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Naxalites attack security forces in Chhattisgarh, three soldiers martyred: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का सुरक्षा बलों पर हमला, तीन जवान शहीद

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिलेमेंनक्सलियों ने सुरक्षाबलोंको अपना निशाना बनाया। मिली सूचना के अनुसार सुरक्षाबलों की बस को नक्सलियों…

4 years ago

Corruption in public life and letter of Paramveer Singh: विमर्श – सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और परमवीर सिंह की चिट्ठी

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र के वर्तमान डीजी होमगार्ड परमवीर सिंह का एक पत्र आज कल चर्चा में…

4 years ago

Sharad Pawar gave clean chit to Home Minister Anil Deshmukh: शरद पवार ने दी गृहमंत्री अनिल देशमुख को क्लीन चिट

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में कोविड-19 की मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कोविड की स्थिति महाराष्ट्र में अत्यधिक चिंताजनक होती…

5 years ago

Our Country seeping in poison of pollution : प्रदूषण से जहरीला होता हमारा देश!

एक वक्त था हम कहते थे, “सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा”। अब हालात इतर हैं। देश की आवोहवा बेहद जहरीली…

5 years ago

Development down for 50 years, now development -PM Modi: 50 साल से विकास डाउन, अब विकास होबे-पीएम मोदी

पश्चिम बंगाल के चुनावों की तारीख करीब आनेपर पार्टियों केनेताओं ने एक दूसरे पर हमले तेज कर दिए है। आज…

5 years ago

Corona Epidemic – More than 40 thousand new corona cases in twenty four hours: कोरोना महामारी- चौबीस घंटों मेंनए कोरोना मामले 40 हजार से ज्यादा

नईदिल्ली। भारत मेंकोरोना महामारी ने एक बार फिर से डरावने नंबर दिखाने शुरु कर दिए हैं। कोरोना वायरस से संक्रमित…

5 years ago

paanee ka paanee to rakh lete! पानी का पानी तो रख लेते!

