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The country’s vaccination will be in the hands of the central government now:केंद्र सरकार के हाथों में होगा देश का वैक्सीनेशन, राज्यों को नहीं खरीदनी होगी वैक्सीन

पीएम नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कोरोना संकट से निपटने के लिए कई बड़े ऐलान किए हैं।आज…

4 years ago

Relief from Corona – the number of new cases decreased: कोरोना से राहत- नए मामलों की संख्या घटी, एक्टिव केस भी केवल और बढ़ी: एक लाख पर ठहरा लाख

नई दिल्ली। कोरोना महामारी की दूसरी लहर देश मेंबहुत गंभीर और कठिन थी। हर रोज लाखों की संख्या मेंलोगों को…

4 years ago

It is necessary to clear the misconceptions of Central Vista Project: सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की भ्रांतियों को दूर करना जरूरी

भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के मामले में आठ महीनों तक हुईं 28 सुनवाईयोंके बाद, 5…

4 years ago

Statesman builds the nation! स्टेट्समैन राष्ट्र बनाता है!

राष्ट्रीय सांख्यकी मंत्रालय के मुताबिक 2020-21 के वित्तीय वर्ष में जीडीपी 135 लाख करोड़ रही, जो पिछले साल 145 लाख…

4 years ago

Mamta, Modi and Front! ममता, मोदी और मोर्चा!

