सवाल अंकुरित हो रहे हैं। जिनका जवाब तलाशना जरूरी है।
जो आंदोलन बंद किए गए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को खुलवाने के लिए किया गया वो अचानक इतना हिंसक कैसे हो गया। जिसमें प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत घर को धू-धू कर जला दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को उनके घर के साथ जला दिया गया। गृह मंत्री की पिटाई को गई। पूर्व प्रधानमंत्री को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। एक एसपी की हत्या कर दी गई। संसद, राष्ट्रपति भवन को आग के हवाले कर दिया गया। वह भी तब हुआ जब आंदोलनकारियों की मांगें लगभग मान ली गई थीं।
परिस्थितियां बता रही हैं कि इस पूरे बवाल का मकसद सोशल मीडिया वापस शुरू करना ही नहीं था, बल्कि चीन समर्थित प्रधानमंत्री ओली को हटाकर अमेरिका के पिट्ठू और काठमांडू के मेयर बालेन्दु शाह को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाना था। क्या यह अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध की परिणति तो नहीं है, जहां अमेरिका नेपाल को चीन के प्रभुत्व से बाहर निकालने का प्रयास कर रहा है। आंदोलनकारी यही मांग कर रहे हैं और बालेन्दु शाह ने इस शक को पुख्ता तब कर दिया जब वह आंदोलन के बीच में ही काठमांडू में नियुक्त अमेरिकी राजदूत से मिलने चले गए।
क्या हमें अब नहीं लगता कि पिछले वर्ष बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना को चुनाव धांधली को लेकर हुआ आंदोलन अचानक हिंसक हो गया और आंदोलन चुनाव में धांधली को पीछे धकेलकर शेख हसीना को इस्तीफा देने तक पहुंच गया। यह आंदोलन यहीं नहीं रुका बल्कि शेख हसीना के इस्तीफा देने और देश छोड़ने के बाद और उग्र हो गया। प्रधानमंत्री के घर में उत्पात मचाकर घर में तोड़फोड़ की गई, शेख मुजीबुर्र रहमान की मूर्ति को गिरा दिया गया, हिंदुओं को मारा गया, हिंदू महिलाओं से बलात्कार किया गया, हिंदुओं के मकानों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और मंदिरों को तोड़ा गया और यह आंदोलन कई महीनों तक चलता रहा।
खास बात यह रही कि अमेरिकी समर्थक मोहम्मद यूनुस को सत्ता की कुर्सी पर बिठाकर कट्टरवादी मुसलमानों की सारी मांगे मानने के बाद ही बांग्लादेश का बवाल शांत हुआ। इससे साफ है कि इसके पीछे भी अमेरिका का ही हाथ था। क्योंकि शेख हसीना ने अमेरिका के दबाव में आकर एक बांग्लादेशी सैंट मार्टिन टापू अमेरिका को स्थानांतरित करने से मना कर दिया था। इसी तरह की हिंसा सत्ता परिवर्तन के लिए श्रीलंका में भी देखी गई थी। सभी कह रहे हैं कि इन सभी घटनाओं के पीछे अमेरिकी डीप स्टेट और सीआईए का हाथ है।
बात यहीं नहीं समाप्त होती। जरा इंडी गठबंधन के नेताओं और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की बातों पर गौर फरमाएं। ये सब कह रहे हैं कि भारत में भी यह सब होने वाला है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी तो पहले ही कह चुके हैं की जनता मोदी को डंडों से पीटेगी। वोट चोरी का आरोप लगाकर राहुल गांधी भी श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल की पुनरावृत्ति भारत में कराने की तैयारी बहुत अरसे से कर रहे हैं। जनता को भड़काने को अनवरत कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वोट के चलते मोदी को सत्ताच्युत नहीं कर सकते।
शाहीन बाग आंदोलन, किसान आंदोलन, 26 जनवरी 2021 को किसानों के नाम पर आंदोलन करने वालों का लाल किले पर हमला, 2024 के आम चुनाव के दौरान अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों का विपक्षी नेताओं से उनके राज्यों में जाकर गुफ्तगू करना, डीप स्टेट की दखलंदाजी और हर प्रकार की मदद की पेशकश, जिससे मोदी को हराया जा सके, क्या बताता है? इंडी गठबंधन की मदद से भारत विरोधी विदेशी शक्तियां यहां भी अस्थिरता पैदा करना चाहती हैं। यह सब भारत को विकसित होते देख देशी विदेशी शक्तियों का षड्यंत्र है।
विदेशी भारत को विकसित राष्ट्र होते देखना नहीं चाहते और इंडी गठबंधन सोचता है कि भारत यदि ऐसे ही हर क्षेत्र में आगे बढ़ता रहा तो उनका सत्ता प्राप्त करने का स्वप्न कभी पूरा नहीं होगा। भारत में अस्थिरता, अराजकता, हिंसा करने-करवाने के अपने-अपने लक्ष्य हो सकते हैं लेकिन भारत की आम जनता भारत के साथ है। इसलिए इन देशद्रोही शक्तियों का ख्वाब कभी पूरा नहीं होने देगी। लेकिन सरकार को हर तरह से सतर्क रहने की जरूरत है, बहुत ही खतरनाक और व्यापक स्तर पर खेल चल रहा है।
गौरतलब है कि नेपाल में कथित सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जेन जी के विरोध प्रदर्शन के चलते फैली हिंसा से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। ऐसे में नेपाल गए पर्यटक और वहां रहने वाले भारतीय नागरिक पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के पानी-टंकी में भारत-नेपाल सीमा पार कर भारत वापस आ गए। भारत आने के बाद नागरिकों ने कहा कि अब अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि जान वापस आ गई है।
नेपाल से लौटे लोगों का कहना है कि वहां स्थिति नियंत्रण से बाहर है। हिंसक आंदोलन वहां अभी कई दिनों तक जारी रहने की संभावना है। भारत लौटकर अच्छा लग रहा है। जान वापस आ गई। इसी के साथ बुधवार को भारत-नेपाल सीमा पर हाई अलर्ट जारी कर दिया गया। वहीं काठमांडू दूतावास ने भी भारतीयों से सतर्क रहने और घर से बाहर न निकलने की अपील की। भारतीय विदेश मंत्रालय ने नेपाल के मौजूदा हालात को देखते हुए भारतीय नागरिकों के लिए यात्रा मशविरा जारी की है।
मौजूदा हालात ये है कि नेपाल में जेन जी के विरोध प्रदर्शनों के बीच स्थिति अस्थिर बनी हुई है। छात्रों और युवा नागरिकों का यह आंदोलन सरकार से अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग कर रहा है। जानकारों के अनुसार, काठमांडू और पोखरा, बुटवल तथा बीरगंज सहित अन्य प्रमुख शहरों में 8 सितंबर को विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। प्रदर्शनकारी शासन में संस्थागत भ्रष्टाचार और पक्षपात को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक जवाबदेह और पारदर्शी हो।
बहरहाल, नेपाल के हालात को देखते हुए यह आशंका जताई जाने लगी है कि अन्य पड़ोसी देशों की भांति वहां भी विदेशी ताकतें सक्रिय हैं। वह चाहती हैं कि नेपाल में अस्थिरता कायम हो और वे अपने मकसद में कामयाब हो सकें। इसके लिए देश की जनता को सजग और सतर्क रहना होगा ताकि वे किसी अन्य शक्तिशाली हाथों की कठपुतली न बन सकें। (लेखक आज समाज के कार्यकारी निदेशक हैं)।
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