- एक देश, एक विधान, एक निशान के नारे को किया साकार: दुष्यंत वाल्मीकि
(Charkhi Dadri News) चरखी दादरी। नहीं चलेगा एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान ये एक ऐसा नारा है जिसने आजाद भारत में पहली बार स्पष्ट कर दिया था कि अगर हमें अपने भारत को पूरी तरह से एक स्वतंत्र ईकाई के रूप में स्थापित करना है तो इसे अपनाना ही आखिरी सच्चाई है। यह नारा दिया था जनसंघ संस्थापक डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी ने जिन्होंने आखिर में पूरे देश को एक झंडे व संविधान के तले लाने के लिए ही अपना बलिदान दिया। उनके इस नारे को सही मायनों में धरातल पर उतारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में काम किया गया व अंतत उनके एक देश, एक विधान, एक निशान के सपने को केंद्र सरकार ने सच कर दिखाया कि कश्मीर कोई अलग नहीं बल्कि राष्ट्र का अहम हिस्सा है और रहेगा।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग चाहते थे बनाना
यह बात गांव मिसरी में जनसंघ संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस अवसर पर उनको श्रद्धाजंली देते हुए प्रदेश कार्यकारणी सदस्य एसी मोर्चा दुष्यंत वाल्मीकि ने कही। आज उनकी अध्यक्षता में गांव मिसरी में कार्यक्रम का आयेाजन किया गया। इसमें बीजेपी से जुडे पदाधिकारियों व मौजिज लोगों ने उन्हें श्रद्धाजंली देते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प धारण किया।दुष्यंत वाल्मीकि ने बताया कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे।
संसद में अपने भाषण में उन्होंनें धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू कश्मीर की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि श्श्या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगाश्श्। डॉ. मुखर्जी अपने संकल्प को पूरा करने के लिये 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। जेल में उनकी मृत्यु ने देश को हिलाकर रख दिया और परमिट सिस्टम समाप्त हो गया।
Charkhi Dadri News : भाजपा कार्यकर्ताओं ने डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर नमन किया