Chandigarh News: श्रीमती अरुणा आसिफ अली पोस्टग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज कालका में कॉलेज एलुमनाई एसोसिएशन और कॉलेज प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से कॉलेज में आज श्रीमती अरुणा आसिफ अली की पुण्यतिथि मनाई गई। इस अवसर पर कॉलेज प्रिंसिपल डॉक्टर गीता सुखीजा मुख्य अतिथि थी कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय बंसल एडवोकेट ने की। इस अवसर पर श्रीमती अरुणा आसिफ अली ट्रस्ट चंडीगढ़ की मैनेजिंग ट्रस्टी अमरजोत कौर गिल, फाइनेंस सेक्रेटरी मीना जोहर, एलुमनाई एसोसिएशन के एसके थामा एडवोकेट, राजीव अरोड़ा, जतिंदर, अरुण कोडा, शशि गुप्ता, संजय बंसल, रमन जिंदल, कॉलेज काउंसिल के सदस्य प्रोफेसर डॉक्टर वीरेंद्र अटवाल ,प्रोफेसर डॉ रामचंद, सुनीता चौहान, डॉक्टर बिंदु शर्मा, सेलिब्रेशन ऑफ डेज़ समिति की सदस्या नीतू चौधरी, डॉक्टर इंदु, डॉक्टर प्रदीप कुमार, डॉ नवनीत नैंसी, मैडम सविता डॉ नमिता, डॉ सोनाली आदि अन्य लोग भी उपस्थित थे।
इस अवसर पर अल्युमिनियम एसोसिशन के अध्यक्ष विजय बंसल एडवोकेट ने कहा कि बड़े गर्व की बात है कि देश की महान विभूति हमारे शहर कालका में पैदा हुई। श्रीमती अरुणा आसिफ अली भारत की प्रथम महिला क्रांतिकारी और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका के रूप में विशेष रूप से याद किया जाता है। उनका जीवन साहस, बलिदान और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणादायक मिसाल है। अरुणा का जन्म 16 जुलाई 1909 को कालका में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा के दौरान ही उनमें समाजसेवा और स्वतंत्रता के प्रति झुकाव विकसित हुआ। अरुणा ने 1930 में प्रसिद्ध कांग्रेस नेता और पत्रकार आसिफ अली से विवाह किया आसिफ अली जी शहीद भगत सिंह के वकील थे। विजय बंसल एडवोकेट ने कहा कि 1931 में श्रीमती अरुणा आसिफ अली की 1942 के भारत छोड़ोआंदोलन में उनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही जब ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था तब अरुणा ने 9 अगस्त 1942 को बॉम्बे (अब मुंबई) के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा झंडा फहराकर आंदोलन का नेतृत्व किया था। यह घटना ब्रिटिश शासन के लिए सीधी चुनौती थी और अरुणा आसिफ अली राष्ट्रव्यापी क्रांतिकारी प्रतीक बन गईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अरुणा जी दिल्ली की पहली महिला मेयर (महापौर) बनीं। उन्हें 1958 में लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 में उन्हें श्पद्म विभूषणश् से सम्मानित किया गया, 1992 में जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, 1997 में उन्हें भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया जो भारत का सर्वाेच्च नागरिक सम्मान है। उन्होंने कहा अरुणा आसिफ अली का निधन 29 जुलाई 1996 को हुआ उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें याद किया जाता है निडर, प्रेरणादायी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें आज भी द ग्रैंड ओल्ड लेडी एवं हीरोइन ऑफ़ भारत छोड़ो आंदोलन के नाम से नवाजा जाता है।
विजय बंसल एडवोकेट ने कहा कि उन्होंने कालका वासियों के सहयोग से वर्ष 2008 में काफी प्रयास कर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कालका राजकीय कॉलेज का नाम श्रीमती अरुणा आसिफ अली रखवाया था।
मुख्य अतिथि प्रिंसिपल डॉ गीता सुखीजा ने आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया उन्होंने कहा एलुमनाई एसोसिएशन हर समय कॉलेज के विकास के लिए और छात्रों की समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर रहती है उनके सहयोग से कॉलेज ने काफी तरक्की की है। उन्होंने कहा कि हमें पूर्ण आशा है कि एलुमनाई एसोसिएशन इसी प्रकार से भविष्य में भी कॉलेज की तरकीब के लिए अपना सहयोग देती रहेगी। अरुणा आसिफ अली का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा देशभक्त वह होता है जो बिना किसी स्वार्थ के देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे। उन्होंने नारी शक्ति, साहस और नेतृत्व की ऐसी मिसाल पेश की जो आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है।
अरुणा आसिफ अली ट्रस्ट चंडीगढ़ की मैनेजिंग ट्रस्टी अमरजोत कौर गिल ने बताया कि महान स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर बनाए गए ट्रस्ट में सन 1997 से गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा, वर्दी दी जाती है।
प्रोफेसर नीतू सिंह ने विजय बंसल की सक्रीयता की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होने सदैव ही कॉलेज के विकास में बढ़-चढ़कर सहयोग दिया है इन्हीं की वजह से कॉलेज में लाइब्रेरी भवन, साइंस ब्लॉक, बड़ा सभागार, एम ए की कक्षाएं आरंभ करना संभव हो पाया है।