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Indira’s Emergency was a tonic for democracy! लोकतंत्र के लिए टॉनिक था इंदिरा का आपातकाल!

बुधवार की रात तमाम आशंकाओं के बीच विश्व की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक धरती पर जो बाइडेन ने 46वें राष्ट्रपति और…

5 years ago

Pakistan plot, eight years old tunnel unearthed by BSF in Jammu: पाकिस्तान की साजिश, जम्मू में बीएसएफ ने खोज निकाली आठ साल पुरानी सुरंग

पाकिस्तान अपनी साजिशों से बाज नहीं आता है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान सीमा पर कईतरह के षणयंत्र रचता रहता है।…

5 years ago

India should have four rotating capital- Mamta banerjee: भारत की होनी चाहिए चार रोटेटिंग राजधानी, दिल्ली के पास ही सबकुछ क्यों हो- ममता बनर्जी

कोलकाता। पश्चिम बंगाल मेंविधानसभा चुनावों के करीब आनेकेसाथ ही राजनीतिक पार्टियांअधिक सक्रीय होकर अपना दबदबा दिखा रहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र…

5 years ago

King Wilson brought apple in Harsil: हर्षिल में सेब लेकर आया राजा विल्सन

2800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हर्षिल को मिनी स्वीटजरलैंड कहा जाता है। यह घाटी बहूट सुंदर और मनोहारी है। गंगोत्री से 25 किमी पहले इस घाटी में भागीरथी (गंगा) बहुत मद्धम गति में बहती है। यहाँ दोनों किनारों पर रेत है। गर्मी के मौसम में यह सूखी रेत किसी समुद्र तट का अहसास दिलाती है किंतु जाड़ों में इतनी बर्फ़ पड़ती है कि सैलानी यहाँ स्केटिंग करने आते हैं। जनवरी की दस तारीख़ को जब मैं यहाँ पहुँचा तब चारों तरफ़ बर्फ़ इतनी सुंदर लग रही थी कि माइनस पाँच पारा होने के बावजूद यहाँ से जाने का मन नहीं हो रहा था। हालाँकि बर्फ़ तो हर्षिल से क़रीब दस किमी पहले सुक्की टॉप से ही शुरू हो गई थी। सुक्की टॉप के आगे बर्फ़ ही बर्फ़ थी। सड़क पर भी और खेतों व पेड़ों पर भी। सब कुछ सफ़ेद। एक जगह डाउन में गाड़ी स्किड हुई किंतु गाड़ी चला रहे एडवोकेट राहुल बंसल की त्वरा और चातुर्य से गाड़ी क़ाबू में आ गई। हम नदी पार कर दूसरी साइड में आ गए। यहाँ पर भागीरथी में हिमाचल से बहती आ रही एक नदी का संगम होता है। अब हम जिस सड़क पर थे, वहाँ सूर्य की रोशनी नहीं आती। इसलिए इधर बर्फ़ गर्मियों में भी रहती है। सड़क घाटी की तरफ़ जा रही थी और बर्फ़ पर रेंगती हुई हमारी फ़ोर व्हील गाड़ी भी। क़रीब आठ किमी बाद हम चारों तरफ़ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से घिरी एक समतल भूमि पर पहुँचे। यहाँ अनगिनत फ़ौजी वाहन खड़े थे। सामने अशोक की लाट के सिंह और नीचे लिखा था बिहार रेजिमेंट। दरअसल हर्षिल कोई कैटूनमेंट नहीं है किंतु आर्मी का एक बेस कैम्प है। एक बटालियन भी रहती है। बर्फ़ के बीच पाँव गड़ाये बिहारी जवान खड़े थे। हम इस बेस कैम्प में घुस गए। नीचे भागीरथी के तट पर इनका गेस्ट हाउस है। मैं पहले कई बार इसमें रुक चुका हूँ। यहाँ रुकने के लिए दिल्ली के सेना भवन से अनुमति लेनी पड़ती है। यहाँ पर पारा शून्य से नीचे रहता है। इसलिए यहाँ पर सेना का गेस्ट हाउस सबसे बेहतर है। हर्षिल, जिसे हरसिल भी कहा जाता है, की प्रतिष्ठा भारत के स्विटज़रलैंड जैसी है। इसे मिनी स्विटज़रलैंड भी कहा जाता है। यहाँ साल के बारहों महीने बर्फ़ जमा रहती है। हरियाली की छटा ऐसी कि मन हर्षित हो जाए, इसीलिए यह हर्षिल कहलाया। पर इस हर्षिल का एक काला अध्याय भी है। विल्सन नाम के एक अंग्रेज फ़ौजी ने इस पूरी हरी-भरी घाटी को तहस-नहस कर डाला था। फ़्रेडरिक ई. विल्सन पहले आँग्ल-अफ़ग़ान युद्ध (1839-42) के समय एक अंग्रेज लड़ाका था। उसके किसी भयंकर अपराध से रुष्ट होकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे फ़ौज से निकाल दिया। हालाँकि उसने एक निरपराध नेटिव का क़त्ल किया था, किंतु गोरा होने के कारण उसे सजा-ए-मौत से माफ़ी मिल गई। वह मेरठ छावनी से गढ़वाल की तरफ़ भाग गया। वहाँ टेहरी के राजा से उसने शरण माँगी और बदले में उनका रेवेन्यू बढ़ाने का लालच दिया। राजा अंग्रेजों का भक्त था, किंतु लालची भी बहुत था। उसने विल्सन को राज्य के सीमांत इलाक़े मुक़बा में जाने की सलाह दी। मुक़बा तिब्बत की सीमा से सटा हुआ था। विल्सन के लिए यह मुफ़ीद भी था। अगर ईस्ट इंडिया कम्पनी का कोई अंग्रेज अधिकारी उसे पकड़े भी तो वह तिब्बत जा सकता था, जहाँ अंग्रेजों की एक न चलती। मुक़बा टेहरी-गंगोत्री मार्ग में उत्तरकाशी से 80 किमी दूर भागीरथी के बहाव से बाएँ किनारे 8210 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ मुक़बा में तो ख़ूब धूप खिलती है मगर इसके ठीक सामने भागीरथी के दाएँ तट के पहाड़ों पर बर्फ़ रहती है। रात को बर्फीले तूफ़ान आते हैं और सुबह धूप। सूरज की पहली किरण भारत के इस आख़िरी गाँव मुक़बा में ही फूटती है। दीपावली के बाद गंगोत्री में पट जब बंद होते हैं, तब वहाँ के सैमवाल पुजारी व पुरोहित गंगा मंदिर के कलेवर को मुक़बा ले आते हैं। उनका पुश्तैनी गाँव यही है। गाँव की कुल आबादी में 40 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। बाक़ी में अन्य सवर्ण व पिछड़ी जातियाँ तथा दलित हैं। मुस्लिम परिवार यहाँ नहीं हैं। अलबत्ता दो प्रतिशत पर्वतीय जनजाति के आदिवासी हैं। तीन परिवार तिब्बती हैं। 