सबमें प्रभु परमात्मा के दर्शन

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 संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

महापुरुष फ़रमाते हैं – ह्वचश्मे-बीना हो तो हर ज़र्रे में है आसारे-दोस्तह्ल। चश्मे-बीना कहते हैं अंदर की आँख को और आसारे-दोस्त कहते हैं प्रभु परमात्मा को। इस सृष्टि के कण-कण के अंदर प्रभु परमात्मा बसे हुए हैं, उनके अनेकों रूप हैं। वे इंसानों में भी हैं, जानवरों में भी, पशुओं में भी, पक्षियों में भी, पौधों में भी, मछली में भी और छोटे से छोटे अंश में भी हैं। जैसे इन्द्रधनुष होता है, उसके कई रंग होते हैं और जब सफेद रंग प्रिज़्म से गुज़रता है तो इन्द्रधनुष सात रंगों में बिखर जाता है। ये इन्द्रधनुष के सात रंग कहाँ से आए? सफेद रंग से। जब वे सभी रंग जुड़ जाते हैं तो एक सफेद रंग बनता है। ऐसे ही प्रभु के अनेक रंग हैं। हमें ऐसे कई उदाहरण महापुरुषों के जीवन से देखने को मिलते हैं, जैसे स्वामी रामतीर्थ जी के रास्ते में एक बार सांप आ गया तो वे उसकी आँखों में देखते रहे क्योंकि उसमें वे प्रभु को देख रहे थे। नामदेव जी महाराज बाटी बना रहे थे और उस पर घी लगा रहे थे। इतने में एक कुत्ता आया, बाटी उठाकर भाग गया। नामदेव जी उसके पीछे-पीछे भागे कि हे प्रभु! आप रूखी बाटी मत खाईये क्योंकि उन्हें उस कुत्ते में भी प्रभु का रूप दिख रहा था।

परमात्मा कण-कण में समाए हुए हैं। उन्हें हम कहीं पर भी बंद कर नहीं सकते। प्रभु सीमित नहीं हैं, वे असीम हैं तो उन्हें हम कैसे पायें? अगर प्रभु परमात्मा को पाना है तो हमें प्रेम का रास्ता अपनाना होगा। हमें अपने अंदर प्रभु को पाने की कशिश पैदा करनी होगी। प्रभु को हम तब पाएंगे जब हम कण-कण में प्रभु को देखना शुरू कर देंगे। उन्हें हम कैसे देखेंगे? पहले हम उन्हें अपने अंदर देखें। अगर अपने अंदर ही न देख सके तो प्रभु को हम कहीं और कैसे देख सकते हैं? हम प्रभु को हर दिन, हर समय, हर घंटे, हर सैकिंड, हर पल पा सकते हैं क्योंकि वे कहीं बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर ही बैठे हैं। ये जो बाहर की आँखें हैं, जिनके ज़रिये हम प्रभु को देखना चाहते हैं, उनसे परमात्मा बहुत दूर है। उन्हें हम बाहर की आँखों से नहीं देख सकते। अगर उन्हें देखना है तो हमें अंदरूनी आँख खोलनी होगी। इसके लिए हमें किसी पूर्ण महापुरुष की मदद की ज़रूरत है। जो हमें ध्यान-अभ्यास के द्वारा हमारी अंदरूनी आँख खोल देते हैं जिसके ज़रिये हमें कण-कण और ज़र्रे-ज़र्रे में हमें प्रभु के दर्शन होते हैं। यही बात महापुरुष फ़रमाते हैं, ह्वचश्मे-बीना हो तो हर ज़र्रे में है आसारे दोस्त।ह्ल

 

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