मनीषीसंत ने कहा यदि यह भावना प्रबल बने तो मानना चाहिए- ध्यान का प्रयोजन सफल हुआ है। हमारे शरीर के भीतर जो शक्तियां सोई हुई हैं, वे जाग जाएं। व्यक्ति में यह चेतना जगनी चाहिए-मुझमें शक्ति है, उसे जगाया जा सकता है और उसका सही दिशा में प्रयोग किया जा सकता है। शक्ति का बोध, जागरण की साधना और उसका सम्यग् दिशा में नियोजन- इतना-सा विवेक जाग जाए तो सफलता का स्रोत खुल जाए।
मनीषीसंत ने कहा ध्यान एक ऐसी क्रिया है, जिसका संबंध शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा तीनों से होता है अर्थात तीनों के सामंजस्य से यह क्रिया संपन्न होती है। तीनों पर इस क्रिया (ध्यान) का प्रभाव भी पड़ता है। न करने से पूर्व इस बात का विशेष खयाल रखें कि इस दौरान किसी भी प्रकार के अनिष्टकारी, अहितकारी एवं अस्वस्थ विचार मन में न आएं। अन्यथा परिस्थितियां विपरीत भी हो सकती हैं। ध्यान शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिए बिलकुल नि:शुल्क हानिरहित उपचार पद्धति है। इस सत्य को प्राय: हर उम्र तथा हर वय के व्यक्ति ने स्वीकारा है। ध्यान के माध्यम से कुप्रवृत्तियों पर अंकुश एवं सद्वृत्तियों का विकास सहजता से किया जा सकता है। जब भी एकाग्र मन से किसी भी विषय में सोचा जाए, मनन किया जाए तो वह शीघ्र फलित होने लगता है, खासतौर पर स्वयं के स्वभाव व आदतों को बदलने की दिशा में।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया आप मेडिटेशन नहीं कर सकते, लेकिन आप मेडिटेटिव हो सकते हैं। ध्यान एक खास तरह का गुण है, कोई काम नहीं। अगर आप अपने तन, मन, ऊर्जा और भावनाओं को परिपक्वता के एक खास स्तर तक ले जाते हैं, तो ध्यान स्वाभाविक रूप से होने लगेगा। यह ठीक ऐसे है, जैसे आप किसी जमीन को उपजाऊ बनाए रखें, उसे वक्त पर खाद पानी देते रहें और सही समय पर सही बीज उसमें डाल दें तो निश्चित तौर से इसमें फूल और फल लगेंगे ही। एक पौधे पर फूल और फल इसलिए नहीं आते हैं, क्योंकि आप ऐसा चाहते हैं। बल्कि इसलिए आते हैं, क्योंकि आपने उनके खिलने के लिए एक उचित वातावरण और अनुकूल परिस्थितियां पैदा कर दी है।