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर बलात् क़ब्ज़ा किया तब वहाँ के धार्मिक राजा दलाई लामा ने भारत में शरण ली। वे इसी मुक़बा के रास्ते भारत में दाखिल हुए थे। मुक़बा की पंचायत प्रधानी इस समय जनजाति के लिए आरक्षित है। हमें पहले मुक़बा जाना था इसलिए हमने हर्षिल के आर्मी बेस कैम्प पर स्थित लोहे के पुल से भागीरथी पार की और बाज़ार से गुजरते हुए मुक़बा को ज़ा रहे रास्ते पर गाड़ी चढ़ा दी। यह मार्ग अभी कच्चा है और सकरा भी। बीच-बीच में खच्चर भी ख़ूब मिलते रहे। चार किमी का यह रास्ता पूरा करने में हमें पंद्रह मिनट लगे। कुछ देर बाद हम मुक़बा गाँव के बाहर लगे प्रवेश द्वार पर पहुँच गए। गाड़ी वहीं लगा दी। कुछ ऊपर गंगोत्री मंदिर था, जो जाड़े में बर्फ़वारी के कारण इस गाँव में ले आया जाता है। गंगा माता का कलेवर पूरी धज़ के साथ डोली में लाया जाता है। बैंड बाजे और पुजारियों के साथ एक डोली में। क़रीब सौ सीढ़ियाँ चढ़ कर हम मंदिर के समक्ष पहुँचे। गर्भ-गृह तक पहुँचने के लिए 50 सीढ़ियाँ और चढ़नी थीं। हालाँकि हमारे पुरोहित पंडित जितेंद्र सैमवाल साथ थे किंतु पूरे गाँव में शोर हो गया कि जित्तू पंडित के जजमान गंगा पूजन के लिए आए हैं। पुजारी भाग कर आए और दोपहर डेढ़ बजे ही पट खोल दिए। इस वर्ष कोरोना के कारण पूरे सीजन एक भी श्रद्धालु नहीं आया। और जो आने को तत्पर थे उनको उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पंडितों के प्रति अपनी चिढ़ के कारण नहीं आने दिया। तीर्थ यात्रा का सीजन ही इन पंडितों के लिए रोज़ी-रोटी है। पर चार धामों के लिए देवस्थान ट्रस्ट बनाने का मोदी सरकार का फ़ैसला इन पंडितों की रोज़ी छीन रहा है। इसलिए पंडित मोदी सरकार से चिढ़े हुए हैं। उनका कहना है और शायद सत्य भी हो, कि राज्य की भाजपा सरकार की गिद्ध दृष्टि गंगा माता के ज़ेवरों पर लगी है। ये ज़ेवर ढाई सौ साल पहले जयपुर की महारानी ने भेंट किए थे। इसी मुक़बा में विल्सन ने बसावट की। वह अंग्रेज चतुर व्यावहारिक बुद्धि वाला था। उन्हीं दिनों पहले ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर महारानी विक्टोरिया की सरकार ने व्यापार बढ़ाने की नीयत से भारत में रेल पटरियाँ बिछाने की शुरुआत की। विल्सन समझ गया, कि अब सरकार को लकड़ी के फट्टे बहुत अधिक तादाद में चाहिए होंगे। इन फट्टों के लिए चीड़ व देवदार की लकड़ी के फट्टे सबसे मुफ़ीद होंगे। गढ़वाल में चीड़ तथा देवदार के पेड़ों की कमी नहीं थी। उसने टिहरी के राजा से 150 रुपए साल के हिसाब से मुक़बा के आसपास की जंगल कटाई का ठेका लिया और पेड़ काट कर उनके फट्टे भागीरथी में बहा देता। भागीरथी के बहाव की दिशा में बहते हुए ये कटे हुए पेड़ के फट्टे ऋषिकेश आ जाते। वहाँ से अंग्रेजों की अमलदारी शुरू होती। वे इन्हें निकाल लेते और विल्सन को ढेर सारा पैसा मिलता। विल्सन ने पैसे के लालच में मुक़बा के पहाड़ नंगे कर दिए। वह इन पैसों से इतना धनी हो गया, कि टेहरी का राजा भी उससे दबने लगा। चीड़ और देवदार की लकड़ी से उसने मुक़बा के नीचे घाटी में एक आलीशान और विशालकाय बँगला बनवाया। उसने मुक़बा की दो स्थानीय कन्याओं से शादी की। उनमें से एक गुलाबो के तीन बेटे हुए। मगर यहाँ कहानी प्रचलित है, कि पेड़ों की अँधाधुँध कटाई से वन देवता नाराज़ हो गए और उसे श्राप दिया कि विल्सन तेरा वंश नष्ट हो जाएगा। 19वीं सदी के अंतिम दिनों में भारत के सबसे अमीर लोगों में शुमार राजा विल्सन के वैभव को भोगने वाला कोई न बचा। उसका बड़ा बेटा भी पागल हो कर मारा। जिस विल्सन का सिक्का चलता था, वह गुमनामी की मौत मारा। मसूरी में उसकी कब्र मौजूद है। विल्सन के बंगले पर वन विभाग का क़ब्ज़ा है और उसे अब फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस कहा जाता है। हालाँकि विल्सन की इस ऐयाशी के कारण यह मिनी स्विटज़रलैंड असली स्विटज़रलैंड बनने से रह गया। राजा विल्सन और टिहरी के राजा ने भागीरथी घाटी की नैसर्गिक सुंदरता को नष्ट कर दिया। मन को हर्षित कर देने वाली हर्षिल घाटी अब उदास भी करती है। राजा विल्सन तो बर्बाद हुआ ही। टिहरी नरेश की ख्याति भी फीकी पड़ गई। उस राज परिवार की बहू इस समय टिहरी लोकसभा सीट से भाजपा की सांसद है। उनका महल ऋषिकेश से 15 किमी ऊपर नरेंद्र नगर में बना है। पर अब उसमें एक होटल चलता है और राज परिवार देहरादून तथा दिल्ली में रहता है।

