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Corona epidemic – Coron has reached 274 districts so far, no evidence of air spread: कोरोना महामारी- अब तक कोरोन 274 जिलों तक पहुंच चुका, हवा में फैलने का कोई सबूत नहीं

नई दिल्ली। कोरोना महामारी का प्रकोप देश में अब तक 274 जिले में फैल चुका है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के…

5 years ago

The big question is whether to save lives or business? बड़ा सवाल ये कि जान बचाएं या कारोबार?

कोरोना का कहर पूरी दुनिया में आतंक मचाया हुआ है। हर तरफ हाहाकार जैसी स्थिति बनी हुई है। अलग-अलग देशों…

5 years ago

It is shameful to make crisis an event! संकट की घड़ी को भी इवेंट बनाना शर्मनाक!

खबर आई कि इंदौर में कोरोना संक्रमितों की जांच के लिए गई डा. जाकिया सईद और डा. तृप्ति की टीम…

5 years ago

What is it that even God cannot bear? वह क्या है जो भगवान भी नहीं सह पाते?

वाल्मीकि रामायण में एक कथा आती है। सतयुग में ब्रह्मवादी गौतम मुनि हो गए। उनके शिष्य का नाम था सौदास…

5 years ago

Ban on export of testing equipment in view of increasing cases of corona virus: कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए जांच उपकरणों के निर्यात पर लगी रोक

नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने देश में पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। लगातार कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में…

5 years ago

The “corona-crisis” phase: “कोरोना-संकट” का दौर

पिछले कुछ दिनों से भारत में लॉकडाउन चल रहा है | ये लॉकडाउन वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से देश…

5 years ago

Also called the king, and his capital too! राजा को भी बुला दिया, और उसकी राजधानी को भी!

