पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है महालया
Mahalaya, (आज समाज), नई दिल्ली: महालया पितृ पक्ष श्राद्ध की अवधि का 16वां दिन होता है, इसलिए इसे पितृ पक्ष के अंत के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। यह दिन पितृ पक्ष की समाप्ति के साथ-साथ शारदीय नवरात्र की शुरूआत के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन को माता दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन के रूप में भी देखा जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में बड़े ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

21 सितंबर को मनाया जाएगा महालया

पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन माह की अमावस्या तिथि यानी सर्वपितृ अमावस्या, जो पितृ पक्ष का आखिरी दिन होती है, उसी को महालय के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष का आखिरी दिन रविवार, 21 सितंबर को है। इसलिए महालय भी 21 सितंबर को ही मनाया जाएगा।

महालया का महत्व

महालया, दुर्गा पूजा से लगभग एक हफ्ते पहले मनाया जाता है और इसी दिन से दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरूआत होती है। जिसे पश्चिम बंगाल में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन देवी दुर्गा कैलाश से पृथ्वी पर आने के लिए अपनी यात्रा शुरू करती हैं। इस दिन मां दुर्गा के धरती पर स्वागत करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।

महालय के दिन पृथ्वी पर अवतरित होती हैं देवी दुर्गा

ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा महालय के दिन पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। दुर्गा पूजा से समय पहले ही मूर्तिकार देवी की मूर्ति बनाना आरंभ कर देते हैं, लेकिन महालया के दिन ही मूर्तियों की आंखों को रंगा जाता है।

क्या है पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर को वरदान प्राप्त था, कि उसे कोई भी देवता या मनुष्य नहीं हरा सकता, जिससे वह अपना आतंक फैलाने लगा। तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ने आदिशक्ति को प्रकट किया। आदिशक्ति ने युद्ध में महिषासुर को परास्त किया और उसका वध कर दिया। इस युद्ध के दौरान देवी दुर्गा को लड़ने के लिए विभिन्न देवताओं ने हथियार भी प्रदान किए।

महालया के दिन क्या करें?

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए।
  • इसके साथ ही देवी दुर्गा के मंत्रों का जप और महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  • इस दिन भक्त देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें जीवन में समृद्धि, खुशी और सुरक्षा प्रदान करें।
  • इसके अगले दिन शारदीय नवरात्र की शुरूआत हो जाती है और कलश स्थापना के साथ ही प्रथम देवी शैलपुत्री की आराधना की जाती है।

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