देव दीपावली पर की जाती है देवों के देव महादेव की पूजा
Dev Diwali, (आज समाज), नई दिल्ली: कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व कल यानी की 5 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा करने का विधान है। देव दीपावली दिव्यता और भक्ति का संगम है। कार्तिक पूर्णिमा पर सिद्धि योग, शिववास योग और अश्विनी-भरणी नक्षत्र जैसे कई शुभ योग बन रहे हैं, जो इसे अत्यंत मंगलमय बनाते हैं। यह दिन पुण्य-संचय, साधना और ईश्वर से एकात्मता का सर्वोत्तम अवसर है। सिद्धि योग हर कार्य में सफलता देता है, जबकि अश्विनी-भरणी नक्षत्र स्वास्थ्य और मन की शांति प्रदान करते हैं। सूर्य और चंद्र की शुभ स्थिति इस दिन को और पवित्र बनाती है, जिससे दीपदान और प्रार्थना फलदायी होती है।

सिद्धि योग

देव दीपावली के दिन बन रहा सिद्धि योग अत्यंत मंगलकारी है, जो सुबह 11:28 बजे तक प्रभावी रहेगा। यह योग जीवन में सफलता और शुभ परिणाम देने वाला माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, इस काल में किए गए सभी कार्य फलदायी होते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस समय विशेष रूप से भगवान शिव, विष्णु और लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए। दीपदान, व्रत, जप और दान के माध्यम से किया गया पुण्य अनेक गुना बढ़ जाता है। यह योग आत्मिक शक्ति को जाग्रत करता है और जीवन में स्थिरता व संतुलन का वरदान देता है।

अश्विनी और भरणी नक्षत्रों का अद्भुत संगम

देव दीपावली के दिन पूर्णिमा तिथि शाम 6:48 बजे तक रहेगी, जो अपने आप में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन अश्विनी और भरणी नक्षत्रों का अद्भुत संगम भी बन रहा है। अश्विनी नक्षत्र जीवन में स्वास्थ्य, नई शुरूआत और ऊर्जा का प्रतीक है, जबकि भरणी नक्षत्र धैर्य, करुणा और सृजन का संकेत देता है। इन दोनों का मिलन शरीर और आत्मा दोनों के संतुलन को बढ़ाता है। इस शुभ संयोग में स्नान, दान, ध्यान और दीप प्रज्वलन करने से आरोग्य लाभ और मन की शांति प्राप्त होती है। यह दिन संपूर्ण रूप से पुनर्जागरण और दिव्यता का प्रतीक है।

सूर्यदेव तुला और चंद्रदेव मेष राशि में रहेंगे

देव दीपावली 2025 का यह दिन दैविक संयोगों से परिपूर्ण रहेगा। सूर्यदेव के तुला राशि में और चंद्रदेव के मेष राशि में स्थित होने से संतुलन, ऊर्जा और उत्साह का सुंदर मेल बन रहा है। इसके साथ ही सिद्धि योग, शिववास योग और पूर्णिमा तिथि का एक साथ आना इसे अत्यंत पवित्र बना देता है। यह वह समय है जब साधना, दीपदान और प्रार्थना का प्रत्येक क्षण फलदायी होता है। शाम के समय जब दीपक जलाए जाते हैं, तो वह केवल गंगा तट ही नहीं, बल्कि हर भक्त के अंतर्मन को भी शिव-ज्योति और भक्ति-प्रकाश से आलोकित कर देते हैं।

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