जीवन की समस्याएं होंगी दूर
Pitru Paksha Upaay, (आज समाज), नई दिल्ली: सनातन शास्त्रों में पितृपक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। इस अवधि के दौरान पितरों का तर्पण श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, लेकिन कई बार हमारे जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां सामने आती हैं, जिनका कोई स्पष्ट कारण समझ में नहीं आता।
अचानक काम में रुकावट आना, धन की कमी, घर में किसी का बार-बार बीमार पड़ना, दुर्घटनाएं या संतान से जुड़ी परेशानियां ये सभी पितरों की अप्रसन्नता का संकेत हो सकती हैं। ऐसे में इस आर्टिकल में बताए गए उपायों से पूर्वजों को प्रसन्न करें।
पूजा, तर्पण और पिंडदान करें
हिंदू धर्मग्रंथों में बताया गया है कि यदि पितर रुष्ट हों, तो पितृपक्ष के दौरान उनकी पूजा, तर्पण और पिंडदान करके उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। इस वर्ष पितृपक्ष 07 सितंबर से 21 सितंबर तक रहेगा और यह समय जीवन की रुकावटों को दूर करने और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
इन समस्याओं का करना पड़ सकता है सामना
- संतान से जुड़ी समस्याएं: पितृदोष का सबसे प्रमुख संकेत संतान सुख या वंश से जुड़ी कठिनाइयां हैं। कई बार पति-पत्नी पूरी कोशिश के बावजूद संतान सुख प्राप्त नहीं कर पाते या संतान होती है लेकिन वंश आगे नहीं बढ़ता। शास्त्रों के अनुसार, इसका मतलब है कि पितरों की आत्मा संतुष्ट नहीं है और उनके आशीर्वाद की कमी से वंश आगे नहीं बढ़ पा रहा।
- घर में पीपल का पौधा उगना: अगर घर की छत, आंगन या गमलों में बिना बोए अचानक पीपल का पौधा उग जाए, तो इसे अशुभ माना जाता है। यह संकेत है कि पूर्वज असंतुष्ट हैं और घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर रही है। जब तक इसका धार्मिक तरीके से निवारण न किया जाए, परिवार में शांति स्थापित करना कठिन हो सकता है।
- लगातार दुर्घटनाएं: घर में छोटी-मोटी घटनाएं सामान्य हैं, लेकिन बार-बार हादसे होना, चोट लगना, गाड़ी दुर्घटना या किसी का अचानक घायल हो जाना पितृदोष का संकेत हो सकता है। यह बताता है कि पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिल रही और वे अपनी पीड़ा संतान तक पहुंचा रहे हैं।
- काम और करियर में बाधाएं: कड़ी मेहनत के बावजूद सफलता न मिलना, प्रमोशन रुक जाना या व्यापार में अचानक नुकसान होना भी पितृदोष का परिणाम हो सकता है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि पितरों की कृपा जीवन में पूरी तरह नहीं बरस रही।
- शुभ कार्यों में रुकावट: शादी, गृह प्रवेश, संतान जन्म या अन्य मांगलिक अवसरों पर अचानक अड़चनें आना और कार्य अधूरा रह जाना भी पितृदोष के लक्षण हैं। यह संकेत है कि पितरों से ध्यान और तर्पण की अपेक्षा है।
पितरों को प्रसन्न करने के उपाय
- तर्पण और पिंडदान: पितृपक्ष में जल तर्पण और पिंडदान सर्वोच्च कर्तव्य हैं। तिल, कुश और जल से तर्पण किया जाता है और आटे या चावल के लड्डू (पिंड) बनाकर अर्पित किए जाते हैं। यह अनुष्ठान पितरों को संतोष देता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
- अन्न और जल अर्पण: प्रतिदिन थोड़ा भोजन और जल पितरों के नाम पर अर्पित करना उनकी कृपा आकर्षित करता है। इसमें संतान का आदर और कृतज्ञता भी समाहित रहती है।
- पूर्वजों की तस्वीर का सम्मान: घर में लगी तस्वीरों को साफ करना और उन पर पुष्प या माला अर्पित करना पितरों को प्रसन्न करता है और परिवार में शांति, सकारात्मक ऊर्जा और एकता लाता है।
- दीप जलाना: दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर पितरों का स्मरण करना शुभ और कल्याणकारी माना गया है। दीपक का प्रकाश पितरों तक पहुंचता है और उन्हें शांति प्रदान करता है।
- पूजा और हवन में स्मरण: धार्मिक अनुष्ठान और हवन में पितरों का नाम लेकर आह्वान करने से धार्मिक कार्य की पूर्णता होती है और पितृदोष के प्रभाव कम होते हैं।
- दान और पुण्य: जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन दान करना पितरों को प्रसन्न करता है। शास्त्रों में कहा गया है झ्र ह्लदानं पितृभ्यो मोदायह्व, अर्थात दान से पितर प्रसन्न होकर घर को आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि लाते हैं।
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