September 4 Birthday Special-Rishi Kapoor bought the Best Actor Award for Bobby for 30 thousand: 4 सितंबर जन्मदिन पर विशेष -ऋषि कपूर ने 30 हजार में खरीदा था बॉबी के लिए बेस्ट एक्टर का अवार्ड

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ऋषि कपूर और डिंपल की बॉबी फिल्म सुपर हिट रही थी। टीनएजर्स प्यार पर बनी फिल्म बाक्स आफिस पर कमाई के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिये थे। ऋषि जैसे रईस बाप के थोड़े बिगड़ैल बेटे का मिज़ाज सातवें आसमान पर पहुंच गया था। ऐसे में आदमी को सही और गलत की समझ कम रहती है। शायद यह भी एक वजह रही हो कि ऋषि ने अपने पीआरओ तारकनाथ के प्रस्ताव को बिना सोचे समझे मान लिया जिसमें उसने  30000 रुपये में बॉबी फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का अवार्ड खरीदने की बात कही थी। खैर ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा खुल्लम-खुल्ला में अपनी गलती स्वीकार करते हुए शर्मिंदगी जाहिर की है। वैसे इस स्वीकारोक्ति ने इस बात की पुष्टि की है कि आज से करीब पचास साल पहले भी अवार्ड की खरीद बिक्री होती थी।
 चाकलेटी हीरो चिंटू
ऋषि कपूर उर्फ़ चिंटू मुझे बॉलीवुड के असली चाकलेटी हीरो लगते हैं। मेरा नाम जोकर में राजकपूर के किशोरवय के रोल से फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले चिंटू गोल-मटोल और चिकने चुपड़े होने थे। इस वजह से वे सहज भाव से चाकलेटी हीरो की भूमिका में एकदम फिट लगते थे। अपने पहले  करीब चालीस साल लंबे दौर में ऋषि कपूर अपनी इसी इमेज से बंधे रहे। इस दौर में उनकी कई फिल्में हिट भी रहीं और कई फ्लॉप भी। लेकिन चिंटू इसी कंफर्ट जोन के इर्द-गिर्द ही रहते हुए हिरोइनों के साथ डांस करने वाली भूमिकाएं ही निभाते रहे। इन भूमिकाओं के लिए उन्हें खास परिश्रम नहीं करना पड़ता था।
डांस और म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स के साथ जुगलबंदी
 ऋषि कपूर अपने दौर के सबसे बढ़िया डांसर में शामिल हैं। उनसे थोड़े बड़े जीतेंद्र और मिथुन चक्रवर्ती ही दो ऐसे कलाकार थे जो इस मामले में उन्हें टक्कर देते थे। वैसे मिथुन ने तो बाद के दौर में इसमें ज्यादा महारत हासिल कर ली थी। ऋषि को उनकी फिल्मों में विभिन्न वाद्ययंत्र को बजाते हुए देखने पर ये भ्रम हो जाता  है कि वे इन्हें अच्छी तरह से बजाना जानते होंगे। खासकर गिटार तो उन्होंने कई फिल्मों में इतने कांफीडेंस से बजाया है कि दर्शक सचमुच मान लेते हैं कि वे इसे बजाना जानते हैं।
कभी-कभी की शूटिंग के दौरान जान पर बन आई
ऋषि  कभी कभी फिल्म करने को इच्छुक नहीं थे। उन्होंने एक तरह से इंकार ही कर दिया था लेकिन फिल्म के निर्माता गुलशन राय चाहते थे कि ऋषि कपूर ही युवा प्रेमी की भूमिका निभाए। इसलिए उन्होंने शशि कपूर को भेजा। शशि कपूर और यश चोपड़ा विमान से दिल्ली पहुंचे और उन्होंने ऋषि कपूर को काम करने के लिए राजी किया।