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ट्रम्प ने संयुक्त राज्य को विभाजित किया। आज, वाशिंगटन एक सशस्त्र किले जैसा दिखता है। "अमेरिका इसलिए भविष्य की भूमि…

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संयुक्त राज्य अमेरिका में कई घटनाओं के बाद, राष्ट्रपति-चुनाव जो बिडेन संयुक्त राज्य अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति को 20…

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अमेरिका के लोकतांत्रिक इतिहास में वॉशिंगटन स्थित कैपिटल हिल की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। दुनिया भर में सभ्य और लोकतंत्रीय…

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sambhav hai udyam se unnat: संभव है उद्यम से उन्नति

जब मैं इकनामिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड या योरस्टोरी में पढ़ता हूं कि फलां-फलां स्टार्ट-अप कंपनी को 20 करोड़ की सीड…

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Hurdles impeached Trump: हर्डल्स ने ट्रम्प पर महाभियोग चलाया

उपराष्ट्रपति माइक पेंस के दोहरे दिमाग में होने के कारण क्या 25 वें संशोधन को लागू करना है अमेरिकी संविधान,…

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Arvind Sharma will bring Modi’s vision to UP’s land! उत्तरकथा : मोदी के विजन को यूपी की जमीन पर उतारेंगे अरविंद शर्मा !

उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी और विश्वस्त नौकरशाह रहे अरविंद शर्मा की एंट्री ने हलचल…

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