कई राज्यों के समझदार और प्रगतिशील किसानों ने शुरू किया प्रयोग
Organic Farming, (आज समाज), नई दिल्ली: आजकल खेती में केमिकल पेस्टीसाइड का अंधाधुंध इस्तेमाल एक बड़ी मुसीबत बन गया है। हम अच्छी पैदावार की लालच में खेतों में जो खतरनाक केमिकल डाल रहे हैं, उससे न सिर्फ हमारी मिट्टी बंजर हो रही है, बल्कि यह हमारे और आपके खाने की थाली तक भी पहुंच रहा है। इसका बुरा असर हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर पड़ रहा है।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर बिहार के प्लांट पैथोलॉजी विभाग के हेड डॉ. एसके सिंह का कहना है कि अब समय आ गया है कि किसान सुरक्षित और कम खर्चीले विकल्पों की ओर लौटें। रसायनों की बढ़ती कीमतों ने खेती की लागत बढ़ा दी है। ऐसे में, घर पर आसानी से बनने वाले बेसन और छाछ जैसे देसी नुस्खे न केवल खेती को केमिकल मुक्त बनाने का रास्ता हैं, बल्कि यह किसानों की जेब पर भी भारी नहीं पड़ते।

महंगी दवा छोड़ें, फसल बचाएं, सेहत बनाएं

डॉ. सिंह का कहना है कि इलाज से बेहतर बचाव है, और बेसन-छाछ का यह मिश्रण ठीक यही काम करता है। यह एक ऐसा देसी आॅर्गेनिक पेस्ट कंट्रोल है जिसे कोई भी किसान बिना किसी मशीन या महंगे उपकरण के अपने घर पर बना सकता है। पिछले कुछ समय में कई राज्यों के समझदार और प्रगतिशील किसानों ने इसका प्रयोग शुरू किया और नतीजे चौंकाने वाले मिले।

यह प्रयोग इतना सफल रहा कि अब यह केवल खेतों तक सीमित नहीं है। शहरों में जो लोग अपनी छतों पर बागवानी करते हैं, वे भी लोग अब रसायनों से उगी सब्जियों से तंग आ चुके हैं और उन्हें प्राकृतिक चीजों की तलाश है। यह देसी स्प्रे न सिर्फ कीटों को मारता है, बल्कि फसल की रंगत भी सुधारता है।

फसलों का सस्ता इलाज, खेती का सरल विज्ञान

डॉ. एसके। सिंह बताते हैं कि बेसन और दोनों के अपने खास गुण हैं। जब हम बेसन का घोल बनाकर पौधों पर छिड़कते हैं, तो यह पत्तियों पर एक चिपचिपी परत बना देता है। जब एफिड, सफेद मक्खी या थ्रिप्स जैसे छोटे कीड़े पत्तियों पर बैठते हैं, तो वे इस चिपचिपाहट में फंस जाते हैं।

उनकी सांस लेने वाली नलियां बंद हो जाती हैं और वे मर जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ, छाछ में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया होते हैं। ये बैक्टीरिया पौधों में लगने वाली फफूंद की बीमारियों को रोकते हैं। यानी, यह मिश्रण ‘एक पंथ, दो काज करता है। यह कीटनाशक भी है और फफूंदनाशक भी। साथ ही, छाछ के पोषक तत्व पौधों को हरा-भरा रखने में मदद करते हैं।

कीट-बीमारी रोकने का देसी फॉर्मूला

इस घोल को बनाने के लिए आपको बाजार से महंगी दवाइयां लाने की जरूरत नहीं है। इसके लिए आपको चाहिए, 250 ग्राम बेसन, 1 लीटर छाछ अगर छाछ थोड़ी खट्टी हो तो और भी अच्छा, और 8 से 10 लीटर पानी। इसे और ताकतवर बनाने के लिए आप इसमें थोड़ा नीम का काढ़ा या गाय का गोमूत्र भी मिला सकते हैं।

बनाने की विधि

सबसे पहले एक बाल्टी में 1 लीटर छाछ लें और उसमें 250 ग्राम बेसन धीरे-धीरे मिलाएं। इसे अच्छे से घोलें ताकि कोई गांठ न रहे। इस मिश्रण को आधे घंटे के लिए छोड़ दें ताकि बेसन फूल जाए। इसके बाद इसमें 8-10 लीटर साफ पानी मिलाएं। इस पूरे घोल को एक साफ और पतले सूती कपड़े से छान लें। छानना इसलिए जरूरी है ताकि स्प्रे मशीन का नोजल जाम न हो। इस तरह देसी कीटनाशक तैयार है।

बेसन-छाछ का घोल, कीटों की ‘नो एंट्री’

इस घोल का इस्तेमाल करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। छिड़काव हमेशा सुबह या शाम के समय करें जब धूप तेज न हो। इसे बनाकर बहुत दिनों तक न रखें, कोशिश करें कि ताजा घोल ही इस्तेमाल हो और 24 घंटे के अंदर उपयोग हो जाए। इसे मिर्च, टमाटर, बैंगन, लौकी, भिंडी जैसी सब्जियों से लेकर पपीता, अमरूद जैसे फलों और गुलाब-गेंदे जैसे फूलों पर भी छिड़का जा सकता है।

टॉनिक की तरह काम करता यह घोल

यह घोल पौधों पर टॉनिक की तरह काम करता है, जिससे पत्तियां चमकदार और हरी हो जाती हैं। सबसे बड़ी बात, इसमें कोई केमिकल नहीं है, इसलिए तुड़ाई के तुरंत पहले भी इसका छिड़काव किया जा सकता है। यह तरीका अपनाकर किसान न केवल अपनी लागत कम कर सकते हैं, बल्कि समाज को केमिकल मुक्त सब्जी और अनाज खिला सकते हैं।