यूरिया की खपत कम करने के लिए आंध्र प्रदेश ने निकाली बेहतरीन तरकीब
Andhra Pradesh Government Decision, (आज समाज), नई दिल्ली: सरकार लगातार खेती में रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल घटाने के लिए प्रयार कर रही है मगर जमीन पर इसे क्रियान्वित कर पाना मुश्किल है। खरीफ सीजन में देश के तमाम राज्यों में भी किसानों को उर्वरक की किल्लत के कारण लाठियां तक खानी पड़ी हैं। मगर अब एक राज्य ने इसके लिए बेहतरीन तरकीब निकाली है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने घोषणा की है कि अगर किसान 260 वाला यूरिया बैग (50 किलो) नहीं खरीदते हैं, तो उन्हें 800 की प्रोत्साहन राशि मिल सकती है।
प्रधानमंत्री प्रणाम योजना का पैसा साझा करने के निर्देश
सीएम नायडू ने अधिकारियों से प्रधानमंत्री प्रणाम योजना के तहत केंद्र सरकार से मिलने वाली 1,400 की राशि का एक हिस्सा साझा करने के लिए कदम उठाने को कहा। बता दें कि प्रधानमंत्री प्रणाम (मातृ-भूमि के पुनरुद्धार, जागरूकता, पोषण और सुधार हेतु प्रधानमंत्री कार्यक्रम) योजना एक सरकारी पहल है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बचाई गई उर्वरक सब्सिडी का 50 प्रतिशत, अनुदान के रूप में देकर रासायनिक उर्वरक के उपयोग को कम करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है। इस योजना का उद्देश्य पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए टिकाऊ कृषि पद्धतियों और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करना है।
यूरिया के एक बैग से इतना उत्सर्जन
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम का स्वागत करते हुए, कृषि-जीवी सांस्कृतिक वैज्ञानिक और सतत कृषि केंद्र के सीईओ रामंजनेयुलु ने इसे एक शानदार कदम बताया। चूंकि किसान यूरिया की खपत कम कर रहे हैं, इससे उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है और कार्बन क्रेडिट अर्जित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अगर यूरिया का एक बैग इस्तेमाल किया जाए, तो इससे 400 किलोग्राम सीओ2 के बराबर उत्सर्जन होगा। अगर आप उत्पादन से लेकर वितरण तक के उत्सर्जन को भी शामिल करें, तो यह आधा टन या आधा क्रेडिट होगा। एक क्रेडिट 10-15 डॉलर (877-1,316) का होता है।
कृषि अर्थशास्त्री अरिबंडी प्रसाद राव का मानना है कि सरकार को इस योजना की घोषणा सीजन की शुरूआत में ही कर देनी चाहिए थी। अगर उन्होंने इसकी घोषणा पहले कर दी होती, तो किसान अपनी जमीन की बुआई और खाद के इस्तेमाल की योजना बना लेते।
यूरिया की खपत कम करना क्यों जरूरी
आंध्र प्रदेश सरकार की इस नीति ने कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। किसी भी राज्य द्वारा उठाया गया यह अपनी तरह का पहला कदम है, जो किसानों को अत्यधिक यूरिया के उपयोग से दूर रखने में कारगर साबित हो सकता है।
गौर करने वाली बात ये है कि भारत उर्वरक के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है और देश की खपत के लिए सरकार को दूसरे देशों से उर्वरक आयात करना पड़ता है। उर्वरक की बढ़ती खपत के कारण सरकारी खजाने पर बहुत भार पड़ता है। ऐसे में अगर उर्वरक की खपत कम होती है तो इससे सरकारी पैसे की भी बचत होगी।