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Raktacharitr ko vikaas charitr banaana hoga! रक्तचरित्र को विकास चरित्र बनाना होगा!

अपनी 66 साल की जिंदगी में उसने सबसे महंगी साड़ी (तंत) 495 रुपये की और चप्पल 55 रुपये की पहनी।…

4 years ago

Why is Nitish happy over Mamta’s victory? ममता की जीत पर नीतीश खुश क्यों?

इस कोरोना काल में हालात को संभालने में नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली बिहार सरकार की नीति, अनीति, कुनीति, सुनीति, राजनीति, रणनीति सब फेल है।…

4 years ago

Underworld don Chhota Rajan is alive: जिंदा है अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन

नई दिल्ली। अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते मौत की रिपोर्ट गलत निकली है। एम्स…

4 years ago

It does not take long to get undercover! मुखौटे उतरने में देर नहीं लगाती!

मोदी सरकार और मीडिया ने सिर्फ़ बंगाल को टॉरगेट किया और बुरी तरह मुँह की खाई। हालाँकि चुनाव असम, केरल, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी में भी थे। लेकिन जीत का सारा श्रेय ममता बनर्जी को मिला। क्योंकि भाजपा के रणनीतिकारों और मीडिया ने सारे चुनावों को मोदी बनाम ममता बना दिया था। इसलिए किसी ने भी गौर नहीं किया कि क्यों आख़िर पिनराई विजयन ने केरल में 45 साल की लीक को तोड़ दिया और पूरी ताक़त के बावजूद तमिलनाडु में डीएमके नेता स्तालिन अन्ना डीएमके के ई. पलाईस्वामी को शून्य पर नहीं ला पाए। डीएमके को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस की मदद लेनी ही पड़ेगी। पुद्दचेरी में भाजपा नीत गठबंधन कैसे जीत गया तथा असम में भाजपा सरकार में आने के बावजूद क्यों कमजोर पड़ी? दरअसल भाजपा नेताओं ने ही 2014 के बाद से चुनाव के लिए काम नहीं बल्कि चेहरों को आगे कर दिया था। इसे चुनावी भाषा में पोस्टर बॉय कहते हैं। लोकतंत्र के ये मुखौटे अपनी गुंडई और व्यक्तिवादी राजनीति से सरकार से लेकर पार्टी तक को नियंत्रित करते हैं। हालाँकि यह परंपरा 1989 से शुरू हो गई थी, लेकिन परवान चढ़ी 2004 से। भाजपा के लोकप्रिय चेहरे अटल बिहारी बाजपेयी के ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे के साथ। उसमें सत्तारूढ़ भाजपा लुढ़की और कांग्रेस के एक ऐसे चेहरे मनमोहन सिंह को कुर्सी मिली जो बहुत लो-प्रोफ़ाइल थे। इकोनामिक रिफ़ॉर्म्स और ग्लोबलाइज़ेशन के समर्थक मनमोहन सिंह को वाम दलों का भी समर्थन मिला। इसके बाद 2009 में कांग्रेस का चेहरा मनमोहन सिंह थे तथा भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी। इसमें आडवाणी को मात मिली। लेकिन 2014 से तो भाजपा के पोस्टर बॉय नरेंद्र मोदी रहे। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत के बाद वे ऐसे इतराए मानों देश अब उनके ही इशारे पर चलेगा। यहीं मात खा गए मोदी जी। अपने अहंकार के चलते वे बंगाल को पहचान नहीं पाए और पूरी लड़ाई सर्व साधन संपन्न पार्टी के नेता मोदी और उनकी तुलना में विपन्न पार्टी टीएमसी नेता ममता बनर्जी के बीच हो गई। प्रचार में अरबों रुपए फूंके गए और भाजपा धड़ाम से गिरी आकर। इस तरह मोदी का अहंकार टूटा। भारतीय लोकतंत्र की यह बहुत बड़ी जीत है, जो उसने इतरा रहे नेता को धूल चटा दी। अब भाजपा लाख सफ़ाई दे कि क्या हुआ, हम बंगाल में तीन से 77 तक तो पहुँच गए। किंतु क्या यह हार नहीं है कि जो पार्टी दो साल पहले बंगाल में 40 प्लस प्रतिशत वोटों पर खड़ी थी, वह इतने कम समय में 37 परसेंट पर कैसे आ गई? बंगाल में भाजपा ने अपना सर्वस्व दांव पर लगाया था। यही कारण है कि वह केरल की तरफ़ ध्यान नहीं दे पाई और अपनी एकमात्र सीट भी गँवा दी। ज़ाहिर है भाजपा के पोस्टर बॉय नरेंद्र मोदी का चेहरा अब फीका पड़ने लगा है। वे कोई नई बात नहीं कह पा रहे हैं। उनके सात वर्ष के शासन में पब्लिक ने उनकी नाकामियाँ देख लीं। सिर्फ़ हिंदू-मुस्लिम कर वोट नहीं मिला करते। इससे आप अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान तो आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन लोग समझ गए हैं कि हाथ मटका कर भाषण देने की कला में दक्ष होने वाला व्यक्ति अच्छा अटेंशन सीकर तो हो सकता है, राज-काज में शून्य होगा। शायद इसीलिए 2002 में तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने नरेंद्र मोदी के