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gumakkari per Corona ka pahara! घुमक्कड़ी पर कोरोना का पहरा!

सितम्बर शुरू हुए अब काफ़ी वक्त गुज़र चुका है। भारत में इसी महीने से घुमक्कड़ी चालू होती है। सदा के घुमक्कड़ बंगाली, गुजराती, मदरासी इसी महीने से देश छोड़ कर बाहर निकलते हैं। बारिश थम जाती है और मौसम में गर्मी कम होने लगती है। हिमालय को क़रीब से देखने वाले और समुद्र की उत्ताल तरंगों का मज़ा लेने वाले तथा मरुस्थल में रातें गुज़ारने का मौसम है यह। किंतु यह पिछली एक शताब्दी में पहला सितम्बर है, जब लोगों के चेहरे पर ख़ौफ़ है। लोग कोरोना के भय से घर के बाहर नहीं निकल रहे, तो घूमेंगे कहाँ से? जनवरी से अब तक सारा टूरिज़्म ठप पड़ा है। बहुत सारे राज्यों में टूरिज़्म आय का मुख्य स्रोत है, वे रो रहे हैं। न कोई हिमालय का रुख़ कर रहा, न समुद्र का। जबकि सितम्बर दुनिया भर में चहेता महीना है। योरोप और उन देशों का भी, जहां खूब गर्मी पड़ती है। किंतु सितम्बर सब को सम कर देता है। भारतीय परंपरा में कहा गया है, “फूले काँस सकल महि छाई। जनु वर्षा कृत प्रगट बुढ़ाई।।” अर्थात सितम्बर में अब चारों ओर काँस (एक तरह की घास) छा गई है, इससे ऐसा लगता है कि वर्षा अब विदा लेने लगी। सितम्बर का महीना इसी का संकेत होता है। अगस्त के दूसरे हफ्ते से ही मैदानी इलाकों में काँस लहलहाने लगती है और किसान यह स्वीकार कर लेते हैं कि अब वर्षा विदा हुई। यह किसान का अपना संचित अनुभव है। जैसे वह नक्षत्रों की गति से वर्षा और शीत को समझ जाता है उसी तरह प्रकृति उसे यह संकेत देती है कि आने वाले दिन कैसे होंगे। किसानी सभ्यता में उसकी यह समझ ही उसे प्रकृति से लड़ने या उसके साथ समझौता कर लेने को भी प्रेरित करती है. इसीलिए साल के बारह महीने उसके लिए एक सन्देश लेकर आते हैं। यह सितम्बर का महीना भारत के लिए खुशियाँ, उल्लास और त्योहारों की सौगात लेकर आता है। एक तो इस महीने में खरीफ़ की फसल कट कर आती है। धान से घर भर जाता है। और इसी महीने से शुरू होती है भारत में यायावरी क्योंकि भारत एक ऊष्ण कटिबंधीय देश है।  इसलिए गर्मी यहाँ ज्यादा पड़ती है।  ऐसे में सितम्बर से ही सूरज का ताप मद्धम पड़ता है। इसी के साथ शुरू हो जाता है भारत घूमने का दौर-दौरा। यह पर्यटन का सीजन मार्च तक चलता है. कई वर्षों बाद इस बार का सितम्बर खुशगवार हुआ है, वरना सितम्बर तो दूर नवम्बर तक एसी चलाने पड़ते थे। इस बार सितम्बर के खुशगवार होने की एक वज़ह तो मानसून का विलम्ब से आना है। पूरे देश में बारिश सभी जगह पर्याप्त हुई है और इसीलिए सितम्बर में पारा मध्यम रहा है। इस बार सितम्बर की धूप चिलचिलाती नहीं और पसीना ज्यादा नहीं निकाल रही। याद करिए अभी पिछले साल तक सितम्बर में रात-दिन एसी चलते थे। मगर यह साल वैसा नहीं रहा। एक घंटे बाद ही एसी बंद करना पड़ता है। पूरी दुनिया में सितम्बर को खुशगवार मौसम माना जाता रहा है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग ने इसकी ऐसी दुर्गति की कि वही सितम्बर अब परेशानी का सबब बनता जा रहा है। बढ़ता पारा और बारिश के पानी की सही निकासी नहीं होने से मच्छर पनपते जो बीमारियाँ बढ़ाते हैं। पर इस बार तो कोरोना ने