कभी-कभी की शूटिंग के दौरान पहलगाम में ऋषि कपूर के जन्मदिन की पार्टी चल रही थी। रात में जश्न शुरू हुआ तो घोड़ों के मालिक और फिल्म यूनिट के टैक्सी चालक के बीच झड़प हो गई। इसके बाद हजारों लोगों की भीड़ हाथों में पत्थर और आग के गोले लिए होटल के बाहर जमा हो गई। उनका निशाना ऋषि कपूर और यस चोपड़ा के असिस्टेंट दीपक सरीन थे। सुरक्षा के लिहाज से होटल में लोगों को कमरों में बंद कर दिया गया। गुस्साए लोगों की भीड़ ने कई खिड़कियों के शीशे चकनाचूर कर दिया और होटल को भी तहस-नहस कर दिया। बात इतनी बिगड़ गई की सेना के जवानों को आकर स्थिति पर काबू पाना पड़ा।
कर्ज और कुर्बानी की टक्कर के बाद डिप्रेशन का दौर
 प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सुभाष घई ने ऋषि को लेकर पुनर्जन्म की कहानी को लेकर कर्ज फिल्म बनाई थी। ये फिल्म ठीक ठाक चली थी लेकिन इसकी सफलता का आनंद उठाने की बजाय ऋषि डिप्रेशन में चले गए। क्योंकि उन्होंने इस फिल्म को लेकर ज्यादा उम्मीदें पाल रखीं थीं। यह फिल्म ज्यादा इसलिए भी नहीं चली क्योंकि इसके इसके ठीक एक सप्ताह बाद फिरोज खान की कुर्बानी रिलीज हो गई। कुर्बानी में विनोद खन्ना और जीनत अमान जैसे बड़े सितारे थे। इसके अलावा यह बड़े बजट की भी फिल्म थी और सबसे बढ़कर इसके संगीत ने धूम मचा दी। बिदू और नाजिया हसन के संगीत ने युवाओं पर जादू कर दिया था खास कर आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आई तो बात बन जाए ने तो कमाल कर दिया था। इसके अलावा लैला मैं लैला कैसी मैं लैला हर कोई चाहे मिलना अकेला भी लोगों की जुबान पर चढ़ गया था।  इस स्थिति में ऋषि कपूर डिप्रेशन में चले गए। यहां तक की कैमरे का सामना करने से डरने लगे। वे खुद बताते हैं कि मैं सेट पर कांपने लगता और कभी-कभी बेहोश भी हो जाता था। नौबत यहां तक आ गई की डॉक्टर और मनोचिकित्सक की भी मदद लेनी पड़ी। ऋषि स्वीकार करते हैं कि यह घटना इस वजह से भी हुई क्योंकि हमारा मन समस्याओं को ज्यादा विकराल रूप में देखने लगता है । उस समय उनके पास चार बड़ी फिल्में थीं प्रेमरोग, नसीब, कुली और जमाने को दिखाना है। इनमें से जमाने को दिखाना है को छोड़कर सारी फिल्में हिट हुईं थीं।
हम किसी से कम नहीं और प्रेम रोग
ऋषि कपूर के पहले दौर की फिल्मों में सबसे बेहतरीन फिल्म राजकपूर के निर्देशन में बनी प्रेम रोग थी। हालांकि यह फिल्म नायिका प्रधान थी इसलिए सफलता के केक का ज्यादा बड़ा हिस्सा इसकी हिरोइन पद्मिनी कोल्हापुरी के खाते में चला गया था। वैसे ऋषि को जैसा किरदार मिला था उसके साथ उन्होंने न्याय किया था।
  नासिर हुसैन के निर्देशन में बनी हम किसी से कम नहीं हिन्दी सिनेमा की सबसे बेहतरीन म्यूजिकल फिल्मों में शुमार है। इस फिल्म में ऋषि पर फिल्माई गई कव्वाली है अगर दुश्मन जमाना गम नहीं जबरदस्त हिट रही थी। इसके बाद की कई फिल्मों में ऋषि कपूर को कव्वाली गाने का मौका मिला और वो इसमें जमते भी थे।
ऋषि की ये फिल्म भी सुपरहिट रही थी लेकिन इसके बाद आई जमाने को दिखाना है फ्लॉप हुई। ऋषि इससे इतने घबरा गए कि वो नासिर हुसैन से मिलने से कतराने लगे। इस वजह से नासिर हुसैन ने मजबूरी में अपनी नई फिल्म मंजिल मंजिल में सन्नी देओल को हीरो के रूप में लिया।
सलीम- जावेद ने लिया पंगा