ग़ाज़ियाबाद ज़िले में डासना के क़रीब एक मंदिर में जब दूसरे समुदाय का एक बच्चा पानी पीने गया तो मंदिर के सेवादार शृंगी यादव ने उसे पकड़लिया और उसका नाम पूछा। यह पता चलते ही कि वह अन्य समुदाय का है शृंगी ने अपने एक साथी को बुलाया और उसे पीटना शुरू कर दिया।जब वह अधमरा हो गया, तब छोड़ा। और इस पिटाई कांड का वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। इस तरह की घटनाएँ सन्न करदेती हैं। कैसा होता जा रहा हमारा समाज, जिसमें किसी को पानी पीने देना भी गुनाह है। अभी कोई ज़्यादा समय नहीं बीता, जब दिल्ली मेंजगह-जगह पौशाले दिख जाते थे। चिलचिलाती धूप और गर्मी में लोग वहाँ जाकर अपनी प्यास बुझाते। कई जगह तो गुड़ भी मिलता। येपौशाले प्रशासन भी खुलवाता और कुछ चैरिटी वाले भी। लेकिन फिर पानी बिकना शुरू हुआ। और पाँच-दस पैसे फ़ी गिलास शुरू हुआ पानी20 रुपए बोतल तक पहुँच गया। पानी का धंधा अब इतना बड़ा हो गया है, कि अब लोग मरते हुओं के मुँह में भी पानी न डालें। लेकिन ग़ाज़ियाबाद की यह घटना थोड़ी अलग है। यह मामला एक दीगर धर्म के मानने वाले को पानी पीने से मना करने का है। हमारा समाज अबइतना असहिष्णु हो गया कि अब किसी भिन्न समुदाय के व्यक्ति को पानी नहीं पीने देंगे। जबकि पानी का नल सार्वजनिक है। एक ऐसे समाज सेकैसे उम्मीद की जाए कि आने वाले वर्षों में वह आधुनिक होगा। वह बराबरी, समरसता अथवा सहिष्णुता का वाहक बनेगा? ऐसा धर्म किस मुँहसे विश्व-गुरु होने अथवा लोक कल्याण कारी होने का दावा करता है। मुझे ख़ुद याद है, कि हमारे बचपन में किसी प्यासे को लोग घर से मँगा करपानी पिला देते थे। अब क्या संभव है, कि कोई प्यास व्यक्ति किसी का दरवाज़ा भड़भड़ा कर पानी की माँग करेगा? इस संदर्भ में पानी को लेकर मैं एक कथा सुनाना चाहूँगा। यह 1972 की बात है। हमारे चाचा इटावा जिले के गांव मेंहदी पुर में ग्रामसेवक के पद पर नियुक्त थे। उसी साल गर्मियों की छुटिटयों में जब मैंगांव गया हुआ था मेरी दादी ने कुछ काम से मुझे उनके पास भेजा। लंबा सफर था और बस पकडऩे के लिए ही चार कोस यानी आठ मील अर्थातकरीब 13 किमी दूर मूसानगर जाना था जो यमुना किनारे मुगल रोड पर बसा एक कस्बा है। उमर भी तब कोई खास नहीं थी इसलिए दादी को डरभी था कि लड़का उतनी दूर पहुंच जाएगा। खैर मैं सुबह चार बजे घर से निकला। साढ़े छह बजे मूसानगर पहुंच गया और सात बजे वाली बस मिलगई जो इटावा जा रही थी। भोगनीपुर, सिकंदरा, औरय्या, अजीतमल होती हुई बस जब महेवा पहुंची तब तक डेढ़ बजे चुके थे। भूख और प्यासदोनों तेज लगी थी और जेब में पैसे किराया निकाल देने के बाद बस दो या तीन रुपये बचे थे। तब होटल तो होते नहीं थे और पानी की बोतलें नहींमिला करती थीं। कुएं पर पानी भरती कोई घटवारिन पानी पिला दे तो ठीक पर ऐन जेठ की दुपहरिया को कौन पानी भरने आता। सो अजीब-सेपशोपेश में मैं रहा। किसी के घर का दरवाजा खटखटाने में झिझक हो रही थी। एक जगह एक नीम के पेड़ के नीचे एक बूढ़ा आदमी बैठा था।सफेद दाढ़ी-मूंछ बेतरतीब रूप से बिखरे, लंगोट नुमा एक कपड़ा शरीर पर और एकदम काला। मैने उसके पास जाकर कहा- बाबा प्यास लगीहै। पानी मिलिहै? वह जो मेरे करीब आते ही उठ खड़ हुआ था बोला- साहब हम तो चमार हैं आप यादव जी के घर चले जाओ। उसने रास्ता भीबता दिया। मैने कहा बाबा प्यास बड़ी जोर से लगी है मुझे पिलाय देव। वह बोला- साहब कोहू ने देख लओ तौ तुम्हाओ तो कछू न हुइहै पै हमाईचमड़ी उधेर दीन जइए। उसकी जिद के चलते मुझे प्यासा ही आगे बढऩा पड़ा। किसी तरह थूक चाटते हुए मैं आधा मील बढ़ा होऊँगा तो पाया कि खेतों की सीमा खत्म होने लगी और अब बीहड़ व ऊबड़-खाबड़ रास्ता मिलनेलगा। माथे पर हथेली टिकाकर मैने दूर तक देखने की कोशिश की तो गांव तो क्षितिज तक बस बीहड़। या ऊँचे-ऊँचे