पुत्र का होता है दाह संस्कार पर पहला हक
Antim Sanskar, (आज समाज), नई दिल्ली: अक्सर देखने को मिलता है कि किसी के निधन के बाद उसके दाह संस्कार की जिम्मेदारी पुरुषों की होती है। महिलाओं को आमतौर पर श्मशान जाने से माना जाता है, लेकिन क्या शास्त्रों में महिलाओं को दाह संस्कार करने से मना किया गया है? क्या गरुण पुराण में इसका साफ तौर पर वर्णन किया गया हैं? आइए जानते हैं कि महिलाओं के दाह संस्कार करने के बारे में गरुण पुराण में क्या वर्णित है?

मृत्यु और आत्मा की यात्रा के बारे में विस्तार से बताया गया है गरुण पुराण में

गरुण पुराण 18 महापुराणों में शामिल है। गरुण पुराण में जन्म के बाद मृत्यु और आत्मा की यात्रा के बारे में विस्तार से बताया गया है। गरुण पुराण में अंतिम संस्कार के बारे में भी बताया गया है। अंतिम संस्कार से संबंधित बात गरुड़ पुराण के प्रेत खंड के अध्याय आठ में लिखी है। इस अध्याय में भगवान श्री हरि विष्णु ने गरुड़ को बताया है कि किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसके अंतिम संस्कार का हक किसको होता है?

भगवान विष्णु ने गरुण को क्या बताया है?

भगवान विष्णु ने बताया कि सबसे पहले पुत्र, पौत्र (पोता), प्रपौत्र (परपोता) यानी संतान की अगली पीढ़ियां अंतिम संस्कार करती हैं। इनको ही अंतिम संस्कार करने का अधिकार होता है। अगर ये न हों तो भाई, भाई के बेटे और उनके वंशजों से अंतिम संस्कार कराया जा सकता है। इनके अलावा, समान कुल में जन्मे रिश्तेदार भी अंतिम संस्कार कर सकते हैं।

परिवार में किसी पुरुष सदस्य के न होने पर संस्कार कर सकती है महिलाएं

भगवान विष्णु आगे गरुण से कहते हैं कि महिलाएं जैसे पत्नी, बेटी या बहन अंतिम संस्कार तभी कर सकती हैं, जब परिवार में कोई पुरुष सदस्य न हो। वहीं, अगर परिवार में कोई भी रिश्तेदार मौजूद न हो, तो समाज के प्रमुख व्यक्ति को उस मृतक के संस्कार का अधिकार है।

इससे स्पष्ट पता चलता है कि शास्त्रों में कहीं भी महिलाओं को अंतिम संस्कार करने से वर्जित नहीं किया गया है। महिलाओं को श्मशान नहीं जाने देना या उनको अंतिम संस्कार से रोकना सिर्फ एक सामाजिक परंपरा है। इसके धार्मिक नियम नहीं हैं। ये पंरपरा समय के साथ बना ली गई है।

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