ऐसा आतंक मचा रखा है, कि सितम्बर भी रुला रहा है। हमारी परम्परा में  सितंबर महीने को शरद ऋतु के आगमन का महीना माना गया है. कहा गया है कि ‘वर्षा विगत शरद ऋतु आई’ और चूंकि वर्षा अगस्त से समाप्त मान ली जाती है. इसलिए सितम्बर से शरद शुरू. माना गया है कि  जैसे ही कांस फूलता है वैसे वर्षा को समाप्त-प्राय मान लिया जाता है। ओह सेप्टेंबर! दुनिया भर के पॉप गायकों ने इसे इसी तरह याद किया है। स्वीडन की मशहूर पॉप गायिका पेट्रा मार्कल्युंड ने अपने अलबम ‘सेप्टेंबर आल ओवर’ में ला ला ला नेवर गिव इट गाकर तहलका मचा दिया था। सितंबर का आखिरी हफ्ता सबसे ज्यादा रोमेंटिक और पेज थ्री पार्टियों के अनुकूल माना जाता रहा है। एक दशक पहले तक सभी महानगरों में सितम्बर की शुरुआत से ही अंग्रेजी अखबारों में देर रात तक चलने वाली पार्टियों की कवरेज छा जाया करती थ। पेज थ्री पार्टियों को कवर करने वाले अखबारों में शराब और सुरूर से डूबे लोगों की खूब फोटो होती थीं। जिसमें माडलों से लेकर कुछ एमपीओं, पुलिस अफसरों और तथाकथित सेलेब्रेटीज शिरकत करते थे। लेकिन मौसम ने ऐसी पलटी खाई कि पिछले दस वर्षों से हम सितम्बर के महीने को डेंगी, चिकनगुनिया और स्वाइन फ्लू के कारण जानने लगे थे। अब कोरोना की वजह से। यही नहीं रामलीलाओं और डांडिया में जो भीड़ पहले दिखा करती थी वह गायब रहेगी। पता नहीं रामलीलाएँ होंगी भी या नहीं। समुद्र किनारे के ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में तो सितंबर घूमने और मौज मस्ती करने का महीना है। अपने यहां किसी भी पर्यटन स्थल को देखिए वहां जाने का सबसे अनुकूल महीना सितंबर ही बताया जाता है। सिटी ऑफ ज्वॉय यानी कैलकटा (कोलकाता) मे फरवरी से ही गरमी पडऩे लगती है लेकिन सितंबर वहां भी सुहाना होता है। मुंबई हो या चेन्नई या केरल के तटीय इलाके वहां अगर कोई महीना पर्यटकों को सबसे ज्यादा लुभाता है तो सितंबर ही। एक तरह से पूरे भारतीय प्रायद्वीप का टूरिस्ट सीजन सितंबर से ही शुरू होता है। क्योंकि गंगा-यमुना के मैदानों के सिवाय या तो यहां भीषण गरमी पड़ती है अथवा असहनीय सरदी। यही हाल दुनिया के दूसरे मुल्कों का है। अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में इन दिनों मौसम खूब गर्म होता है और उत्तरी राज्यों में रातें पर्याप्त ठंडी। अमेरिका में सितंबर उत्सव का महीना भी है। वहां पर नागरिकता दिवस और संविधान दिवस इसी महीने की सत्रह तारीख को मनाया जाता है तथा मेक्सिको का स्वतंत्रता दिवस सितंबर की 15 तारीख को पड़ता है। अमेरिका और कनाडा में सितंबर के पहले सोमवार को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है और उस दिन वहां विधिवत अवकाश होता है। जार्जियन कलेंडर का नौवां महीना सितंबर ईसा से 153 साल पहले तक सातवां महीना माना जाता था क्योंकि रोमन कलेंडर की शुरुआत मार्च से होती थी। यूं भी सेप्टम का लैटिन में अर्थ है सेवन यानी कि सातवां। रोम में जब आगस्ट का साम्राज्य कायम हुआ तो वहां के पंचांग को संशोधित कर जनवरी से साल शुरू किया गया और इस प्रकार सितंबर नौवां महीना बना। साथ ही इसके दिन तीस निर्धारित किए गए वर्ना इसके पहले सितंबर कभी 29 दिनों का पड़ता था तो कभी 31 दिनों का। अपने