कगार। यह जमना के किनारेका इलाका था जो मीलों तक फैला था। मैं यूं ही टहलते हुए जमना तक जा सकता था पर जमना कितनी दूर है पता नहीं और अगर भटक गया तोकहां जाकर लगूंगा कुछ पता नहीं। न खाने को कुछ न पीने को ऊपर से डकैतों का डर अलग। पर अब जाता तो कहां और मेंहदीपुर गांव का पतापूछता तो किससे। अजीब मुसीबत थी। हिम्मत जवाब देने लगी और लगा कि यहां अगर भूख प्यास से तड़प कर मर भी गया तो महीनों तक पतातक नहीं चलेगा कि कोई मर भी गया। सांसें जवाब देने लगी थीं। कब तक जीभ को थूक से लथेड़ता। गर्म लू भी चल रही थी। और छाया के नामपर न तो आम या इमली, नीम या पीपल के पेड़ न कोई और पौधा जो करील थे भी वे बस टांगों तक आते। अगर कगार के नीचे जाऊँ तो क्या पताकि कहां कौन सा जानवर बैठा होगा। और करील की पत्तियां चबाई नहीं जा सकती थीं। एक बड़ा-सा बबूल का पेड़ दिखा। मैं उसी के नीचे बैठगया। आसपास कांटे बिखरे पड़े थे उन्हें किसी तरह हटाया और आराम से पसर गया। आध घंटे बाद फिर आगे बढऩे की सोची। अचानक एक कगार से उतरते ही मुझे कुछ लोगों के बतियाने की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही मुझे लगा कि जैसे मेरे प्राण लौट आए हैं।भागते हुए वहां पहुंचा जहां आवाजें आ रही थीं। वह एक पौशाला थी। एक झोपड़ी बनी थी और दो बड़े-से मटके जमीन में गड़े थे जिनमें पानी भराथा। वहां एक और आदमी था और वे दोनों बतिया रहे थे। मैने जाते ही कहा- बाबा पानी पिलाओ। बूढ़े ने एक लोटा भरकर मुझे दिया और मैंनेपीने के वास्ते चिल्लू बनाया। वह बोला- रुको लल्ला गुर तो खाय लेव। यानी पानी के पहले उसने मुझे एक भेली गुड़ दिया और उसके बाद मैनेपूरा लोटा पानी पिया। लगा जैसे जान मिली। तब दोनों की ओर मैने देखा। पानी पिलाने वाला एक बुजुर्ग था और वह एक अधेड़ आदमी सेबतिया रहा था। मैने उससे पूछा कि बाबा मेंहदीपुरा कहां है। उसने कहा कि बस आध कोस है और वो देखो मेंहदीपुरा के खेत दिखाई देत हैं। फिरउसने पूछा कि किसके यहां जाना है? मैने चाचा का नाम लिया तो बोला कि ग्रामसेवक बाबू सुबह तो आए थे। चले जाओ। मैं आधा घंटे बादमेंहदीपुरा पहुंच गया। चाचा चाची और भाईबहनों से मिला। चाचा को प्याऊ के बारे में बताया तो उन्होंने सूचना दी कि यह पौशाला एक नामीडकैत ने खुलवाई हुई थी और गुड़ का इंतजाम वही करता था और उस पौशाले वाले बुजुर्ग को 50 रुपये महीना भी देता था। यह सही है कि यहपौशाला डकैतों के भी काम की थी मगर मेरे जैसे भटके राहगीरों के लिए तो यह ईश्वरीय वरदान थी। अगर वह पौशाला न मिलती और ठंडा पानीन मिलता तो शायद यह लिखने के लिए मैं जिंदा नहीं रह पाता। पहले दिल्ली शहर में भी सेठ लोग पौशाला खुलवाते थे। पेठा भी मिला करता था लेकिन अब बोतल खरीदो। पहले हर जिले में डीएम भी पौशालेखुलवाया करता था साथ सत्तू-पानी भी पर अब रेलवे ने एक रुपया गिलास पानी देना शुरू कर दिया है।

5 years ago

Corona epidemic is increasing concern, around 40,000 new cases found after 78 days: कोरोना महामारी बढ़ा रही चिंता, 78 दिन बाद मिले करीब 40,000 नए मामले

नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी का संक्रमण दिन ब दिन भारत में बढ़ रहा है। बीते साल 2020 में कोरोना…

5 years ago

TMC Means Transfer My Commission, PM’s rally in Bengal: टीएमसी मतलब ट्रांसफर माय कमीशन, बंगाल में पीएम की रैली

पश्चिम बंगाल मेंचुनाव की तैयारी चल रही हैभाजपा अपने पूरे दमखम से चुनावों में उतर रही है। आज पश्चिम बंगाल…

5 years ago

Descent falling in the country of the country is worrisome: देश की दुनिया मे गिरती हुयी क्षवि, चिंताजनक है

दुनिया मे जब भी उदार परंपराओं, विरासत, संस्कृति और समाज की चर्चा होती है तो, भारत का नाम सबसे पहले…

5 years ago