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री के अहम पर चोट की है। मुख्य सचिव आलापन वंद्योपाध्याय को न तो रिलीव किया और न उनके सेवा काल को एक्सटेंड करने का दोबारा अनुरोध किया। बल्कि उन्हें रिटायर हो जाने दिया और इधर रिटायरमेंट उधर ममता की तरफ़ से उनको विशेष सलाहकार का दर्जा। अर्थात् एक तरह से ममता ने मोदी को अंगूठा दिखा दिया है। दरअसल 1987 बैच के आईएएस आलापन वंद्योपाध्याय 31 मई को रिटायर हो जाने वाले थे। किंतु कोरोना की सेकंड वेव को देखते हुए उन्हें तीन महीने का एक्सटेंशन केंद्र की मंज़ूरी के मिला था। पर इसी बीच यास तूफ़ान के बाद राहत पैकेज हेतु कोलकाता में 28 मई को हुई प्रधानमंत्री की बैठक में न तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गईं न मुख्यसचिव आलापन वंद्योपाध्याय। अब केंद्र सरकार ममता से तो ऊँचा बोल नहीं सकती लेकिन अखिल भारतीय स्तर के अधिकारियों की नकेल केंद्र के पास होती है इसलिए तत्काल केंद्रीय गृह मंत्रालय के विभाग डीओपीटी (डायरेक्टोरेट ऑफ़ पर्सोंनल एंड ट्रेनिंग) ने आलापन को दिल्ली आकर जॉयन करने का निर्देश दिया। मालूम हो कि 1954 में बने एक क़ानून की धारा छह बटा एक के तहत केंद्र को यह अधिकार है। वहीं 1969 में बने एक क़ानून की धारा सात के तहत केंद्र में प्रतिनियुक्ति के पूर्व उस अधिकारी को राज्य सरकार से अनुमति लेनी भी आवश्यक है। ममता बनर्जी ने अनुमति नहीं दी। आलापन ने 31 मई को अपना रिटायरमेंट लिया और ममता ने उनके नुक़सान की भरपायी कर दी। अब केंद्र बुरी तरह भंनया हुआ है। पहली बार किसी राज्य सरकार ने ‘सर्वशक्तिमान’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुरी तरह मात दी है।  अगर हम इस तरह की बौखलाहट के पीछे के अहंकारों को देखें, तो कुछ-कुछ अंदाज़ा होगा। मानव मनोविज्ञान को समझना हर एक के वश की बात नहीं होती। इसके लिए काफ़ी उदार-चरित यानी बड़े दिल वाला होना पड़ता है। राजनेताओं में वही सफल समझा जाएगा, जिसे मानव मनोविज्ञान समझने में महारत हो। शायद इसीलिए पहले के शासकों को शतरंज के खेल में बहुत रुचि होती थी। प्रतिद्वंदी को कहाँ कैसे गिराना है, यह एक माहिर खिलाड़ी ही समझ सकता है। माहिर वह जो प्रतिद्वंदी कि अगली चाल को ताड़ ले। उसे पता होना चाहिए कि उसकी क्रिया की प्रतिक्रिया क्या होगी। लेकिन इसमें भी चतुर वह जो बिना अपने मनो-विकार व्यक्त किए चाल को अपने पक्ष में कर ले। हम इसीलिए अशोक और अकबर तथा जवाहर लाल नेहरू को बड़ा कहते हैं, कि उन्होंने बिना अनावश्यक रक्त-पात के माहौल अपने अनुकूल किया। इसके लिए किसी एकेडेमिक डिग्री की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसके लिए अनुभव ही बहुत है।  अब इसमें कोई शक नहीं कि सत्तारूढ़ भाजपा शतरंज के शह और मात में माहिर है लेकिन मानव मनोविज्ञान समझने में मूढ़।क्योंकि उसकी हर चाल प्रतिद्वंदी को उत्तेजित करने में होती है। और इस तरह वह ध्रुवीकरण की राजनीति करती है। मगर अपने इस खेल में वह ममता बनर्जी से मात खा रही है। ममता बनर्जी उत्तेजित होती हैं और फिर ऐसा क़रारा जवाब देती हैं कि भाजपा और उसके प्रधानमंत्री चारों खाने चित! भाजपा को लगता है कि वह इसे प्रधानमंत्री के पद का अपमान के तौर पर प्रचारित करेगी और इसे भुना लेगी। लेकिन वह भूल जाती है, कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। ताज़ा मामला 28 मई का है। प्रधानमंत्री यास तूफ़ान से हुए नुक़सान का सर्वे करने ओडीसा और पश्चिम बंगाल गए। दोनों राज्यों की राजधानियों में वहाँ के मुख्यमंत्रियों तथा अधिकारियों के साथ उन्होंने आपात बैठक भी की। कोलकाता में हुई बैठक में नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी तथा वहाँ के गवर्नर भी बुलाए गए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर आपत्ति की और वे मीटिंग में नहीं गईं। वे आधा घंटे बाद अपने मुख्य सचिव आलापन वंद्योपाध्याय के साथ प्रधानमंत्री से मिलने पहुँचीं और उन्हें 10 हज़ार करोड़ के राहत पैकेज को देने की एक अर्ज़ी पकड़ा कर वापस लौट गईं।  भाजपा इसे प्रधानमंत्री पद का अपमान बता रही है। और इस बहाने ममता पर हमलावर है। उधर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि भाजपा राहत के बहाने राजनीति कर रही है क्योंकि आपदा में अवसर तलाशना उसकी सिफ़त है। अब पूरा पश्चिम बंगाल राजनीति का अखाड़ा बन गया और भाजपा से पहली बार कोई ऐसा दल टकराया है जो तुर्की-ब-तुर्की जवाब देना जानता है। तृणमूल के नेता भी कोई मुरव्वत नहीं करते। इसीलिए भाजपा अब अपनी चाल में मात खाने लगी है। तृणमूल ने इस पूरे प्रकरण को प्रधानमंत्री बनाम मुख्यमंत्री नहीं बल्कि मोदी बनाम ममता बना दिया है। लोगों में इससे संदेश गया है कि ममता ने मोदी को औक़ात दिखाई। नतीजा यह है कि भाजपा सरकार वहाँ की अफ़सरशाही पर शिकंजा कसने