Chandigarh News:  गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है चाहे वह चरित्र पर शक करना और जब वह आपके रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है, ये सब चरित्रहीनता के लक्षण होते है। चरित्रहीन कभी भी अपना विकराल रूप धारण कर सकती है ओर इसकी निशानियां रिश्तो मे भी छलकनी लगती है। यही कारण है कभी फूल लगनेवाला रिश्ता आपको खरोंचे देने लगता है। जो जोड़ा कभी एक-दूसरे पर जान छिडक़ता था, एक-दूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की ख़ुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, वो जब ग़लतफ़हमी का शिकार होने लगता है, तो रिश्ते की मधुरता व प्यार को नफऱत में बदलते देर नहीं लगती। ऐसे में अपने रिश्तें को टूटने से बचाने के लिए कुछ ऐसा करे। यह बात सही है कि बात करने के दौरान आपको कुछ ऐसा सुनने के लिए भी मिल सकता है जो आपको अच्छा ना लगे, पर आपको समस्या का समाधान करना है और इससे अच्छा तरीका कुछ भी नहीं है। ये शब्द सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन में सभा मे रविवारीय सभा को संबोधित करते हुए कहे।

आगे कहा कभी-कभी हमें सिर्फ विश्वास की एक छलांग की जरूरत होती है।’’ इसी से व्यक्ति में आत्म विश्वास उत्पन्न होता है और इसी से एक समाधान सूत्र मिलता है कि- मेरी समस्याओं का समाधान कहीं बाहर नहीं है, भीतर है। ध्यान का प्रयोजन है- व्यक्ति में यह आत्मविश्वास पैदा हो जाए- जो मुझे चाहिए, वह मेरे भीतर है। यदि यह भावना प्रबल बने तो मानना चाहिए- ध्यान का प्रयोजन सफल हुआ है। ध्यान का अर्थ यही है कि हमारे शरीर के भीतर जो शक्तियां सोई हुई हैं, वे जाग जाएं। ध्यान से व्यक्ति में यह चेतना जगनी चाहिए-मुझमें शक्ति है, उसे जगाया जा सकता है और उसका सही दिशा में प्रयोग किया जा सकता है। शक्ति का बोध, जागरण की साधना और उसका सम्यग् दिशा में नियोजन- इतना-सा विवेक जाग जाए तो सफलता का स्रोत खुल जाए।

संकल्पवान व्यक्ति अंधकार को चीरता हुआ स्वयं प्रकाश बन जाता है। चंचलता की अवस्था में संकल्प का प्रयोग उतना सफल नहीं होता जितना वह एकाग्रता की अवस्था में होता है। हर व्यक्ति रात्रि के समय सोने से पहले एक संकल्प करे, उसे पांच-दस मिनट तक दोहराए, मैं यह करना या होना चाहता हूं, इस भावना से स्वयं को भावित करे, एक निश्चित भाषा बनाए और उसकी सघन एकाग्रता से आवृत्ति करे, ऐसा करने से संकल्प बहुत शीघ्र सफल होता है।

अंत मे फरमाया गतिशीलता जीवन का अभिन्न अंग है अगर जीवन मे ठहराव है तो वहां दूषित विचारों का जन्म अपने आप होने लगता है। इससे बचने के लिए अपने आपको गतिशील पथ पर आगे बढाईये यही आज के समय की पुकार है।  मनुष्य का मूल स्वभाव चीजों के साथ चिपके रहना नहीं है. आदिमानव से ‘डिजिटल’ तक का सफर इस बात की गवाही देता है कि हमें ठहरना पसंद नहीं. हमें निरंतर नए आसमां देखने हैं. इसलिए, हमारे समाज में हर चीज का वक्त तय किया गया. वह इसलिए जिससे दुख का सामना करने में आसानी हो. विचार के रूप में तो यह बात स्वीकार है, लेकिन व्यवहार में अभी हम बहुत पीछे हैं. हमें समझना होगा कि एक ख्याल के भरोसे उम्र नहीं गुजारी जाती. एक खराब मौसम, अनुभव से जिंदगी के सफर का नक्शा तय नहीं किया जा सकता!