(लॉक डाउन के दौर में घर पर क़ैद हूँ। निकल सकता नहीं, और कोई बतियाने भी नहीं आ सकता। ऐसे में दो ही मित्र बने, एक तो किताबें और दूसरा लेखन। मेरा प्रिय विषय इतिहास है, इसलिए इतिहास को लिखने का मैंने तय किया। मुझे उत्तर भारत में दिल्ली के बाद सबसे समृद्ध शहर कानपुर का इतिहास लिखने की इच्छा सदैव रही। इसलिए मैं कानपुर से ही शुरू करूँगा। और आप सबसे भी आग्रह करूँगा, कि सदी की सबसे भयानक महामारी कोरोना से निपटने के लिए आप लोग भी घर से बाहर कदम न रखें। अगर आपने भी सख़्ती से इस पर अमल किया तो यकीनन हम कोरोना को मार भगाएँगे। फ़िलहाल कानपुर का इतिहास पढ़ें।) मैं निजी तौर पर कोशिश करता हूँ, कि जहाँ कहीं भी रहूँ, वहाँ के इतिहास और परंपरा को भी समझूँ और उसके साथ स्वयं को आत्म-सात करूँ। आज से 18 साल पहले जब मैं कानपुर में अमर उजाला का संपादक बन कर गया, तो मैंने कानपुर के इतिहास को फिर से पढ़ना और समझना शुरू किया। मैंने कानपुर का गज़ेटियर मंगाया, पर उसमें कोई विशेष जानकारी नहीं मिली। ‘जो एलांड’ की ‘बॉक्स वाला’ के सभी खंड ब्रिटेन से मंगाए। पर वे भी सिर्फ़ अंग्रेजों की महिमा से भरे हुए। इन सब में एक तो अंग्रेजों की गौरव-गाथा थी और ये सिर्फ़ कानपुर शहर की जानकारी देते थे। इसके बाद मैं कानपुर जनपदीय इतिहास लेखन की तरफ़ से नारायण प्रसाद अरोड़ा और लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी द्वारा लिखित ‘कानपुर का इतिहास’ लाया। उससे पुख़्ता जानकारी कानपुर जनपद की मिली। मैं स्वयं चूँकि कानपुर जनपद में पैदा हुआ, पला-बढ़ा, वहीं मेरे पुरखे भी। लेकिन कानपुर क्यों और कैसे बसा? या कौन-कौन से वीर पुरुष थे, इसे खोजने की ललक मेरे अंदर बढ़ी। मेरे पास इसकी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं थी। इसलिए सबसे पहले तो मैंने कानपुर के देहाती इलाक़ों का दौरा शुरू किया, जो मेरी स्मृतियों में बसा था। इसमें एक पड़ाव था, संचेडी के राजा हिंदू सिंह के बारे में जानकारी लेना। यही कहा जाता है, कि उन्होंने ही कानपुर बसाया। संचेडी कानपुर शहर से सटा हुआ एक गाँवनुमा क़स्बा है। पहले यह कालपी रोड के किनारे था, अब एनएच-टू के किनारे। क्योंकि कालपी रोड अब बारा जोड़ से समाप्त कर दी गई। एक दोपहर मैं अपने एक संवाददाता और फ़ोटोग्राफ़र को लेकर संचेडी के लिए निकल पड़ा। शहर से मात्र दस किमी दूर एनएच-टू पर दाईं तरफ़ संचेडी थाना है। और बाईं तरफ़ कुछ दूरी पर संचेडी गाँव। गाँव की सड़क सीमेंटेड तो थी, लेकिन सँकरी बहुत। बार-बार मुझे अपनी कार नाली में उतारनी पड़ती। गाँव पहुँच कर मैंने जानने की कोशिश की, कि क्या राजा हिंदू सिंह के वंशज अभी यहाँ रहते हैं?  इस गाँव में ठाकुरों की आबादी बहुत अधिक है। और ठाकुर अपने अतीत से बहुत प्यार करते हैं। गाँव के प्रधान, जो कि एक ठाकुर साहब ही थे, मेरी खोज से बहुत प्रसन्न हुए। और वे मुझसे बोले, कि हाँ हैं, उनके परिवार के मौजूदा वारिस फ़ोटोकॉपी की एक दूकान चलाते हैं, तथा उनका पीसीओ भी है। वे मुझे उनकी दूकान तक ले गए। अपने मकान के अगले हिस्से में उन्होंने एक दूकान खोल रखी थी, और पीछे वे स्वयं रहते थे। छोटा सा कच्चा-पक्का मकान। ग़रीबी साक्षात थी। बात शुरू हुई, लेकिन वे स्वयं बहुत कुछ नहीं बता सके। बोले, चलिए, मैं आपको अपना क़िला दिखाता हूँ। यह बोलते समय उस अधेड़ व्यक्ति की आँखों में एक चमक कौंधी। जो १८५७ के बाद से समाप्त हो चुकी थी। कुछ और बूढ़े लोग भी हमारे साथ चल दिए। गाँव से बाहर की तरफ़ दलित बस्ती थी। फिर एक बड़ा तालाब था,  जिसकी जलकुंभी सड़ रही थी। हम पैदल ही चल रहे थे। सामने एक टीला था, और उसके ऊपर लगभग ध्वस्त हो चुकी इमारत। उसकी विशालता और ककई ईंटों को देख कर लगा, कि कभी यह एक भव्य इमारत रही होगी। इस क़िले की देख-रेख अब कोई नहीं करता। न स्टेट का पुरातत्त्व विभाग, न केंद्र का। कानपुर के लोगों को पता ही नहीं होगा, कि यह उस राजा की राजधानी थी, जिसने कानपुर बसाया। जो बाद में एक ऐसा शहर बना, कि उसे एशिया का मानचेस्टर कहा जाने लगा। मैंने लौट कर एक लेख लिखा, “एक भूले-बिसरे राजा की भूली-बिसरी राजधानी!” कानपुर के लोगों ने इसे बहुत पसंद किया। हालाँकि मेरा आज भी यह मानना है, कि कानपुर को राजा हिंदू सिंह ने नहीं बसाया। इसे अंग्रेजों ने बसाया। वह भी सामरिक दृष्टि से इसकी अहमियत को देखते हुए। ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों ने। 1764 में बक्सर की लड़ाई हारने के बाद शाहआलम ने 40 हजार वर्गमील का दोआबा अंग्रेजों को सौंपा और शुजाउद्दौला ने अवध का एक बड़ा भूभाग तथा मीरकासिम बंगाल की दीवानी खो बैठा। इसी दोआबे में पड़ता था कानपुर का इलाका जो तब वीरान था। बस गंगा का किनारा था और जाजमऊ, सीसामऊ, नवाबगंज, जुही और पटकापुर ये पांच जागीरदारियां थीं। इनमें सेनवाबगंज व पटकापुर ब्राह्मणों के पास, जुही ठाकुरों के पास, सीसामऊ खटिकों के पास और जाजमऊ बनियों की जागीरदारी में था। इनमें से जुही की जागीरदारिनी रानी कुंअर और नवाबगंज के बलभद्र प्रसाद तिवारी ने अपने-अपने इलाकों में बड़े काम किए। रानी कुंअर द्वारा दी गई माफी के पट्टे तो आज भी जुही वालों के पास हैं। अंग्रेज पहले अपनी छावनी हरदोई के पास ले गए फिर उन्हें लगा कि सामरि   दृष्टि से बेहतर तो जाजमऊ परगना है और वे अपनी छावनी जाजमऊ ले आए।

5 years ago

Burn diya on 5th April night, do not forget social distancing- PM Narendra Modi: पांच अप्रैल रात 9 बजे नौ मिनट तक जलाएं दिए, सोशल डिस्टेसिंग को न भूलें- पीएम नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यानी शुक्रवार सुबह 9 बजे देशवासियों को वीडियो संदेश दिया।  पीएम मोदी ने कहा कि…

5 years ago

Utterkatha: Tablig Jamaat raised concern in UP amidst chaos of relief: उत्तरकथा: राहत की ढांढस के बीच तब्लीग जमात ने यूपी में बढ़ाई चिंता

उत्तर प्रदेश में कोरोना संकट से निपटने के लिए जंग जारी है। लाकडाउन के बीच लोगों की दिक्कतें दूर करने…

5 years ago