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jaahe vidhi raakhe raam, taahi vidhi rahie: जाहे विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए

पिछले दिनों किसान आंदोलन के बीच पंजाब में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए। इसमें कांग्रेस पार्टी की अकाल्पनिक विजय…

5 years ago

Greta’s protest and direction arrested under questions: सवालों के घेरे में ग्रेटा का विरोध और दिशा की गिरफ्तारी

ग्रेटा थुनबर्ग ने एक विरोध ‘टूलकिट’ का खुलासा किया जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन की गई योजना थी…

5 years ago

Clash between farmers and BJP workers, many injured: किसानों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष, कई हुए घायल

मुजफ्फरनगर में किसानों और भाजपा कार्यकर्ताओं में झड़प, कई लोग घायल, मंत्री के विरोध के बाद मामला बिगड़ा मुजफ्फरनगर। किसानों…

5 years ago

Now we too will remain silent ..! अब हम भी मौन ही रहेंगे..!

मेरी बड़ी बेटी के जन्म के समय ही पिताजी ने अदिति के नाम से संबोधित किया। नामकरण संस्कार का वक्त…

5 years ago

Increasing graph of corona, increasing graph of tension in India: कोरोना का बढ़ता ग्राफ, बढ़ा रहा हैभारत में टेंशन का ग्राफ

नई दिल्ली। कोरोना वारयरस एक बार फिर सेधीरे-धीरेअपनी रफ्तार भारत में तेज करता दिख रहा है। हालांकि अभी नंबर इतने…

5 years ago

In the toolkit case, Gretha Thenberg supported Disha Ravi: टूलकिट मामलेमेंग्रेटा थनबर्गमेंकिया दिशा रवि का सपोर्ट, कहा- शांतिपूर्ण प्रदर्शन मानवाधिकार और लोकतंत्र का हिस्सा

नईदिल्ली। केंद्रसरकार केनए कृषि कानूनोंके खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। भारत मेंचल रहेकिसान आंदोलन के समर्थन मेंक्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा…

5 years ago

China released video of clash in Galvan valley: चीन ने जारी किया गलवान घाटी में झड़प का वीडियो

नई दिल्ली। भारत और चीन केबीच एलएसी पर बीतेकई महीनों से तनाव और गतिरोध की स्थिति बनी हुई थी। पिछले…

5 years ago

Increase in new cases of corona, 13193 new patients found : कोरोना के नए मामलों में बढ़ोत्तरी, बीते मिले13193 नए मरीज

नई दिल्ली। देश एक बार फिर से कोरोना मरीजों की संख्या मेंएकदम सेबढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। जो चिंता…

5 years ago

Playing with the mountains of Uttarakhand: उत्तराखंड के पहाड़ों से खिलवाड़!

