(Chandigarh News) चंडीगढ। धैर्य रखना साहसी लोगों का लक्षण है। वास्तव में धैर्य का फल मीठा होता है। दरअसल जो लोग धैर्य रखते हैं उनको चीजों के विश्लेषण करने का मौका मिल जाता है अगर जीवन में प्रसन्नता पाना है तो अपना ध्यान उन चीजों पर लगाइए जो आपके पास है बजाय कि उन चीजों के बारे में सोचने के जो आपके पास नहीं हैं। धैर्य के साथ जीवन को जिएं। गति को थोड़ा कम कर दें और फिर देखें जीवन प्रसन्नता से भर जाएगा। ये शब्द मनीषीसंतश्रीमुनिविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24 सी अणुव्रत भवन तुलसीसभागार में सभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा जो मनुष्य सिर्फ भौतिक पदार्थो के पीछे भागेगा, उसे प्रचुर मात्र में भौतिक संपत्ति तो हासिल हो जाएंगी, लेकिन जरूरत से ज्यादा भौतिकता साथ में दुख, कष्ट, तनाव, क्रोध और विकृति भी लाती है। जिस प्रकार कंप्यूटर साइंस में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों की भूमिका है, उसी प्रकार शरीर रूपी हार्डवेयर के साथ चिंतन रूपी सॉफ्टवेयर को भी वायरस मुक्त रखा जाना चाहिए। पांचों ज्ञानेंद्रियों में आंख के जरिये प्रकृति से मिलने वाले आनंद यानी उगते हुए सूर्य, चंद्रमा, तारे-सितारे, पेड़-पौधे, नदियों-झरनों से निकलने वाली आनंद रूपी ऊर्जा हमें प्राप्त होती है। इसी तरह कानों से सुमधुर संगीत, भजन, कीर्तन, स्तुति और श्लोक से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों को ग्रहण करना चाहिए।

दो और दो पांच का गणित करेंगे तो सदैव परेशान ही रहेंगे और बेवजह का तनाव पैदा करेंगे

नासिका से फूलों की सुगंध, प्राकृतिक परिवेश में योग साधना से ऑक्सीजन की ऊर्जा लेनी चाहिए और जीभ से स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्र्थो का रस लेना चाहिए। साथ ही शरीर के माध्यम से माता-पिता, वृद्धजनों की सेवा व चरणस्पर्श से शक्ति अर्जित करना चाहिए। फिर शत-प्रतिशत गारंटी है कि जीवन आनंदमय ही नहीं, बल्कि आनंद का धाम और परमानंद सदृश हो जाएगा। फिर वही व्यक्ति जो तनाव में है और दवाओं से सुकून तलाश रहा है, वह स्वयं आनंददाता बनकर आनंद और प्रसन्नता बांटता दिखाई पड़ेगा। इस प्रकार हम अपने बहुमूल्य जीवन को सार्थक बना सकेंगे तथा समाज को भी सकारात्मक योगदान दे सकेंगे। दो और दो पांच का गणित करेंगे तो सदैव परेशान ही रहेंगे और बेवजह का तनाव पैदा करेंगे।

मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया स्मार्टफोन के सहारे बच्चे इंटरनेट की दुनिया में कहां तक उतर गए हैं, इसका पता हमें तब जाकर चलता है, जब किसी दिन ‘ब्लू व्हेल’ जैसे खतरे सामने आते हैं. भारत ही नहीं अमेरिका, यूरोप सब जगह की सरकार इंटनरेट के आगे लगभग असहाय हैं. बच्चे वहीं अधिक सुरक्षित रहेंगे, जहां समाज अपनी भूमिका अधिक सजगता, स्नेह से निभाएगा।हमें हर कीमत पर बच्चे को समय, स्नेह और साथ मुहैया कराना होगा. ध्यान रहे, बच्चों को सुविधा मजबूत नहीं बनाती, उसे मुंहमांगी चीजें न मिलने पर वह कमजोर नहीं होता. हम बड़े ही इस उधेड़बुन में उसे दूसरी ओर धकेल रहे हैं. हम उसे अधिक सुख देने के चक्कर में उसे उसके हिस्से के स्नेह से दूर कर रहे हैं, यही परवरिश का सबसे बड़ा संकट है।

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