लगी। मुख्यसचिव आलापन वंद्योपाध्याय को दिल्ली बुलाए जाने का आदेश हुआ। उधर ममता सरकार अड़ गई और उन्हें केंद्र जाने की अनुमति नहीं दी। मुख्य सचिव का कार्यकाल बस 31 मई तक ही था। मुख्यसचिव आलापन वंद्योपाध्याय के भाई अंजन वंद्योपाध्याय, जो कि जाने-माने न्यूज़ एंकर थे, का पिछले दिनों कोरोना से निधन हो गया था। केंद्र ने उनकी व्यथा को भी नहीं समझा। इससे नौकरशाही हतोत्साहित होगी और वह काम करने की बजाय सदैव इस द्वन्द में पिसेगी कि वह राज्य का साथ दे या केंद्र का। ऐसा ही एक मामला प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी हुआ था। उस समय तमिलनाडु में जय ललिता मुख्यमंत्री थीं। तब द्रमुक के अध्यक्ष करुणानिधि के साथ एक आला पुलिस अधिकारी ने दुर्व्यवहार किया। उस पुलिस अधिकारी के ऊपर जय ललिता का हाथ था। मामला पीएमओ तक आया तो उस अधिकारी को दिल्ली बुलाया गया किंतु जय ललिता अड़ गईं और प्रधानमंत्री ने बीच-बचाव कर मामला शांत कर दिया। अधिकारी वहीं रहा। यह प्रधानमंत्री का बड़प्पन था। लेकिन आज प्रधानमंत्री से ऐसे बड़प्पन की उम्मीद नहीं की जा सकती। हालाँकि अखिल भारतीय सेवा (आचार) नियम,1954 व आईएएस काडर नियम, 1954 की धारा 6(1) के अनुसार केन्द्रीय कार्मिक, पेंशन व लोक शिकायत मंत्रालय को यह अधिकार है कि वह अखिल भारतीय सेवा के किसी भी अधिकारी को राज्य से केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर बुला सकता है। भाजपा के लोग तर्क देते हैं, कि यह प्रधानमंत्री का बड़प्पन है कि वे पश्चिम बंगाल विधानसभा भंग नहीं करते जबकि ममता अभी से नहीं पिछली सरकार के वक्त से ही प्रधानमंत्री का अपमान करती आई हैं। ऐसे कुतर्कों का एक जवाब तो यह है, कि अब ऐसा संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बोम्मई मामले में ऐसी व्यवस्था दी थी कि किसी भी सरकार का फ़ैसला फ़्लोर पर ही होगा। दूसरे मोदी बनाम ममता विवाद में यह कैसे संभव है? यह तो दो नेताओं का पारस्परिक विवाद है। इस पर केंद्र सरकार अपनी किस विशेष शक्ति का प्रयोग करेगी?  सच बात तो यह है कि राजनीति अब क्षुद्र होती जा रही है और राजनेता असहनशील। यह केवल नेताओं के चुनावी भाषणों में ही नहीं दीखता बल्कि उनके सामान्य शिष्टाचार में भी दिखने लगा है। प्रतिद्वंदी राजनेता को येन-केन-प्रकारेण तंग करना अब एक सामान्य प्रक्रिया हो गई है। और इसकी वजह है राजनीति अब समाज केंद्रित नहीं, अपितु व्यक्ति-केंद्रित होती जा रही है। राजनीति अब लाभ का सौदा है, उसके अंदर से सेवा भाव और राजनय लुप्त हो चला है। राजनीति में मध्यम मार्ग अब नहीं बचा है। पारस्परिक विरोध का हाल यह है कि न केवल प्रतिद्वंदी को पछाड़ने के लिए एक-दूसरे के फालोवर के सफ़ाये का अभियान चलाया जाता है बल्कि जो दल सत्ता में होता है, वह सत्ता की धमक का इस्तेमाल कर विरोधी को हर तरह से तंग करता है। पहले यह उन राज्यों तक सीमित था, जहां धुर वामपंथी या दक्षिणपंथी सरकारें थीं। क्योंकि सफ़ाया-करण की थ्योरी ही उनकी है। पर अब यह केंद्र तक आ धमका है। कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग, सीबीआई जैसी संस्थाएँ भी केंद्र के इशारे पर काम करने लगी हैं। कहाँ तो केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी एक जमाने में लोकपाल बिल लाने की माँग करती थी और कहाँ आज वह सारी सांवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने पर तुली है। अब स्थिति यह है कि उसके विरोधी दलों के अंदर भी यही चिंतन हावी है।  पश्चिम बंगाल और केरल को इस तरह की राजनीति का गढ़ समझा जाता था। पश्चिम बंगाल में। वहाँ पर नक्सलबाड़ी आंदोलन से उपजे विचार और उसके कार्यकर्त्ताओं का हिंसक कैडर की मदद से संहार किया गया था। पकड़-पकड़ कर मारा गया था। ठीक इसी तरह नब्बे के दशक में पंजाब की बेअंत सिंह सरकार ने आतंकवादियों को ख़त्म करने के नाम पर पुलिस को असीमित अधिकार दिए थे। याद करिए, वहाँ के पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल ने किस तरह नौजवानों को घर से घसीट-घसीट कर मार दिया था। युवा शक्ति का ऐसा संहार पहले कभी नहीं देखा गया था। यही हाल कश्मीर में हुआ। जिस किसी ने नागरिक स्वतंत्रता की माँग की, उसे मार दिया गया अथवा जेलों में ठूँस दिया गया। जब हमारे विपरीत विचार वाले लोगों का उत्पीड़न होता है, तब हम खुश होते हैं और सोचते हैं कि यह देश-हित में हो रहा है। नतीजा एक दिन सत्ता का कुल्हाड़ा हमारे सिर पर भी गिरता है और हम उफ़ तक नहीं कर पाते। तब हमें बचाने के लिए भी कोई नहीं होता क्योंकि व्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक आज़ादी की माँग करने वालों को तो हम खो चुके होते हैं। यही असहिष्णुता है।  यह असहिष्णुता राजनेता और राजनीतिक दलों में इस कदर पैठ गई है, कि अब वे जनता के मन को समझने में भी नाकाम हैं। 

