Pindadan of unborn girls in Kashi: काशी में अजन्मी कन्याओं का पिंडदान

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काशी में आगमन संस्था की तरफ से पितृपक्ष में धार्मिक अनुष्ठान के जरिये जो संदेश देने की कोशिश की गयी है वह अपने आप में काबिलेगौर है। पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते ऐसी सकारात्मक खबरों को सरकार को खुद गंभीरता से लेना चाहिए। इसे एक सामाजिक मुहीम बनानी चाहिए। सराकर को ऐसे आयोजन खुद आयोजित कर लोगों में एक धार्मिक डर पैदा करनी चाहिए। हिंदू -धर्म संस्कृति का यह अकाट्य सत्य है कि अकाल मौत की वजह से आत्माएं भटकती हैं। वह प्रेतयोनी में बास करती हैं। जिसकी वजह से लोगों की अकाल या सामान्य मौत होने पर आत्माओं की शांति के लिए पिंडदान और दूसरे कर्म किए जाते हैं। फिर हजारों कन्याएं जो इस दुनिया में आने से पहले की गर्भ में मार दी जाती हैं। वह भी जीव होती हैं। इस हत्या का पाप भोगना पड़ता है।

महादेव की पुण्य नगरी काशी से पितृपक्ष में सकारात्मक खबर आयी है। सामाजिक संस्था आगमन ने दशाश्वमेध गंगा घाट पर सोमवार को यानी मातृनवमी के दिन उन अजन्मी बेटियों के लिए जो इस दुनिया में जन्म लेने के पूर्व मां गर्भ में मारी दी गयी के लिए 5500 पिंडदान किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार से अजन्मी उन कन्याओं को याद कर उनकी भटकती आत्माओं को शांति प्रदान की गयी। घाट पर मौजूद विद्वानों ने धार्मिक अनुष्ठान के जरिए तर्पण कराया। काशी से निकला यह संदेश निश्चित रुप से दूर तलक जाएगा। संस्था की तरफ से की गयी यह बेमिसाल पहल है। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र और आदिकालीन सनातन संस्कृति का केंद्र भी है। धर्म-संस्कृति और संस्कार की पुण्यनगरी वाराणसी यानी काशी अपने आप में बेमिसाल हैं। काशी जीवंत नगरी है। कहा जाता है कि काशी का कभी विनाश नहीं होता। काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है। यह मोक्ष की नगरी है। धर्म और संस्कार लोगों की नसों में रचा-बसा है। काशी की मिट्टी और वाणी में बेहद लगाव और खींचाव है। पुण्य कमाने जो यहां आता है वह काशी का होकर रह जाता है। काफी संख्या में विदेशी सैलानी आते हैं जो काशी को खुद में रचा-बशा लेते हैं। मोक्ष और मुक्ति की चाह में वह काशी को समाहित कर लेते हैं। काशी की गलियां और गंगा घाट अपने में हजारों रहस्य छुपा रखे हैं। परिभाषाएं यहां गढ़ी जाती हैं। समाजिक संस्था आगमन अब तक अजन्मी 26,000 हजार बेटियों का तर्पण कर चुकी है।
सामाजिक व्यवस्थााएं तेजी से बदल रही हैं। लोगों के सोचने और जिने का नजरिया भी बदल रहा है। लड़कियों को स्कूल-कॉलेज भेजा जा रहा है। लड़कों से कई गुना बेहतर प्रदर्शन लड़किया कर रही हैं। सरकारी नौकरियों से लेकर निजी संस्थानों में बेटियां का अपना जलवा है। इसरो में भी प्रभावशाली नेतृत्व क्षमता दिखा रही हैं। वायुसेना में शामिल होकर फाइटर विमान उड़ा रही हैं। बेटियों के लिए सरकार ने महिला सेना का भी गठन किया है। राज्यों के सिविल पुलिस में भी बेटियां मौजूद हैं। सामाज में शिक्षा का विकास हुआ है। बेटों के साथ बेटियों को पढ़ने भेजा जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में भी बेटियां शिक्षा और दूसरे क्षेत्र में अच्छा काम कर रही हैं। राजनीतिक हस्तियों में महिलाओं की कामयाबी बेमिसाल है। बेटियां सामाजिक और धार्मिक बंधनों को तोड़ कर अर्थी को कंधा देने के बाद मुखाग्नि भी दे रही हैं। इसके बाद भी कन्याभ्रुण हत्या का सिलसिला नहीं थम रहा है। यह अपने आप में सबसे गंभीर और विचारणीय बिंदु है। आखिर कन्याभ्रुण हत्या पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है। सरकारी चिकित्सालयों से लेकर निजी अस्पतालों में लिंग परीक्षण के खिलाफ गैर कानूनी बोर्ड चस्पा है। बोर्ड पर बाकायदे संबंधित अपराध की सजा भी लिखी गयी है, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। खुले आम लिंग परीक्षण हो रहे हैं। सोनोग्राफी के बहाने जांच रिपोर्ट भी गोपनीय तरीके से लोगों तक पैसे लेकर पहुंचायी जा रही है। देश में लगातार बेटियों का लिंगानुपात घट रहा है।
