Chandigarh News: जीवन में सुख और दुख का सिलसिला चलता रहता है. व्यक्ति कभी बहुत अच्छा समय जीता है तो कभी उसे बहुत चुनौतीपूर्ण जीवन जीना पड़ता है. ज्यादातर लोग सुख के बाद आए दुख को सह नहीं पाते और इसके कारण या तो डिप्रेशन में आने लगते हैं, या जल्दबाजी में कोई न कोई गलत कदम उठा लेते हैं।

चाहे कितनी ही मुश्किल आ जाए, हिम्मत मत हारिए और ठोस रणनीति बनाकर चरणबद्ध तरीके से आगे बढि़ए. ध्यान रखिए अगर किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करनी है, तो उसके लिए आपको सही रणनीति जरूर बनानी पड़ेगी. दिशाहीन होकर चलने वाले को मंजिलें नहीं मिला करतीं। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24 तुलसी सभागार में जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषसंत ने आगे कहा  मुसीबत के समय में आपको सिर्फ अपना ही नहीं, बल्कि अपने परिवार के लोगों का भी विशेष खयाल रखना चाहिए. उनका साथ निभाना चाहिए और उनकी सुरक्षा का पूरा खयाल रखना चाहिए. यदि परिवार के लोगों पर कोई मुसीबत आ गई है, तो आपको प्राथमिकता के साथ उन्हें उस मुसीबत से बचाना चाहिए।

पहला सुख निरोगी काया है. यानी खुद की सेहत का बेहतर खयाल रखें और खुद को निरोगी बनाकर रखें. तभी आप किसी भी योजना में सफलता से पार जा सकते हैं. यदि आप बीमार होंगे, तो चाहकर भी काम को बेहतर तरीके से नहीं कर पाएंगे. धन का हमेशा संचय करके रखिए. मुसीबत के समय धन ही आपका वो मित्र होता है, जो सबसे ज्यादा साथ देता है. यदि आपके पास धन नहीं है, तो आपके लिए समस्याएं कहीं ज्यादा विकराल हो जाएंगी।

मनीषीसंत ने कहा जीवन में आगे बढऩे के लिए सही और गलत का निर्णय लेता है हमारा विवेक। उसी के माध्यम से लक्ष्य को पाया जा सकता है। सिर्फ मनोरंजन प्रदान करने वाले कार्यो में हमारा मन खूब रमता है। यह जानते हुए भी कि उस कार्य से हमारे जीवन लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती, फिर भी यदि हम वह कार्य लगातार करते जाते हैं, तो यह हमारा अविवेक है। वहीं यदि हम किसी विशेष कार्य को करने का निर्णय लेने से पहले यदि उसके परिणाम और दुष्परिणाम पर सोच-विचार करते हैं, तो ऐसा हम सिर्फ अपने विवेक की मदद से कर पाते हैं।

भौतिक सुख-साधन अनित्य हैं और एकमात्र ईश्वर ही सत्य है। रुपये-पैसों से हमें क्या मिलता है? दाल-रोटी, कपड़े और रहने के लिए जगह-बस इतना ही और कुछ नहीं। निश्चित तौर पर रुपये से ईश्वर नहीं मिलते हैं। इसलिए रुपये कमाना कभी हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता है। यदि हम इस विचार पर अपनी सहमति जताते हैं और उसी के अनुरूप कार्य करते हैं, तो इसे हम विवेक-विचार कहते हैं।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया कहा यदि हम किसी भौतिक साधन या व्यक्ति के प्रति आसक्त हैं, तो हम यह विचार कर देखें कि वास्तव में वह क्या है? क्या कालक्रमानुसार, इनका विनाश नहीं होगा या क्या वे नश्वर नहीं हैं? विवेक अर्थात सत्-असत् का विचार और वैराग्य अर्थात संसार की वस्तुओं के प्रति विरक्ति या उदासीनता। यह एकाएक प्राप्त नहीं होता है। इसके लिए हमें रोज अभ्यास करना पड़ता है।