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American style of fighting with Covid: कोविड से जंग को अमेरिकी अंदाज

भारत में कोरोना से बचाव के लिए युद्धस्तर पर अभियान शुरू हो गया है। फिर भी सतर्कता जरूरी है। इसी…

5 years ago

Corona vaccination campaign- Corona vaccine received more than a million people on the first day, PM was emotional during the address: कोरोना टीकाकरण अभियान- पहले दिन ही लाख से ज्यादा लोगों को मिला कोरोना वैक्सीन, संबोधन के दौरान भावुक हुए थे पीएम

नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी सेबचनेकेलिए अब टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है। भारत में शुरू हुआ टीकाकरण अभियान दुनिया…

5 years ago

Question on PM-Cares fund: पीएम-केयर्सफंड पर सवाल, पूर्व सौ अधिकारियों ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखा पारदर्शिता के लिए खुला पत्र

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए पीएम-केयर्स फंड को लेकर अब सवाल उठाए जा रहे हैं। आज…

5 years ago

The basic trend of Hindustan is Sufiana: हिंदुस्तान की मूल प्रवृत्ति सूफियाना है

कई साल पहले की बात है। मुझे कुछ काम से अजमेर जाना हुआ। तब मैं तब मैं वहां के सरकिट हाउस में ठहरा। जिले के जनसंपर्क अधिकारी ने जब बताया कि सर आज आपके आने पर वही कमरा खोला गया है जो परवेज मुशर्रफ के लिए बनाया गया था। मालूम हो कि एनडीए शासन काल में प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी के बुलावे पर पाकिस्तान के सदर परवेज मुशर्रफ जब भारत आए तो अजमेर जाकर उन्होंने जियारत की मंशा जाहिर की थी। लेकिन बाद में समिट के नतीजे मन मुताबिक नहीं निकलने पर उन्होंने वह यात्रा टाल दी थी। लेकिन तब तक उनकी अगवानी के लिए राजस्थान सरकार ने सरकिट हाउस को पांच सितारा का स्वरूप तो दे ही दिया था। बाद में वह कमरा बंद कर दिया गया। और यह मैं तो कहता हूं कि ख्वाजा साहब की कृपा कि मेरे लिए ही वह कमरा खोला गया। शाम को मैं ख्वाजा की दरगाह पर गया। वहां जाकर लगा कि समूचे भारत का मिजाज सूफियाना है। यहां कोई भी कट्टïरपंथी ताकत सफल नहीं हो पाती है क्योंकि उसे जनसमर्थन मिलता ही नहीं। यही कारण है कि मेला-मदार और सूफी संतों की दरगाहों पर मुसलमानों से अधिक हिंदू पहुंचते हैं। मेरे दरगाह पर जाने पर वहां के सज्जादानशीन ने बही निकाली और मेरा नाम-पता दर्ज कर लिया। ये सज्जादानशीन साहब कानपुर के जायरीनों का हिसाब-किताब रखते थे। तब मुझे पता चला कि ठीक हिंदू तीर्थ पुरोहितों की भांति ये दरगाह भी अपने यहां की बहियों में आने वाले यात्रियों का हिसाब किताब रखते हैं। मुझे जो चढ़ाना था सो चढ़ाया लेकिन इस बात का अहसास पूरा हो गया कि मूल रूप से आदमी की प्रवृत्ति कभी नहीं बदलती। धार्मिक बाधाएं कितना भी उसके हाथ-पैर बांधें लेकिन आदमी मूल रूप से इंसान ही रहता है। जो कोई भी गैरइंसानी काम करने से पहले खुदा से डरता है और ऊपर वाले से दुआ करता है कि औलिया मेरे हाथ से कोई गलत काम न हो। लेकिन यह राजनीति है जो उसे गलत दिशा में ले जाती है। अब एक दूसरी घटना है। ममता बनर्जी जब रेल मंत्री थीं तब मैं मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति में भी था। उस वक्त मुझे दक्षिण रेलवे का प्रभार सौंपा गया था। एक बार दक्षिण रेलवे के आमंत्रण पर मैं मदुरई गया हुआ था। वहां पर मेरा सत्कार जिन गुलाम मोहम्मद साहब ने किया वे चेहरे-मोहरे व ऊपरी टीमटाम से कोई दक्षिणात्य ब्राह्मण प्रतीत होते थे। सिर पर चंदन का टीका और बुश्शर्ट व श्वेत धोती नुमा लुंगी। मैं स्टेशन पर अचकचा गया और परेशान-सा हुआ पर वे स्वयं को बार-बार गुलाम मोहम्मद ही बताते रहे। अंत में उन सज्जन ने कहा कि सर मैं ही पंडित गुलाम मोहम्मद हूं तब मुझे हंसी आई और राहत मिली। वे सज्जन तंजौर के रहने वाले थे यानी नवाबी रियासत के मगर उस रियासत पर पेशवाओं का वर्चस्व था इसलिए वहां के मुसलमान भी हिंदुओं जैसा रहन-सहन अपनाने लगे। मुझे मुंशी सईद अहमद मारहर्वी की वह उक्ति याद आई कि भारत में मुसलमान अपने आक्रामक दौर में नहीं शांति काल में आए। यहां तक कि मोहम्मद बिन कासिम भी अरबों की इस्लामिक फतेह के सौ साल बाद भारत आया और उसने काठियावाड़ (सिंध) के राजा दाहिर को हराया था। मगर अपना राज स्थापित करने के बाद यहां आए अरबियों ने अपनी वेशभूषा त्याग कर स्थानीय हिंदुओं की वेशभूषा धारण कर ली। वे धोती पहनते और अपने हिंदू भाइयों की भांति ही नंगे बदन रहते। यहां तक कि मुस्लिम शासक भी अरब परंपरा के जुज्बा और दस्तार छोड़कर हिंदू नरेशों की भांति ही वस्त्र धारण करने लगे। बस सिर पर ईरानी पगडिय़ां पहना करते थे। इसी तरह हिंदुओं ने भी ईरानी वस्त्रों की नकल शुरू कर दी तथा परस्पर एक-दूसरे के त्योहारों में शरीक होने लगे। देश में हिंदू-मुसलमान समस्या की जड़ में जाओ तो लगता है कि दोनों में परस्पर सहजता का अभाव है। कभी-कभी भावना का ज्वार आता है तो दोनों एक-दूसरे को महान बताने लगते हैं तो कभी-कभी नीच और धोखेबाज़ भी। इसका एक जवाब तो राजनीति है, दूसरा जवाब एक-दूसरे को हीन समझने के ऐतिहासिक तथ्य। अरब, तुर्क और पठान तक तो ठीक रहा। बेचारे लूटते थे और थोड़ा-बहुत इस्लाम का प्रचार भी। मगर समरकंद से आए बाबर ने हिंदुस्तानियों को असभ्य और अपने से हीन समझा। “बाबरनामा” इसका गवाह है। हालाँकि उसकी इस समझ के पीछे उसकी धार्मिक हठधर्मिता नहीं उसके अंदर की “होम सिकनेस” थी। पर वह काँटे तो बो ही गया। बाक़ी की भूलें औरंगज़ेब ने कर दीं। इसके बाद अवध के नवाबों ने जरूर हिंदू-मुस्लिम एकता की पहल की, ख़ासकर नवाब वाजिद अली शाह ने। पर बीसवीं सदी के सुधारक उर्दूदाँ मुसलमानों ने अपने यहाँ हिंदुओं की उपेक्षा कर दी। नतीजा यह हुआ प्रेमचंद जैसे लेखक हिंदी में आ गए। दूसरी तरफ़ आर्य समाज से प्रभावित हिंदी लेखकों ने अपने कथानकों में से मुस्लिम पात्रों से किनारा कर लिया। नतीजा आप देख रहे हैं। एक-दूसरे का तुष्टीकरण से बेहतर है, एक-दूसरे को मनुष्य मानों, और सहज व्यवहार करो। पर वोट की राजनीति करने वाले चंगू-मंगू ऐसा होने नहीं देंगे। कानपुर; व्हीलर गंज से हूलागंज तक! 1857 में विद्रोहियों ने कानपुर के माल रोड की सारी सरकारी इमारतें तोड़ दी। यहाँ तक कि क्राइस्ट चर्च भी, लेकिन पता नहीं क्यों मैसोनिक लाज को छोड़ दिया। उसमें रखे सारे दस्तावेज भी सुरक्षित रहे। बाद में अंग्रेजों ने इन्हीं दस्तावेजों के सहारे शहरी भूमि का सीमांकन किया। लेकिन मज़ा देखिये कि दिल्ली में मैसोनिक लाज की इमारत को एन्क्रोच कर जनपथ मेट्रो स्टेशन बनाया गया। वह भी सेकुलर स्टेट की महा सेकुलर मनमोहन और शीला सरकार द्वारा। खैर! यह होता ही रहता है। एक मज़ेदार किस्सा कानपुर के बारे में सुनिए. इस विद्रोह के पूर्व तक कानपुर कि छावनी का मुखिया जनरल व्हीलर था। विद्रोह में जनरल व्हीलर मारे गए। लेकिन इस विद्रोह के दमन के बाद अंग्रेजों ने कानपुर शहर में दो मोहल्ले बसाए। एक फैथफुल गंज और दूसरा व्हीलर गंज। फैथफुल गंज उस मोहल्ले का नाम रखा, जहाँ के लोग 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों के वफादार बने रहे। और दूसरा जनरल व्हीलर की स्मृति को बनाए रखने के लिए व्हीलर गंज। अब कानपुर के लोग कम उस्ताद नहीं होते। उन्होंने फैथफुल गंज नाम तो स्वीकार कर लिया, लेकिन जनरल व्हीलर के नाम पर बसा व्हीलर गंज नहीं। उसे ये लोग हूला गंज बोलने लगे, क्योंकि यहीं के एक सिपाही हुलास सिंह ने नानाराव पेशवा कि तरफ से लड़ते हुए अपनी जान दी थी। कानपुर सेंट्रल रेलवे के घंटाघर साइड में लोअर गंगा कैनाल किनारे बसा यह मोहल्ला आज भी आबाद है। यहाँ के सत्तू बड़े मशहूर हैं। जब तक यह मोहल्ला छावनी बोर्ड के अधीन रहा, इसे व्हीलर गंज ही लिखा गया। पर नगर पालिका के तहत आते ही इसे हूला गंज लिखा जाने लगा। एक मोहल्ला है रामनारायण बाज़ार। इसे मुंशी राम नारायण खत्री ने बसाया था, जो कम्पनी कि फौज में गुमाश्ता थे और विद्रोह के समय अंग्रेजों की मदद करने के कारण उन्हें अंग्रेजों ने तगड़ी ज़मींदारी बख्शीं। रामनारायण बाज़ार का इलाका मुस्लिम बहुल है, क्योंकि पहले यह नवाबी अमलदारी में था। पर मज़ा देखिये कि कानपुर के सारे मशहूर मंदिर इसी इलाके में हैं और पुराने बने हुए हैं। कहा जाता है कि 1947 में जब बटवारे के वक़्त बहुत सारे मुसलमान पाकिस्तान चले गए, तब नवाब साहब के वंशज हिन्दुओं को वहां बसाने के लिए ज़मीनें देकर ले गए। इस छोटे नवाब के हाते में हिंदू-मुस्लिम मिश्रित आबादी है, जो बिरहाना रोड के आखिरी छोर तक आ गई है।

