घर में सुख-शांति और समृद्धि का होगा वास
Saphala Ekadashi, (आज समाज), नई दिल्ली: सफला एकादशी भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने का शुभ अवसर माना जाता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति देता है, बल्कि जीवन में संयम, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का भी संचार करता है। पंचांग के अनुसार, इस साल सफला एकादशी 15 दिसंबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी। इस दिन किए गए व्रत, पूजा, जप और दान का महत्व अन्य एकादशियों की तुलना में अधिक फलदायी माना जाता है।

पौराणिक दृष्टि से पारण और दान का महत्व

सफला एकादशी हिन्दू धर्म में बहुत ही शुभ मानी जाती है। पुराणों के अनुसार, इस दिन उपवास रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से मानसिक शांति, स्वास्थ्य और घर-परिवार में समृद्धि आती है। व्रत का पारण शुभ मुहूर्त में करने से इसके पुण्य की प्राप्ति दोगुनी हो जाती है। इस दिन किए गए दान-पुण्य को भी अत्यंत फलदायी माना गया है।

विशेष रूप से अन्नदान, वस्त्र या जरूरतमंदों की मदद करना पाप नाश करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आध्यात्मिक उन्नति और संतुलन का संचार करता है। इस प्रकार, सफला एकादशी समग्र रूप से धार्मिक और सामाजिक लाभ देती है।

सबसे श्रेष्ठ दान कौन-सा है?

सफला एकादशी पर दान करना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। पुराणों और धर्मशास्त्रों में अन्नदान (जरूरतमंदों को भोजन देना) को सबसे श्रेष्ठ दान बताया गया है। इसके अलावा, वस्त्र, फल-फूल, जरूरतमंदों को आवश्यक सामग्री देना भी बहुत ही शुभ होता है।

दान करते समय श्रद्धा और शुद्ध मन का होना आवश्यक है, क्योंकि यही दान को श्रेष्ठ और फलदायी बनाता है। इस प्रकार का दान न केवल सामाजिक कल्याण का कारण बनता है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी व्यक्ति के पाप नाश और पुण्य संचय का उत्तम साधन है।

पारण (व्रत खोलने) का शुभ समय

पंचांग के अनुसार, 16 दिसंबर 2025 को सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक से 9 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। सही समय पर पारण करने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है।

पारण और दान का पालन कैसे करें?

  • शुद्ध आहार का पालन: व्रत के दिन केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करें। तामसिक, राजसिक और अस्वच्छ आहार से परहेज करें।
  • स्नान और पूजा: सुबह-सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
  • दान-पुण्य: इस दिन भूखों को भोजन देना, वस्त्र, फल-फूल और अन्य आवश्यक सामग्री दान करना शुभ और पुण्यदायक माना जाता है।
  • अनुशासन और भक्ति: व्रत केवल उपवास तक सीमित नहीं है। संयम और भक्ति भाव के साथ पालन करने से जीवन में मानसिक स्थिरता, संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

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