धौलीगंगा रुष्ट हो गईं और उन्होंने भारी विनाश कर दिया। चमोली स्थित तपोवन विष्णुगाड का पॉवर प्लांट तहस-नहस हो गया। और उसकी टनल्स में मौजूद क़रीब डेढ़ सौ लोगों का अभी तक पता नहीं चला है। जबकि इस हादसे को दो हफ़्ते से ऊपर हो चुके हैं। आईटीबीपी और एनडीआरएफ एवं एसडीआरएफ की टीमों ने खूब प्रयास किया लेकिन लापता लोगों में से कुल 40 शव ही ढूँढ़ सकी। तपोवन हाइडिल परियोजना और उसके समीप बना डैम सब तबाह हो गए। सात फ़रवरी की सुबह सवा दस बजे एक धमाका हुआ और उसके बाद पानी और मलबे का जो बीस फुट ऊँचा सैलाब उमड़ा, उसने जोशीमठ से ऊपर के इलाक़े के गाँव, पुल, सड़क और पॉवर प्लांट्स आदि सबको नष्ट कर दिया। इस हादसे के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का एक विचित्र बयान आया कि चमोली में आई इस विपदा को मैन-मेड विपदा न बताया जाए। यह एक प्राकृतिक आपदा है। उनका कहना था कि इसे मैन-मेड हादसा बताने से उत्तराखंड के विकास कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।  लेकिन मुख्यमंत्री महोदय यह स्पष्ट नहीं कर सके, कि कभी कोई प्राकृतिक हादसा स्वतः नहीं होता, उसके पीछे मनुष्यों के अपने कर्म होते हैं। लाखों वर्ष से पहाड़ ऐसे ही खड़े हैं। बारिश, तूफ़ान और क्लाउड बर्स्ट (बादल फटना) को झेलते हुए। और इसकी वजह रही कि पहाड़ की वनोपज का संतुलन कभी नहीं बिगड़ा। यानी पहाड़ की जैव विविधता व प्राकृतिक संतुलन से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। लेकिन जैसे ही पहाड़ों का व्यापारिक लाभ के लिए दोहन शुरू हुआ, उसका संतुलन गड्ड-मड्ड हो गया। एक दशक के भीतर यह दूसरा बड़ा हादसा था। अगर छोटे-मोटे भूकंपों को छोड़ दिया जाए तो भी 2013 और 2021 में इतना बड़ा हादसा हुआ, जिसकी मिसाल ढूँढ़नी मुश्किल है। इन दोनों ही हादसों को मिलाकर कई हज़ार जानें गईं।  उत्तराखंड में पिछले 2016 के बाद से इस तेज़ी से उत्खनन हुआ है, कि हिमालय के कच्चे पहाड़ लगभग रोज़ ही दरकते हैं। ख़ासकर गढ़वाल रीज़न में चार धाम परियोजना के तहत 900 किमी तक 15 मीटर चौड़ी सड़क बनाने का लक्ष्य है। ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनवाएगा। यह सड़क दो लेन की होगी और बद्रीनाथ-केदारनाथ तथा यमुनोत्री-गंगोत्री को परस्पर जोड़ेगी। ज़ाहिर है, इसके लिए पहाड़ों को खोदा जा रहा है। ऊपर से पत्थर सड़क पर न गिरें इसलिए 15-20 फ़िट ऊँची पत्थरों की दीवाल बनाई जा रही है और इस ऊँचाई के ऊपर लोहे के तारों का जाल। एक नज़र में यह परियोजना बड़ी अच्छी लगती है। पहाड़ों की यात्रा सुगम और सरल हो जाएगी तथा पत्थरों के गिरने का ख़तरा भी कम होगा। ऋषिकेश से चंबा तक का क़रीब 68 किमी की सड़क इस परियोजना के तहत बन चुकी है और यह दूरी अब मात्र सवा घंटे में पूरी हो जाती है, जिसे तय करने में पहले दो-ढाई घंटे लगते थे। मगर इसके लिए जिस तरह पहाड़ों का स्वरूप बिगाड़ा गया है, उनकी हरियाली नष्ट की गई है तथा पानी बाह जाने के रास्ते बंद हो चुके हैं, उससे ये चमाचम सड़कें कितने दिन चल पाएँगी, यह कहना बहुत कठिन है।  यात्री तो आया और चला गया। किंतु वहाँ के गाँवों और क़स्बों का क्या हाल होगा, इसकी चिंता सरकारों को नहीं होती। क्योंकि राजनेताओं को कमीशन मिलता है और इज़ारेदार कारपोरेट घरानों को व्यापार की सुविधा। बर्बाद हो जाते हैं वहाँ के रहवासी। सात फ़रवरी को जो हादसा हुआ उससे चमोली ज़िले का रेणी गाँव पूरी तरह समाप्त हो गया। उसको जोड़ने वाला पुल भी। हिमालय का एक ग्लेशियर शिखर से टूट कर ऋषिगंगा और उसके बाद जो भयानक पानी उमड़ा वह धौलीगंगा के संगम पर जाकर बीस फुट ऊँचा हो गया। इसके बाद उछाल मारते हुए इस पानी ने अपने साथ आसपास के पहाड़ों से गिरे मलबे को लपेटे में लिया। तेज़ी से हरहराता हुआ यह पानी तपोवन पहुँचा। वहाँ पर डैम के गेट बंद थे। इस पानी ने डैम के किनारों को तोड़ते हुए उससे कुछ दूरी पर स्थित पॉवर प्लांट के टनल्स पर निशाना साधा। पंद्रह फुट ऊँचे गेट वाले इन टनल्स के भीतर पानी और मलबा घुस गया। इनमें से टनल नंबर एक ज़्यादा लम्बी है और नंबर दो कम। लेकिन लोगों दोनों टनल्स के अंदर थे। उनकी निकासी का दरवाज़ा बंद हो गया। इसी के साथ आक्सीजन जाने का रास्ता भी। कुछ ही लोग बचाए जा सके।  