5 years ago

We will sow, reap and sell crops, not brokers! : हम ही फसल बोएंगे, काटेंगे और बेचेंगे, दलाल नहीं!

हम न तो अदालत जाएंगे और न ही उनकी बनाई कमेटी से बात करेंगे। हमने जो सरकार चुनी है, यह उसका…

5 years ago

Today the whole country was eagerly waiting for the day, we will win against Corona – PM Modi: आज के दिन का पूरे देश को बेसब्री से इंतजार रहा, हम कोरोना के खिलाफ जीतेंगेजंग-पीएम मोदी

नईदिल्ली। कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को बहुत ज्यादा परेशान किया। लाखों लोग इस महामारी के कारण मौत के मुंह…

5 years ago

Today’s meeting with the government was also inconclusive, meeting again on 19th: सरकार के साथ आज की बैठक भी बेनतीजा रही, 19 को फिर से बैठक

केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों का आंदोलन 51वें दिन भी जारी…

5 years ago

Farmer Movement – Congress’s Farmers’ Rights March: किसान आंदोलन- कांग्रेस का किसान अधिकार मार्च, हिन्दुस्तान का किसान नहीं डरेगा, नहीं हटेगा और भागना आपको पड़ेगा: राहुल गांधी

नईदिल्ली। केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों का आंदोलन 51वें दिन भी…

5 years ago

Bhupinder Singh Mann broke away from the committee set up by the Supreme Court, said – stand with Punjab and farmers: भूपिंदर सिंह मान सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी से अलग हुए, कहा-पंजाब और किसानों के साथ खड़ा हूं

नई दिल्ली। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद भूपिंदर सिंह मान को सुप्रीम कोर्ट ने गठित समिति…

5 years ago

Government is proving incompetent in dealing with farmer movement: विमर्श – किसान आंदोलन से निपटने में सरकार अक्षम सिद्ध हो रही है

सिंघू सीमा पर किसानों के बैठे हुए 47 दिन हो गए हैं और अब तक सरकार की किसानों से कुल…

5 years ago