गुजरात में हुआ हिंसक तांडव देख कर कहा था, राज धर्म सीखिए मोदी जी। काश! वे राज-धर्म सीखे होते तो आज उनका चेहरा यूँ मुरझाया हुआ नहीं होता। कोई दक्षिणपंथी पार्टी भी अगर चुनाव में जीतती है तो उसे भी सत्ता में आने का हक़ है और निश्चित रूप से है। आख़िर यह लोकतंत्र है, इसीलिए किसी को भी इस बात से उज्र नहीं होगा। लेकिन यदि उस पार्टी का नेता सत्ता में आने के बाद सरकार न चला पाए तो वह हँसी का पात्र ही बनेगा। ऊपर से वह यह स्वीकार करने को राज़ी न हो कि उसे सत्ता चलानी नहीं आती तो वह अहंकारी बन जाएगा। यही हश्र भाजपा के इन पोस्टर बॉय का हुआ जो “जय श्री राम” का नारा लगाते-लगाते रावण के रोल में आ गए। बंगाल में उनकी हार इसी बात का द्योतक है। मंच पर जाकर अकेली पड़ चुकीं ममता बनर्जी को “दीदी! ओ दीदी!!” कह कर खिझाने से ऐसा लग रहा था मानों यह चुनावी मंच नहीं बल्कि कोई नासमझ अपने करतब दिखा रहा है। यह किसी को पसंद नहीं आया। प्रधानमंत्री को शालीनता दिखानी थी, मगर वे चूक गए। ऐसा नहीं कि बंगाल ममता बनर्जी के शासन से खुश था। लेकिन उस शासन को एक्सपोज करने के चक्कर में मोदी जी अपने को एक्सपोज कर गए। यही उनकी हार का कारण बना और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव में 200 का आँकड़ा पार कर गई। लेकिन दो मई को आए नतीजों में सबसे ज़बरदस्त जीत थी केरल में एलडीएफ की। वहाँ मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने अपनी सरकार को रिपीट कर लिया। यह चमत्कार 45 साल बाद हुआ। अन्यथा वहाँ एक बार कांग्रेस का गठबंधन यूडीएफ जीतता और एक बार एलडीएफ। पर इस बार वाम मोर्चा संगठन एलडीएफ फिर से जीत गया। जबकि इस बीच मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर तस्करी तक के आरोप लगाए गए। किंतु मुख्यमंत्री इन आरोपों से विचलित नहीं हुए और कोरोना के विरुद्ध जंग लड़ते रहे। कोरोना का सबसे पहला केस गत वर्ष 2019 की 29 जनवरी को केरल में ही मिला था। वहाँ संक्रमण भी खूब फैला किंतु अफ़रा-तफ़री नहीं फैली। न भुखमरी आई न किसी प्रवासी मज़दूर को भगाया गया। केरल सरकार की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर ने कोरोना कंट्रोल का ऐसा मॉडल पेश किया जो पूरे देश में आदर्श है। यही कारण है कि इस बार केरल में एलडीएफ को मुसलमानों और ईसाइयों का वोट भी मिला, जो परंपरागत रूप से यूडीएफ का वोट माना जाता है। अगर अन्य प्रदेशों की सरकारें केरल मॉडल को अपनातीं तो आज कोरोना की दूसरी लहर में ऐसी मार न आती। केरल के मुख्यमंत्री ने प्रदेश की जनता से सीधा संवाद रखा। उन्हें भरोसा दिया कि कोरोना से किसी को भी न भूखों मरने दिया जाएगा न उसकी नौकरी जाएगी। इसलिए कोरोना को लेकर केरल की जनता को अपनी सरकार पर भरोसा रहा। यह अकेले केरल में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में तमिलनाडु, आंध्र और तेलंगाना की सरकारों ने भी कुछ ऐसे ही कदम उठाए। इसलिए कोरोना वहाँ भी रहा किंतु पैनिक नहीं फैला। यही वजह रही कि अन्ना डीएमके को डीएमके साफ़ नहीं कर पाई। जबकि उसके पास इस बार कोई चमत्कारी चेहरा नहीं था। ई. पलाईस्वामी के नेतृत्त्व में लड़ी डीएमके को विधानसभा में 66 सीटें मिली हैं, जबकि उसकी सहयोगी भाजपा को चार। डीएमके ने 133 सीटें जीती हैं। कांग्रेस को 18 और वाम दलों को चार। इस तरह वहाँ सरकार तो डीएमके की बन ही जाएगी। दरअसल यह कोरोना कंट्रोल का कमाल था कि अन्ना डीएमके तमिलनाडु में ज़ीरो पर नहीं आई, जबकि उससे जनता प्रसन्न नहीं थी। अभी भी वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इन चुनावों ने यह संकेत भी दिया है कि भविष्य में राज वही कर पाएगा जो कुछ काम करेगा, बातें करने वाला हाथ मलता रह जाएगा। नरेंद्र मोदी की सरकार ने बातें तो बड़ी-बड़ी कीं मगर धरातल में उनका काम कुछ नहीं। उल्टे जो संस्थाएँ काम कर रही थीं उन्हें भी ध्वस्त कर दिया। नतीजा सामने है। सिर्फ़ धार्मिक या जातीय ध्रुवीकरण से वोट नहीं मिलते। उसके लिए “गुड गवर्नेंस” भी चाहिए। जो भाजपा न केंद्र में दिखा सकी न किसी राज्य में। इसलिए उसके बड़बोलेपन को मतदाता ने धूल चटवा दी। बंगाल और केरल की जीत ने यह भी साबित कर दिया कि नरेंद्र मोदी कोई अजेय नहीं हैं। इससे भविष्य की झलक भी मिलती है कि शायद 2024 तक नरेंद्र मोदी के सामने सम्पूर्ण विपक्ष का एक ऐसा चेहरा होगा, जिसका नाम नहीं काम बोल रहा होगा।

