उपराष्ट्रपति पद के लिए बी सुदर्शन रेड्डी से होगा मुकाबला

Vice President Election Update (आज समाज), नई दिल्ली : देश के उपराष्ट्रपति पद के लिए 9 सितंबर को होने वाले चुनाव के लिए एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। ज्ञात रहे कि वे वर्तमान में तलिमनाडू के राज्यपाल हैं और बीते रविवार को एनडीए ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना प्रत्याशी घोषित किया था। सीपी राधाकृष्णन का मुकाबला विपक्ष के प्रत्याशी बी सुदर्शन रेड्डी से होगा। ज्ञात रहे कि आज और कल नामांकन करने का समय है। उसके बाद 25 अगस्त तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। मतदान 9 सिंतबर हो होगा।

नामांकन के समय ये रहे मौजूद

उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। इस दौरान उनके साथ पीएम मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ-साथ भाजपा और एनडीए के तमाम नेता भी मौजूद रहे। सीपी राधाकृष्णन ने संसद परिसर में उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने से पहले महात्मा गांधी को पुष्पांजलि अर्पित की।

लोकसभा और राज्यसभा में यह है एनडीए की स्थिति

जीत और हार के आंकड़ों पर गौर करने से पहले एक बार लोकसभा और राज्यसभा में सांसदों की संख्या पर नजरें दौड़ा लेते हैं। लोकसभा की बात करें तो इसमें निर्वाचित होने वाले सांसदों की संख्या 543 है। लेकिन पश्चिम बंगाल की बशीरहाट सीट खाली होने के कारण वर्तमान में 542 सांसद निर्वाचित हैं। वहीं, अगर राज्यसभा की सीटों पर गौर फरमाया जाए तो राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं, लेकिन इनमें से 6 सीटें फिलहाल खाली हैं। इन 6 सीटों में 4 जम्मू-कश्मीर की हैं और एक-एक सीट झारखंड और पंजाब की है। इस तरह दोनों सदनों के वर्तमान निर्वाचित सांसदों की संख्या 781 है। किसी भी गठबंधन को जीतने के लिए इनमें से आधी यानी 391 सांसदों के वोटों की जरूरत होगी।

तय मानी जा रही सीपी राधाकृष्णन की जीत

बीजेपी ने एनडीए की ओर से पहले ही उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर सीपी राधाकृष्णन का नाम घोषित करके विपक्ष और पूरे इंडिया ब्लॉक पर बढ़त बना ली है। पहली बात तो ये है कि एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में इसके लिए पर्याप्त आंकड़े हैं। जीत के लिए 392 सांसदों का समर्थन चाहिए और एनडीए के पास 427 एमपी हैं। यही नहीं, विपक्ष के कई दल और सांसद भी इस चुनाव में एनडीए प्रत्याशी का समर्थन कर सकते हैं। विपक्षी नेताओं ने अभी से इसके संकेत देने शुरू कर दिए हैं और इतिहास भी गवाह है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी सांसदों को एकजुट बनाए रखना आखिरकार टेढ़ी खीर साबित होती रही है।

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