Chandigarh News: भाषा  बहुमूल्य जवाहरत से भरी एक खान के समान है, इस खान के अधिकारी  को इतना ज्ञान होना जरूरी है किस पत्थर का क्या मूल्य है और उसका कब प्रयोग होगा।  आवेश मे बोलना बोलने वाला  अपने शब्दो को मिट्टी के मोल जहां तहां फेंकता है। आवेश मे बोलने का मतलब है कि  महीनो बंद गटर के ढक्कन को एक साथ खोलने का।

समय पर मौन करने वाला और कम बोलने वाला व्यक्ति ही संसार मे कुछ करके दिखला सकता है। जब से मां के गृभ से इंसान का जन्म होता है तब से जीवन की डगर सरपट दौडने लगती है, जीवन मे शब्दों का बडा ही महत्व है। जीवन का सबसे पहला गुरू मां होती है जो शब्द को बोलना सिखाती है।

जीवन की मिठास  जो वाणी  मे बहती रहती है वह नीम मे परिणम हो जाती है। यह बात स्पष्ट है कि मूर्ख का दिल जुबान पर हेाता है और विद्धान की जुंबा दिल पर। पहली श्रेणी के व्यक्ति रसना की करामात से सर्वथा अनजान होते है।   ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24सी के तुलसीसभागार में जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा जीवन के साथ कुछ ऐसे नियम और कानून जुडे होते है, जिनका पालन  करके ही मनुष्य सुखपूर्वक जी सकता है। प्रत्येक मनुष्य के पास मन,वाणी और शरीर तीन शक्तियां है। इन तीनो को कहां खर्च करना तथा व्यय हुई शक्तियों को पुन कैसे अर्जित करना है, इसका विवेक होना हर समझदार  व्यक्ति के लिए  आवश्यक है।

कौन व्यक्ति कैसा है इसकी पहचान  उसका भाषा व्यवहार है, आभूषणो से बढाया सौंदर्य स्थायी नही होता, सदा साथ नही देता किंतु मधुर वाणी का श्रंृगार सारे संसार को अपनी  और खींच सकता है और यही साथ रहता है। अपव्यय किसी भी दृष्टि से उपयोगी नही होता अधिक सोचने से जितना अनिष्ट होता है, उससे कम अनिष्ट अधिक बोलने से होता है।

बोलने का उदे्दश्य है अपनी बात औरों तक पहुंचाना, किंतु यदि वहां पर पहुंचाने के लिए हमारे पास माध्यम गलत है। उत्तेजना भरे है, शिथिल है, तथा उलझन भरे है तो है हम अपने आस पास एक अस्वस्थ वातावरण तैयार कर लेते है,
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया वाणी का विवेक सबसे ज्यादा आवश्यक है वचन ही झगडे का कारण है और वचन ही झगडे को शांत कर सकता है। एक शब्द नीचे की और ले जाता हेै एक शब्द ही ऊपर ले जा सकता है।

ये शब्द के विवेक पर अधारित है।  जिस व्यक्ति का विवेक जागृत हो गया है तो वह व्यक्ति कभी कटु शब्दो का प्रयोग नही करेगा और जिसके पास विवेक नही उसके पास कटु शब्दो के अलावा और शब्द नही होते। ज्ञानी कम बोलता है, क्योकि बोलने  से तो जाना जाता है, वह सब ज्ञानी मौन से जान लेता है, मौन जहां  अपनी दुर्बलता की ढांकने का साधन है वही दुर्बलता  से ऊपर उठने का भी  सफल साधन है।

बोलना व्यवहार  निभाने का हेतु इससे इंद्रियो को विश्राम मिलता है। विचारो की उत्तेजना  घटती है।  अधिक सोचने से जितना अनिष्ट होता है, उससे कम अनिष्ट अधिक बोलने में नही है । बोलने का उद्देश्य है अपनी बातें ओरों तक पहूँचाना, किन्तु अगर माध्यम गलत है, उतेजना भरे हैं, शिथिल हैं और उलझन भरे हैं तो अपने आसपास एक अस्वस्थ वातावरण पैदा हो जाता है ।

जीवन की मिठास जो वाणी में बहती है वह नीम जेसी कडवाहट में परिंणत हो जाती है आदमी को कभी भी बिना पूछे नहीं बोलने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को बोलने में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। जब तक कहीं पूछा न जाए आदमी को अपने ज्ञान को उजागर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।