नई दिल्ली। संसद के शीतकालील सत्र की शुरुआत 18 नवंबर को हुई। इस सत्र में वैसे तो सबकुछ सा मान्य ही रहा बस एक चीज थी जो बदली हुई थी और वह थी राज्यसभा में तैनात मार्शलस की वर्दी। बरसों से मार्शलस की वर्दी वहीं थी वह बंद गले का कोट और साफा पहने हुए स्पीकर की चेयर के पास नजर आते थे। इनकी वर्दी को विभिन्न सुझावों के बाद सचिवालय की ओर से बदला गया है। अब वह आधुनिक टोपी के साथ नजर आए। सदन में स्पीकर की कुर्सी के पीछे खड़े होने वाले मार्शल सेना जैसी यूनिफार्म पहने नजर आए। इन्होंने सेना जैसी टोपी और नीले रंग की यूनिफार्म पहनी हुई थी। साथ उनके कंघे पर पट्टियां थी। हालांकि मार्शल के यूनिफार्म पर पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने ट्वीट के माध्यम से अपना विरोध प्रदर्शित किया। उन्होंने लिखा कि सेना से संबंध न रखने वाले व्यक्ति को सैन्य यूनिफार्म की पहनना अवैध है। यह सुरक्षा के लिए भी खतरा है। सभापति वैंकैया नायडू ने आपत्तियों के बाद कहा कि मैंने सचिवालय से फिर से इसपर विचार करने को कहा। बता दें आम तौर पर उच्च सदन की बैठक आसन की मदद करने वाले कलगीदार पगड़ी पहने किसी मार्शल के सदन में आकर यह पुकार लगाने से शुरू होती है कि ”माननीय सदस्यों, माननीय सभापति जी”। जबकि सोमवार को वह कैप और नीले रंग की वर्दी में दिखे। इस बारे में किए गए उच्चस्तरीय फैसले के बाद मार्शल के लिये जारी ड्रेस कोड के तहत सदन में तैनात मार्शलों को कलगी वाली सफेद पगड़ी और पारंपरिक औपनिवेशिक परिधान की जगह अब गहरे नीले रंग की वर्दी और कैप को तय किया गया था। राज्यसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार पिछले कई दशकों से चल रहे इस ड्रेस कोड में बदलाव की मांग मार्शलों ने ही की थी। उल्लेखनीय है कि सभापति सहित अन्य पीठासीन अधिकारियों की सहायता के लिये लगभग आधा दर्जन मार्शल तैनात होते हैं।
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