4 years ago

Utterkatha: BJP came from Corona to cry, Akhilesh got oxygen! उत्तरकथा :कोरोना से आया भाजपा को रोना , अखिलेश को ऑक्सीजन !

 बंगाल में बड़ी और बड़ी उम्मीदों के टूटने के साथ ही महामारी के बीच संपन्न हुए उत्तर प्रदेश के पंचायत…

4 years ago

Bengal politics and lessons of this election: बंगाल की राजनीति और इस चुनाव के सबक

पर पहले बंगाल की बात- बंगाल का चुनाव राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के लिये समन्वित रूप से अध्ययन और…

4 years ago

Government failed to save lives, can provide pyre wood? जीवन बचाने में असफल सरकार चिता की लकड़ी ही मुहैय्या करा दे?

देश इस समय जिन प्रलयकारी परिस्थितियों  का सामना कर रहा है उसकी तो शायद वर्तमान पीढ़ी ने कभी कल्पना भी…

4 years ago

The third wave of Corona is coming to the country: देश में आने वाली है कोरोना की तीसरी लहर, दिल्ली में न हो आॅक्सीजन की कमी: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली के कई अस्पतालों में आॅक्सीजन की कमी को लेकर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार…

4 years ago

Election Commission faced judicial side: चुनाव आयोग ने न्यायिक पक्ष का किया सामना

सत्ता पक्ष के प्रति उसके कथित झुकाव पर विपक्षी दलों द्वारा बार-बार आरोप लगाए जाने के बाद वितरण, भारत निर्वाचन…

4 years ago

What impact will the electoral results have on national politics? राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर डालेंगे चुनावी नतीजे?

चार राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणामों का समग्रता से आकलन करें तो जहां केरल और असम…

4 years ago