Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया है, जो दुनिया भर के दवा बाजार को हिला सकता है। उन्होंने ब्रांडेड और पेटेंट वाली दवाओं पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की घोषणा की है। यह शुल्क एक अक्टूबर से लागू होगा। लेकिन अगर कोई कंपनी अमेरिका में अपना उत्पादन प्लांट लगाती है तो उसे इस शुल्क से छूट मिल सकती है।

यह फैसला मुख्य रूप से उन देशों को प्रभावित करेगा जो अमेरिका को दवाएं निर्यात करते हैं और भारत इसमें सबसे आगे है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जेनेरिक दवा निर्यातक है और अमेरिका हमारा सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन क्या यह फैसला भारत के लिए सिर्फ मुसीबत है या इसमें कोई मौका भी छिपा है? आइए आसान शब्दों में समझते हैं कि यह फैसला क्या है और भारत पर इसका क्या असर होगा? हमारा फार्मा सेक्टर इससे कैसे निपटेगा और भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील कब तक हो सकती है?

राकेश सिंह, प्रबंध संपादक, आईटीवी नेटवर्क।

सबसे पहले बात करते हैं ट्रंप के इस फैसले की। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका में विदेशी दवाओं की बाढ़ आ रही है, जो अमेरिकी कंपनियों और नौकरियों को नुकसान पहुंचा रही है। इसलिए ब्रांडेड और पेटेंट वाली दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। इसका मतलब है कि ऐसी दवाओं की कीमत दोगुनी हो जाएगी अगर वे अमेरिका के बाहर बनाई गई हों। ट्रंप का कहना है कि इससे कंपनियां अमेरिका में फैक्ट्रियां लगाएंगी, जिससे वहां नौकरियां बढ़ेंगी और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी। क्योंकि दवाओं जैसी जरूरी चीजों पर दूसरे देशों पर निर्भर रहना जोखिम भरा है। ट्रंप पहले भी टैरिफ का इस्तेमाल करते रहे हैं, जैसे चीन के खिलाफ ट्रेड वॉर में। अब उन्होंने फार्मा के अलावा फर्नीचर, किचन कैबिनेट और भारी ट्रकों पर भी 25 से 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया है। लेकिन फार्मा पर 100 प्रतिशत सबसे कड़ा कदम है।

अब सवाल यह है कि ट्रंप यह कदम क्यों उठा रहे हैं? इसके कई कारण हैं। पहला, अमेरिका में दवाओं की कीमतें बहुत ऊंची हैं और ट्रंप चाहते हैं कि उत्पादन अमेरिका में हो ताकि कीमतें काबू में रहें और अमेरिकी कंपनियां मजबूत हों। दूसरा, कोरोना महामारी के बाद से दवाओं की सप्लाई चेन पर सवाल उठे हैं। अमेरिका 40 प्रतिशत जेनेरिक दवाएं भारत से आयात करता है और अगर कोई समस्या आए तो दवा की कमी हो सकती है।

ट्रंप इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा मानते हैं। तीसरा, राजनीतिक कारण। ट्रंप की सरकार अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलती है, जिसमें अमेरिकी नौकरियां और फैक्ट्रियां पहले आती हैं। वे कहते हैं कि विदेशी कंपनियां अमेरिका में सस्ती दवाएं डंप कर रही हैं, जिससे स्थानीय उद्योग कमजोर हो रहा है। एली लिली और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी अमेरिकी कंपनियां पहले से ही इसकी मांग कर रही थीं। ट्रंप का कहना है कि टैरिफ से कंपनियां अमेरिका में निवेश करेंगी, जैसे वे पहले स्टील और एल्यूमिनियम पर टैरिफ लगा चुके हैं। इससे अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, और गरीब मरीजों को नुकसान होगा।

अब अहम सवाल यह है कि भारत पर इसका क्या असर होगा? दरअसल, भारत का फार्मा सेक्टर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा है, और हम अमेरिका को सालाना करीब 10.5 बिलियन डॉलर की दवाएं निर्यात करते हैं। यह हमारे कुल दवा निर्यात का एक तिहाई है। अच्छी बात यह है कि ट्रंप का टैरिफ मुख्य रूप से ब्रांडेड और पेटेंट वाली दवाओं पर है, जबकि भारत ज्यादातर जेनेरिक दवाएं बेचता है। जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं और पेटेंट फ्री, इसलिए फिलहाल वे सुरक्षित हैं। लेकिन अगर टैरिफ जेनेरिक्स पर भी फैलता है, तो मुश्किल हो सकती है। भारत अमेरिका को 90 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं की सप्लाई करता है, जैसे एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक। अगर कीमतें बढ़ीं, तो अमेरिका में दवा की कमी हो सकती है, लेकिन भारत के निर्यातक कंपनियों की कमाई घटेगी।