  जिस समय ऋषि कपूर की बॉबी सुपर हिट हुई थी उसी समय लेखक जोड़ी सलीम – जावेद की लिखी फिल्म जंजीर भी आई थी। जंजीर ने अमिताभ को एंग्री यंग मैन के रूप में स्थापित किया था। इस समय बंगलौर के एक  होटल के बार में जावेद अख्तर ने ऋषि को बुलाया और शराब के नशे में कहा कि तुम्हारी फिल्म बॉबी ने बहुत कमाई की है ना। देखना हम जो नई फिल्म बना रहे हैं उसने अगर बॉबी से एक रुपया भी कम कमाया तो मैं फिल्में लिखना छोड़ दूंगा। यह बात ऋषि को खराब तो लगी पर उन्होंने जावेद के जबरदस्त आत्मविश्वास की भी तारीफ की। जावेद का कॉन्फिडेंस रंग लाया और उनकी फिल्म शोले ने बॉबी सहित सारी हिट फिल्में को पीछे छोड़ते हुए एक नया इतिहास रच दिया।
 ऋषि ने सलीम जावेद की लिखी फिल्म त्रिशूल में काम करने से मना कर दिया था। इससे नाराज होकर सलीम खान ने एक क्लब में पूछा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारी फिल्म में काम करने से मना करने की। ऋषि ने जब कहा कि रोल पसंद नहीं आया तो सलीम ने धमकाते हुए राजेश खन्ना की तरह करियर बर्बाद करने की धमकी दी। कहा कि राजेश खन्ना ने जैसे जंजीर करने से मना किया था तो हमने अमिताभ बच्चन को खड़ा कर दिया वैसे ही हम तुम्हारे बदले किसी और को तैयार कर देंगे।
दूसरे दौर में की मेहनत, अभिनय निखरा
ऋषि कपूर बताते हैं कि पहले पहल जिस रोल के लिए मुझे जबरदस्त तैयारी करनी पड़ी उनमे से एक था अग्निपथ में रऊफ लाला की। जो कि एक पूरी तरह से नकारात्मक चरित्र का व्यक्ति था।वो ड्रग्स और वेश्यावृत्ति के व्यापार में आकंठ डूबा था। इस भूमिका को स्वीकार कराने के लिए करण जौहर और उसके निर्देशक करण मल्होत्रा को मेरी खूब खुशामद करनी पड़ी। मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मुझे इस तरह की भूमिका का प्रस्ताव भी कभी आ सकता है किसी नकारात्मक भूमिका से ऋषि कपूर को जोड़कर देखने के लिए एक बहुत ही उर्वर कल्पना शक्ति की जरूरत थी। मूल कथानक में कोई प्लान नहीं था यह चरित्र बाद में जोड़ा गया था। मेरी पुरानी और मृदुल छवि के रूपांतरण के लिए मैंने अंग संचालन, भाव भंगिमा और अभिनय की शैली को पूरी तरह बदलने के लिए बहुत मेहनत की। लड़ाई के दृश्य में मुझे चोट भी लगी किंतु मैं अपने चरित्र में इस कदर डूबा था कि मेरा ध्यान ही नहीं गया। मुझे दर्शकों के सामने यह सिद्ध करना था कि यह सचमुच एक व्यक्ति है और जब यह संभव हुआ तो मुझे बहुत संतोष मिला।
औरंगजेब में भी मैंने एक और दुष्ट पात्र का अभिनय किया जिसमें मैं अपने बेहतर कामों में से एक मानता हूं। यह फिल्म एक पूर्ण रूप से भ्रष्ट पुलिस अधिकारी  और माफिया के ऊपर बनी। वहीं दो दुनी चार में  मेरी भूमिका में सिर्फ इतना ही नहीं था कि मुझे अपने से उम्र में बड़े व्यक्ति का रोल निभाना था बल्कि उस पात्र का व्यक्तित्व भी जीना था।
 डी डे में भूमिगत माफिया दाऊद इब्राहिम और कपूर एंड संस भूमिका में भी बहुत सारी तैयारी करनी पड़ी। इन फिल्मों ने काम के प्रति मेरा रुख बदल दिया। इन भूमिकाओं को और अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए मैंने अपनी आवाज को भी पात्र के अनुसार ढाला।
  मुल्क में सबसे यादगार भूमिका
मैंने ऋषि कपूर की आज तक जितनी भी फिल्में देखीं हैं उनमें सबसे बेहतरीन काम मुझे निर्देशक अनुभव सिन्हा की मुल्क में लगा है। वे एक बुजुर्ग मुस्लिम व्यक्ति की भूमिका में बहुत ही सहज लगे हैं। वे पूरी फिल्म के केंद्र में नजर आते
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