4 years ago

Congress should encourage youth leadership: कांग्रेस को चाहिए कि वह युवा नेतृत्व को प्रोत्साहित करे

किसी भी पार्टी की ताकत संगठन में युवा तत्वों को प्रेरित करने की उसकी क्षमता बड़े राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त…

4 years ago

Waiting for the results of BJP’s ocean churning, still confused!: भाजपाई समुद्र मंथन के नतीजों का इंतजार, अभी असमंजस !

उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन को लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व से लेकर मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ तक…

4 years ago

Center reprimanded by top court on vaccine policy: केंद्र को वैक्सीन पॉलिसी पर शीर्ष अदालत की फटकार, नागरिकों के हक छिनें तो मूकदर्शक नहीं रह सकतीं अदालतें

नई दिल्ली। आम आदमी के हक के लिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र स रकार को फटकार लगाई। केंद्र…

4 years ago

Are we going towards idiot ie kakistocracy? क्या हम मूढ़तंत्र यानी काकिस्टोक्रेसी की ओर जा रहे हैं ?

हर तरफ गवर्नेंस की विफलता दिख रही है। महंगाई बढ़ रही है, महंगाई भत्ते कम हो रहे हैं, इलाज के…

4 years ago

Cases of Covid-19 can be reduced only by better preparation and vaccination: बेहतर तैयारी और टीकाकरण से ही घट सकते हैं कोविड-19 के मामले

मार्च 2021 में डॉक्टर की भविष्यवाणियां  है कि ‘अस्पताल के अंदर मरीजों की संख्या पिछले साल की तुलना में काफी…

4 years ago