यहां के ज्यादातर पंचांग चंद्र गणना से चलते हैं इसलिए पक्की तौर पर सितंबर भाद्रपद में पड़ेगा या अश्विन (क्वार) में यह कहना मुश्किल होता है लेकिन फिर भी माना यही जाता है कि जन्माष्टïमी को जमकर बरस कर वर्षा बुढ़ाने लगती है। सितंबर शुरू होने तक जन्माष्टमी संपन्न हो चुकी होती है। गंगा यमुना के मैदानों में जहां षडऋतुएं मनाई जाती हैं वहां वर्षा बीतने के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है जो कमोबेश सितंबर का ही महीना होता है। काँस फूलने लगे तो अपने यहां किसान अपने अनुभवजन्य मेधा से वर्षा की समाप्ति मान लेते हैं। लोककवि घाघ ने लिखा है- “बोली गोह और फूली कांस अब छोड़ो वर्षा की आस”! तुलसी ने भी इसी अंदाज में कहा है- फूले कांस सकल महि छाई, जनु बरखा कृत प्रगट बुढ़ाई! लेकिन इस साल विक्रमी संवत के अनुसार क्वार दो होंगे। अर्थात् क्वाँर का महीना तीन सितम्बर से शुरू होकर अक्तूबर के अंतिम सप्ताह तक चलेगा। विक्रमी संवत चूँकि चंद्रमा की तिथियों से चलता है, इसलिए उसका महीना कभी 28 का होता है, तो कभी 30 या 31 दिनों का। हर तीसरे साल इसे बराबर करने के लिए एक महीना बढ़ा दिया जाता है, जिसे अधिमास या पुरुषोत्तम मास करते हैं। यह न किया जाए, तो दीवाली कभी अक्तूबर में पड़ेगी तो कभी मई में। इसी तरह होली भयानक ठंड में भी पड़ सकती है। सदियों से किसान घाघ और तुलसी की इसी मान्यता पर भरोसा करते आए हैं लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण 2007 के बाद से प्रकृति धोखा देने लगी। काँस तो अगस्त के आखिरी हफ्ते में ही फूलने लगते थे। मगर इस वर्ष ऐसा नहीं हुआ। एक तो बारिश ही अगस्त में शुरू हुई, दूसरे कोरोना। इसलिए सितम्बर का उल्लास नहीं रहा। कालिदास ने अपनी कविताओं में मौसम को मनुष्य की कामचेतना से जोड़ा है. चाहे वो खरतर ग्रीष्म हो या कामीजनों को सराबोर कर देने वाली वर्षा। पर सितंबर मास की शरद ऋतु का वर्णन करते हुए उन्होंने भी इसे अत्यंत रम्य और कमनीय बताया है। रांगेय राघव ने कालिदास की मशहूर कृति ऋतुसंहार के अपने अनुवाद में कहा है- मधुर विकसित पद्म वदनी, कास के अंशुक पहन कर, मत्त मुग्ध मराल कलरव, मंजु नूपुर सा क्वणित कर. पकी सुंदर शालियों सी देह निज कोमल सजाकर, रूप रम्या शोभनीय नववधू सी सलज अंतर. प्रिये आई शरद लो वर! लेकिन इस बार वैज्ञानिकों और राजनीतिकों का कहना है, कि आप लोग घर में रहें। मुँह, नाक तथा कान ढके रहें और हर एक से फ़ासला बनाए रखें। भले प्रकृति इस सितंबर में बहुत वर्षों बाद खुशियाँ लेकर आई हो। क्योंकि कोरोना ने प्रदूषण को ख़त्म कर दिया है। इस महीने में उत्तर से सर्द हवाएं फिर से बहने लगी हैं। बंगाल की खाड़ी से चलने वाली दक्षिणी हवाएं फिलहाल शांत हैं इसलिए चिपचिपाहट भले हो मगर पारा गिरा है। चिपचिपाहट की वज़ह हवा में आद्रता का 80 प्रतिशत से ज्यादा होना है। सितंबर का यह महीना इस साल कम बीमारियों को न्योतेगा। क्योंकि बाक़ी की बीमारियाँ कोरोना भगा ले गया। गर्मी की कमी और आद्रता की वृद्धि के कारण मच्छर जितना अधिक पनपेंगे उससे अधिक मरेंगे भी। इसलिए डेंगू, चिकनगुनिया और फ़्लू का खतरा अपेक्षाकृत कम है।

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