Chandigarh news: (आज समाज): पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) आज प्रजनन आयु की महिलाओं में सबसे आम हार्मोनल विकारों में से एक के रूप में उभर रहा है। ताज़ा रुझान बताते हैं कि यह समस्या अब केवल 20–30 वर्ष की महिलाओं में, बल्कि किशोरियों और युवाओं में भी तेज़ी से बढ़ रही है। स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार, आज लगभग 30–40% ओपीडी परामर्श पीसीओएस से जुड़े होते हैं, जो समय रहते पहचान और समग्र प्रबंधन की ज़रूरत को रेखांकित करता है।
पारंपरिक रूप से पीसीओएस को अनियमित माहवारी, बांझपन, वज़न बढ़ना, मुंहासे और अनचाहे बालों की समस्या से जोड़ा जाता रहा है। लेकिन पीसीओएसः शारीरिक से ज़्यादा मानसिक स्वास्थ्य पर असर करता है |मदरहुड चैतन्या हॉस्पिटल, सेक्टर-44 चंडीगढ़ की स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. हीना चावला कहती हैं, “पीसीओएस सिर्फ़ पीरियड्स की अनियमितता तक सीमित नहीं या गर्भधारण की समस्या नहीं है, बल्कि यह आजीवन रहने वाली स्थिति है जो हार्मोन, मेटाबॉलिज़्म और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।
कई महिलाएं चिंता, चिड़चिड़ापन या अवसाद महसूस करती हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता कि इसके पीछे उनके हार्मोन ज़िम्मेदार हैं। ज़रूरी है कि महिलाएं जानें कि वे अकेली नहीं हैं और सही इलाज, जीवनशैली सुधार और भावनात्मक सहारे से इसे प्रभावी रूप से संभाला जा सकता है।”मानसिक दबाव अक्सर पीसीओएस के बाहरी लक्षणों से जुड़ा होता है। वज़न बढ़ना, लगातार मुंहासे और अनचाहे बाल आत्मविश्वास को प्रभावित करते हैं।
नतीजतन कई महिलाएं हीनभावना, बॉडी इमेज की समस्या और सामाजिक दूरी का शिकार हो जाती हैं, जिससे तनाव और बढ़ता है।मदरहुड हॉस्पिटल, मोहाली की स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ. सुनैना बंसल बताती हैं, “पीसीओएस का सबसे अनदेखा पहलू इसका आत्मविश्वास और रिश्तों पर असर है।
युवा लड़कियां मुंहासों या अनचाहे बालों से शर्मिंदा रहती हैं, वहीं विवाहित महिलाएं चुपचाप बांझपन की चिंता से जूझती हैं। सच यह है कि पीसीओएस उतना ही भावनात्मक सफ़र है जितना चिकित्सीय। इसलिए दवाओं के साथ काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव बेहद ज़रूरी हैं।”