देश के छह राज्यों में बेटियां गर्भ में सुरक्षित नहीं है। सबंधित राज्यों में बेटा और बेटियों के लिंगानुपात में काफी अंतर है। बेहर शिक्षा, आधुनिक एंव वैज्ञानिक सोच के बाद भी बेटियों के प्रति हमारे समाज का नजरिया नहीं बदला है। गर्भ में पल रही बेटियों की हत्या को लेकर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिख रहे हैं। जिसकी वजह से बेटियों के प्रति अपराध बढ़ रहा है। यूपी उन छह राज्यों में शामिल हैं जहां बेटियों का लिंगानुपात बराबर धराशायी हो रहा है। बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का नारा बेमतलब साबित हो रहा है। 2011 की जनगणना के बाद नीति आयोग ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह बेहद चौंकाने वाले हैं। 2011 की जनगणना में जहां लड़कियों की संख्या प्रति हजार लड़कों पर 901 थी। जबकि नीति आयोग के हेल्थ इंडेक्स में यह संख्या 879 पर पहुंच गयी। 2001 में यह संख्या 916 थी। नीति आयोग की तरफ से 2012 से 2014 और 2013 से 2015 में किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि देश में लिंगानुपात लगातार घट रहा है। बेटियों की संख्या कम हो रही है। यूपी उन छह राज्यों में शामिल है जहां लगातार बेटियों की संख्या घट रही है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की बात को सच मानें तो अब शादी के लिए बेटियों का अपराहण भी किया जाने लगा है। मध्यप्रदेश के हालात और बदतर हैं। यहां शादी के लिए बेटियों का सबसे अधिक अपहरण किया जाता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के आइने में अगर हम इसका विश्लेषण करें तो 2016 में देश भर में 66,225 लड़कियों का अपहरण किया गया। जबकि 33,855 के अपहरण की वजह सिर्फ शादी थी। मध्यप्रदेश बेटियों के अपहरण मामले में सबसे अव्वल रहा। यहां बेटियों के अपहरण मामले में आठ फीसदी से भी अधिक वृद्धि दर्ज की गयी। यहां 2016 में कुल 7,237 अपहरण के मामले दर्ज हुए। जबकि कुल अपहरण के मामलों में 4,994 यानी 69 फीसदी बेटियों का अपहरण किया गया। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने 2014 से महिलाओं के अपहरण का डाटा संग्रहित करने लगा। राष्टीय स्तर पर आंकड़ों पर गौर करें तो 2016 में 3,38,954 मामले महिलाओं के साथ हुए अपराध के पंजीकृत किए गए। जिसमें 66,525 मामले महिलाओं के अपहरण से संबंधित थे। जबकि अपहरण के दर्ज कुल 88,875 मामालों में 74 फीसदी घटनाएं महिलाओं को अगवा करने से जुड़ी थीं।
काशी में आगमन संस्था की तरफ से पितृपक्ष में धार्मिक अनुष्ठान के जरिये जो संदेश देने की कोशिश की गयी है वह अपने आप में काबिलेगौर है। पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते ऐसी सकारात्मक खबरों को सरकार को खुद गंभीरता से लेना चाहिए। इसे एक सामाजिक मुहीम बनानी चाहिए। सराकर को ऐसे आयोजन खुद आयोजित कर लोगों में एक धार्मिक डर पैदा करनी चाहिए। हिंदू -धर्म संस्कृति का यह अकाट्य सत्य है कि अकाल मौत की वजह से आत्माएं भटकती हैं। वह प्रेतयोनी में बास करती हैं। जिसकी वजह से लोगों की अकाल या सामान्य मौत होने पर आत्माओं की शांति के लिए पिंडदान और दूसरे कर्म किए जाते हैं। फिर हजारों कन्याएं जो इस दुनिया में आने से पहले की गर्भ में मार दी जाती हैं। वह भी जीव होती हैं। इस हत्या का पाप भोगना पड़ता है। फिर ऐसी अजन्मी बेटियों की आत्माओं का तर्पण कौन करेगा। हमें ऐसा महौल पैदा करना चाहिए कि अजन्मी बेटियों के तर्पण और पिंडदान की नौबत ही न आए। ऐसा सामाजिक माहौल तैयार करना चाहिए कि लोग बेटियों को लेकर डरे नहीं। सड़क पर बेटियां सुरक्षित हों। घर से लेकर आॅफिस और कामकाजी क्षेत्र तक वह बेहिचक रहें। दहेज मुक्त शादियों के लिए महौल पैदा किया जाए। लोगों को समझाया जाय कि कन्याभु्रण कि गर्भ में हत्या एक महापाप है। आगमन संस्था की पहल बेमिसाल है। यह मुहिम सामाजिक परिर्वतन ला सकती है।

प्रभुनाथ शुक्ल

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