फिलहाल, भारतीय शेयर बाजार में हलचल मच गई है। सन फार्मा, ल्यूपिन, बायोकॉन, सिप्ला और डॉ. रेड्डीज जैसी कंपनियों के शेयर तीन से पांच प्रतिशत तक गिर गए। एनएसई का निफ्टी फार्मा इंडेक्स 2.5 प्रतिशत नीचे आया। विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर टैरिफ 10 प्रतिशत से ज्यादा हुआ तो कम मार्जिन वाली दवाओं का अमेरिका में बिकना मुश्किल हो जाएगा। इससे लाखों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। भारत के फार्मा सेक्टर में नौ लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं और निर्यात घटने से छंटनी हो सकती है। लेकिन कुछ कंपनियां जैसे सन फार्मा और डॉ. रेड्डीज, जिनके अमेरिका में पहले से प्लांट हैं, फायदा उठा सकती हैं। वे अमेरिका में उत्पादन बढ़ाकर टैरिफ से बच सकती हैं। कुल मिलाकर, छोटी अवधि में नुकसान है, लेकिन लंबे समय में भारत को नए बाजार तलाशने पड़ेंगे, जैसे यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका।

भारतीय फार्मा सेक्टर इससे कैसे निपटेगा? सेक्टर के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी ताकत पर भरोसा रखना चाहिए। हम दुनिया के सबसे सस्ते और अच्छी क्वालिटी वाली जेनेरिक दवाएं बनाते हैं, इसलिए डिमांड बनी रहेगी। पहला कदम बाजारों का विविधीकरण है। अमेरिका पर निर्भरता कम करके यूरोपीय यूनियन, जापान और ब्राजील जैसे देशों में निर्यात बढ़ाना चाहिए। दूसरा, अमेरिका में निवेश। कई भारतीय कंपनियां जैसे सिप्ला, जायडस और ऑरोबिंदो पहले से अमेरिका में प्लांट लगाने की योजना बना रही हैं। ट्रंप का फैसला उन्हें तेजी से आगे बढ़ाएगा।

तीसरा, एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स) और सीडीएमओ (कॉन्ट्रैक्ट डेवलपमेंट एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑर्गेनाइजेशन) पर फोकस। ये क्षेत्र टैरिफ से कम प्रभावित हैं, क्योंकि अमेरिकी कंपनियां इन्हें भारत से खरीदती रहेंगी। चौथा, सरकारी मदद। भारत सरकार प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत फार्मा सेक्टर को सपोर्ट कर रही है, जिससे घरेलू उत्पादन बढ़ेगा। इंडियन फार्मास्यूटिकल एलायंस (आईपीए) का कहना है कि जेनेरिक्स सुरक्षित हैं, लेकिन भविष्य के जोखिम के लिए तैयार रहना जरूरी है। कुल मिलाकर, सेक्टर को इनोवेशन और नए बाजारों की तरफ जाना होगा, ताकि अमेरिका पर ज्यादा निर्भर न रहें।

अब बात भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील की। दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता चल रही है और उम्मीद है कि नवंबर 2025 तक कोई समझौता हो सकता है। हाल ही में भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका गए थे, जहां उन्होंने ट्रेड वार्ता की। अमेरिका भारत से दवाओं के अलावा टेक्सटाइल और ऑटो पार्ट्स भी खरीदता है, जबकि भारत अमेरिका से ऊर्जा और तकनीक लेता है।

ट्रंप की सरकार भारत को क्रिटिकल पार्टनर मानती है, खासकर चीन के खिलाफ। इसलिए, ट्रेड डील में भारत को कुछ राहत मिल सकती है, जैसे फार्मा पर टैरिफ में छूट या नए निवेश के मौके। लेकिन अगर रूस से तेल खरीदने का मुद्दा उठा, तो मुश्किल हो सकती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि डील नवंबर तक हो सकती है, क्योंकि ट्रंप जल्दी ट्रेड बैलेंस सुधारना चाहते हैं।

निष्कर्ष में, ट्रंप का फार्मा टैरिफ भारत के लिए एक झटका है, लेकिन घबराने की बजाय रणनीति बनाने का समय है। हमारा सेक्टर मजबूत है, और नए बाजारों व निवेश से उबर सकता है। ट्रेड डील से राहत मिल सकती है, लेकिन भारत को आत्मनिर्भर बनना होगा। अगर सही कदम उठाए, तो यह चुनौती अवसर में बदल सकती है। अमेरिका में ऊंची दवा कीमतों से भारत की जेनेरिक्स की डिमांड बढ़ सकती है। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।) 

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