इस हादसे को प्राकृतिक कैसे माना जाए? प्राकृतिक कह देना तो भोलेपन की निशानी है। अगर इसे प्रकृति का कोप भी मानें तो यह तय है कि प्रकृति किसी वजह से कुपित हुई होगी। यह वजह मनुष्य निर्मित ही रही होगी, वर्ना जाड़े में ग्लेशियर नहीं गिरते। और वह भी लाखों टन वज़नी ग्लेशियर। हालात ये हैं, कि यदि आप ऋषिकेश से जोशीमठ की तरफ़ जाने वाली रोड पर बढ़ें तो देवप्रयाग तक के पूरे रास्ते पर तोड़-फोड़ जारी है। दासियों ज़ेसीबी लगी हैं, जो पहाड़ खोद रही हैं। जगह-जगह ऊपर से पत्थर गिर रहे हैं। देव प्रयाग से रुद्र प्रयाग तक चार धाम परियोजना की सड़क बन गई है। मगर आगे कर्ण प्रयाग और नंद प्रयाग तक हाल वैसा ही ख़राब है। इतनी ऊँचाई पर पहाड़ काटने का मतलब प्रकृति को बर्बाद करना ही है।  नदी का अपना एक प्रवाह होता है और इसे समझना बहुत ज़रूरी है। जगह-जगह उस पर डैम बनाना उसकी धारा को अवरुद्ध करना है। पहाड़ पर सिंचाई के लिए पानी की ज़रूरत नहीं लेकिन बड़े-बड़े बाँध बना कर उनसे बिजली उत्पादन एक बड़ा मुनाफ़े का सौदा है। एक-एक पॉवर प्लांट का ठेका हासिल करने के लिए कंपनियों में खूब युद्ध होते हैं। प्रति मेगावाट नेताओं का कमीशन तय है। अब इस युद्ध और कमीशनखोरी में कौन क्या कर जाए, पता नहीं। मज़े की बात कि उत्तराखंड को बिजली की ज़रूरत नहीं। उसके छोटे-छोटे बाँधों से ही पर्याप्त बिजली मिल जाती है। किंतु बिजली का देशव्यापी मार्केट है। इसलिए हर छोटी बड़ी नदी पर बाँध बनाकर पानी रोका जाता है। ऋषिगंगा जब धौलीगंगा में गिरती है तो आगे इसका नाम धौलीगंगा हो जाता है। जब दो नदियों का संगम होता है तो जो नदी ज़्यादा गहरी और विशाल होती है, उसी का नाम आगे की धारा को मिलता है। किंतु यदि गहराई सामान है तो दूसरा नाम मिलता है।  यह धौलीगंगा जोशीमठ के क़रीब विष्णु प्रयाग में बद्री पर्वत से नक़ल कर आई विष्णुगंगा से मिलती है। चूँकि दोनों की गहराई सामान है इसलिए अब को बढ़ी नई धारा को नाम मिला अलकनंदा। इसके बाद नंद प्रयाग में नंदाकिनी नदी इसमें मिली किंतु नाम अलकनंदा ही रहा। कर्ण प्रयाग में पिंडारी नदी इसमें मिलती है और रुद्र प्रयाग में केदार पर्वत से निकल कर आई मंदाकिनी मिलती है। पर नाम अलकनंदा ही रहता है। देव प्रयाग में इस अलकनंदा में भागीरथी नदी मिलती है। मगर यहाँ दोनों की गहराई और विशालता समान है इसलिए नाम मिला गंगा। अब गंगा का जन्म होने के पहले ही हर 20 किमी पर बाँध बनाकर उनका पानी रोक लिया जाता है। पहाड़ों के धसकने के कारण पॉवर हाउस पहाड़ों को खोखला कर उनके अंदर बनाए गए हैं। इस तरह हिमालय के कच्चे पहाड़ों को इस तरह खोद दिया गया है, कि कभी भी कोई हादसा हो सकता है। अभी 2013 की केदार त्रासदी को लोग भूले नहीं हैं। जब मंदाकिनी ने हज़ारों लोगों को लील लिया था। अगर विकास की इस कारपोरेटी प्रतिद्वंदिता को न रोका गया तो कैसे रुकेंगे हादसे! इस त्रासदी के चलते गंगा तक इतनी गाद आ गई है, कि सैकड़ों प्रकार के जलीय जंतु नष्ट हो गए। जैव विविधता को भारी नुक़सान पहुँचा है। पर मुख्यमंत्री इस विनाशकारी विकास को नहीं रोकना चाहते। न ही केंद्र में बैठी सरकार। 

5 years ago

Pandemic Covid-19’s Impact on Global Research: महामारी कोविड-19 का वैश्विक अनुसंधान पर असर

कोरोनोवायरस महामारी से निपटने के लिए वैश्विक अनुसंधान गतिविधि ने एक बार फिर से विश्वास पर राज किया है वैश्वीकरण…

5 years ago