Notice On Commercialization Of Education, संभव शर्मा, (आज समाज), नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने शिक्षा के व्यावसायीकरण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को कथित रूप से वंचित किए जाने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में दिल्ली सरकार, सीबीएसई और एनसीईआरटी को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने बुधवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान नोटिस जारी किए। मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी।

निजी प्रकाशकों से महंगी किताबें खरीदने का दबाव

दून स्कूल के निदेशक जसमीत सिंह साहनी ने अधिवक्ता सत्यम सिंह राजपूत के माध्यम से यह जनहित याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि निजी स्कूल अभिभावकों पर निजी प्रकाशकों से महंगी किताबें और अध्ययन सामग्री खरीदने का दबाव डाल रहे हैं, जिससे वंचित छात्रों की शिक्षा पर बुरा असर पड़ रहा है।

आरटीई अधिनियम के उल्लंघन का आरोप

याचिका में निजी स्कूलों पर शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया गया है। कहा गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को सालाना 10,000-12,000 की किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि सरकार केवल 5,000 प्रति वर्ष प्रदान करती है।

कई पैरेंट्स बच्चों को स्कूल से निकालने के लिए मजबूर

आईटीवी नेटवर्क के साथ एक विशेष बातचीत में, अधिवक्ता सत्यम सिंह राजपूत ने कहा कि इसके कारण कई परिवार अपने बच्चों को स्कूल से निकालने के लिए मजबूर हैं। राजपूत ने कहा कि निजी स्कूल सीबीएसई के दिशानिर्देशों, खासकर 2016-17 के सीबीएसई सर्कलर की अनदेखी कर रहे हैं, जिसमें एनसीईआरटी की किताबों के इस्तेमाल को अनिवार्य किया गया है।

700 की जगह निजी स्कूलों में किताबों की कीमत 10,000 रुपए

सत्यम सिंह राजपूत ने कहा, ‘एनसीईआरटी की किताबों की कीमत लगभग 700 है, जबकि निजी स्कूलों में उन्हीं किताबों के संस्करण 10,000 से अधिक में बिकते हैं।’ याचिका में कहा गया है कि स्कूल, स्कूल बैग नीति, 2020 का पालन नहीं कर रहे हैं। इस नीति के अनुसार, स्कूल बैग का वजन बच्चे के शरीर के वजन के 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता का कहना है कि कोई उचित नियमन या निगरानी नहीं है। इस वजह से स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं।

स्कूल बैग के लिए एक निश्चित भार प्रणाली

जनहित याचिका में स्कूल बैग के लिए एक निश्चित भार प्रणाली लागू करने और केवल आवश्यक होने पर ही, नियंत्रित कीमतों पर निजी किताबें उपलब्ध कराने का सुझाव दिया गया है। इसमें आरटीआई की धारा 12(1)(सी) को सख्ती से लागू करने, स्कूल बैग नीति को लागू करने और नियमों का पालन न करने वाले स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है। याचिकाकर्ता साहनी ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, न कि कोई व्यवसाय। उन्होंने दावा किया कि वर्तमान प्रणाली 55,000 करोड़ की समानांतर अर्थव्यवस्था बन गई है जो अभिभावकों और गरीब छात्रों का शोषण करती है।

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